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शनिवार, मई 19, 2012

"जीवन दर्शन को कौन सुनता है ? " (चर्चा मंच-884)

मित्रों!
आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है शनिवार की चर्चा!
       अरूप सर्वव्यापी तुम्हारा रूप ... धन्य-धन्य भाग्य तेरे यदुरानी ,तुझको मेरा शत-शत नमन !! सर्वोच्च आध्यात्मिक ज्ञान - कृष्ण प्रेम !! यदुरानी तू धन्य है, धन्य हुआ गोपाल । दही-मथानी से रही, माखन प्रेम निकाल । चिराग तले अँधरा हमारे देश में बालिकाओं को गर्भ में ही मार दिया जाता है इसलिए कुँवर कुसुमेश जी कह रहे हैं कि वैध समलैंगिकता हुई...आज १८ मई पर ये चंद शब्द मेरे पापा की ११ वीं बरसी पर .....एक बेटी की बातें अपने पापा से ...... पापा देखो ना आज मैं कितनी सायानी हो गयी हूँ..... लौट आओ न पापा ! चर्चा मंच की ओर से आपके पापा जी को विनम्र श्रद्धांजलि! मैंने जो जिया वो मेरा जूनून था , मेरे बदलते तर्क भी मेरा जूनून थे ! मुझे बस जीना था और कमाल की बात है सूरज चाँद सितारे धरती आकाश ... खुद की तलाश इस साल बच्चों को पढ़ाते हुये, कई अनुभवों से गुज़रते हुए एक बड़ी सीख मिली- प्रोत्साहन में बला की शक्ति होती है....मैं "मैं" हूँ ....! उस दिन वृद्धाश्रम के अन्दर सन्नाटा छाया था , अचानक तिवारी जी का निधन हो गया और वहां के कर्ता धर्ता ने उनके बेटे को सूचना देने के लिए फ़ोन उठाया ही था की शर्मा जी ने उन्हें एक कागज़ पकड़ा दिया-' पहले इसको पढ़ लीजिये। ''ये क्या है ?' 'ये तिवारी जी की वसीयत है।" जिसने दुःख में जीना सीखा  जड़ना वही नगीना सीखा,  फटेहाल जीवन की गाथा चिथड़ों को भी सीना सीखा, जीवन को भवसागर कहते कैसे चले सफीना सीखा.....! दिशा हिमालय किधर है ? मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर पतंग उड़ा रहा था उधर-उधर -उसने कहा जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी....! आज वह एक बार फिर मरा है पर यह कोई खबर नहीं है वैसे भी, उसके मरने की खबर किसी खबरनवीस के लिए खबर की बू नहीं देती, क्योंकि...उसका मरना कोई खबर नहीं है...! कुछ समय पहले मैं जापानी कला ओरिगैमी सीखने गया, जो काग़ज़ को मोड़ कर उससे विभिन्न आकार बनाने की कला है। हमें यह कला सिखाने वाले एक जापानी मसीही विश्वासी...परमेश्वर की कलाकृति ! *देह की और ब्रहमांड की बनावटें एक सी हैं**,**वेद कहते हैं* - *देह**,**ह्रदय में बसे ब्रह्म की तलाश का माध्यम है...जीवन दर्शन.को कौन सुनता है ? परिंदे तक तो महफूज नहीं है तेरे शहर की फिजाओं में अगर हम ठहरें, तो भला क्यूँ ठहरें ? ... गर शक है, तुझे मेरी आशिकी पर तो उठा खंजर, दिल को खुद ही टटोल ...सिस्टम ...श्री गणेशाय नम: * *''हे गजानन! गणपति ! मुझको यही वरदान दो * *हो सफल मेरा ये कर्म दिव्य मुझको ज्ञान दो * *हे कपिल ! गौरीसुत ! सर्वप्रथम तेरी वंदना...श्री राम ने सिया को त्याग दिया ?''-एक भ्रान्ति ! अर ये भ्रान्ति है तो सच क्या है? रास्ते में कहीं उतर जाऊं? घर से निकला तो हूं, किधर जाऊं? पेड़ की छांव में ठहर जाऊं? धूप ढल जाये तो मैं घर जाऊं.....? लडकियों की ऐसी सच्चाई जो आपको रोने को मजबूर कर देगी....! उन्हें भूल हम भले ही न पाएँ मगर, भूल जाने की कोशिश तो जी भर करेंगे। वो हम पर इनायत तो करते बहुत हैं, पर  वो मरहम नहीं हैं  जख्म हरे ही करेंगे। श्रद्धा का मूल्यांकन *आज मैं इस लेख का पूरा श्रेय अभियांत्रिकी विज्ञान से जुड़ीं शिल्पा जी को दे रहा हूँ क्योंकि इस लेख की प्रेरणास्रोत वे ही हैं। उनका एक प्रश्न है ...? दाँतों का रक्षाकवच है एनामल एनामल दाँतों का रक्षाकवच होता है। इसका क्षरण कई कारणों से हो सकता है। क्षरण हो जाने के बाद यह कभी दोबारा नहीं आता है....। ऊंचा वही है जो गहराई लिए है *जो गहरा है वही ऊंचा है * * * *अब समुन्दर को ही लो अपने आकार को मन माफिक घटा बढा लेता है .कितना बड़ा संसार है....! सफ़र जाने अभी कितना पड़ा है! मुसाफिर चलते-चलते थक गया है ...... !! 
         तुम्हे शोखी नहीं आई हमे आवारापन नहीं आया ...सीने में इक आग लगाए रखते हैं मुझको मेरे ख़्वाब जगाये रखते हैं जीने की ये कोशिश हमको मार न डाले हम दिल के अरमान दबाये रखते हैं....Aabshaar...!  हाँ वैसी ही चांदनी रात जेसी कभी तेरे कनार में हुआ करती थी पर आज कुछ तो जुदा था कुछ तो अलग आज तुन गैर हो रही थी मेरी आँखों के सामने. सितारों की रात...! सर्वप्रथम मैं आप सभी से माफ़ी चाहता हूँ ! मैं किसी को कार्टून नहीं कह रहा हूँ ! मैं तो सिर्फ उन लोगों को कार्टून कह रहा हूँ जिनकी हरकतें कार्टून के जैसी है...जब हम ही कार्टून हैं तो फिर .....बाद की रोटी खाई थी, इसलिए दिमाग की बत्ती भी थोड़ी देर से ही जलती थी ! हाँ, ये बात और है कि मजाक में भी जो बात कह जाता उसके भी परिणाम गंभीर ही निकलते थे! शादी के बाद घर आई नई-नवेली दुल्हन ने भी फुर्सत के ...कूलिंग पीरिअड़ ?

         पौधों और जंतुओं में शारीरिक संरचना में फर्क : एक वैज्ञानिक तुलना कई बार, कई जगह, कई लोगों को, कहते सुना है कि - पौधों में भी जीव है / शाकाहार में भी हिंसा है / श्री बोस ने प्रमाणित किया है ..... पौधों और जानवरों के शारीरिक संरचना का तुलनात्मक अध्ययन....! चेहरे पर तनाव लिए खामोशी से सब अपनी परेशानियों से झूझ रहे आधी उम्र में पूरा दिख रहे किसी को फ़िक्र नहीं हवा में धुएं का ज़हर बढ़ रहा खोल कर देखो तो फेफड़े काले हो गए....प्रकृति और पर्यावरण से मज़ाक कब बंद होगा...? कल 17 MAY 2012 गुरुवार का दिन मेरी जिन्दगी का यादगार दिन था । किसी अनमोल तोहफ़े के मिलने जैसा । दरअसल आप शायद न जानते हों । किसी के सुख दुख से कोई मतलब न रखने वाला समय भी किन्हीं खास पलों का किसी खास समय का ...बोलो अब कैसे होगा ऊ ला ला ?...भीषण का गर्मी का दौर शुरू हो गया है . इस समय 40 डिग्री से अधिक का तापमान चल रहा है . गर्मी के कारण नेट पर बैठने का मन नहीं होता है . सोच रहा हूँ था की प्राकृतिक ओर आध्यात्मिक शांति की तलाश में कहीं दूर....करम करम का फेर है हमारा तुम्हारा ... अगर न सुधरे इस जीवन में कब सुधरोगे दुबारा ....कंजूस आदमी का गड़ा हुआ धन ज़मीं से तभी बाहर निकलता है जब वह स्वयं ज़मीं में गड़ जाता है....शेख सादी के अनुसार ऐसा होता है कंजूस आदमी....! (1) ऊँचा-ऊँचा बोल के, ऊँचा माने छूँछ | भौंके गुर्राए बहुत, ऊँची करके पूँछ | ऊँची करके पूँछ, मूँछ पर हाथ फिराए | करनी है यह तुच्छ, ऊँच पर्वत कहलाये |...किन्तु सके सौ लील, समन्दर इन्हें समूचा....! औरों के गम में क्यों शामिल होगा, होगा जो शामिल वो पागल होगा। बेवजह करे क्यों कोई हमदर्दी, पहले ये सोचे क्या हासिल होगा।.......नेह भर सींचो कि मैं अविराम जीवन-राग दूँगा*** - *हरीश प्रकाश गुप्त* प्रतिभा सक्सेना जी कैलीफोर्निया में रहती हैं। अध्ययन में रुचि रखती हैं, अध्यापन उनका व्यवसाय है और लेखन उनका संस्कार है। साग़र तलाशते हैं ये ...बारहा दर-ब-दर पत्थर तलाशते हैं ये। वह जो मिल जाय तो इक सर तलाशते हैं ये।। हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर, बदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये....। हुस्न वाले वफा नही करते, दर्द देते दवा नही करते। वक्त बदला बदल गये सारे, पात हिलते हवा नही करते। देख मुशिकल घड़ी बदल जाये, यार ऐसे हुआ नही करते। काश पहले रमज समझ आती, इश्क फरमा खता नही करते।....*सुन रही थी मां पिता की बातें वो*** *अधखिली कली जो अजन्मी थी।*** *नन्हां सा उसका दिल धड़क रहा था*** *भीतर ही भीतर वो चीत्कार रहा था।*** *मां बाप ने उसको जब से*** *जनम न देने की ठानी थी।*** *विनय कर रही ....अजन्मी पुकार....! संकुचन और विरलन की घटनायें प्रकृति की द्वंद्वात्मकता का इजहार है। जिसके प्रतिफल भौगोलिक संरचना के रूप्ा हो जाते हैं। खाइयां और पहाड़, समुद्र और वादियां, मैदान और पठार न जाने कितने रूपाकारों में ढली पृथ्वी...कितनी बाते हैं जिनको लिखा जाएगा खुलकर...! 
"मिटने वाली रात नहीं" 
समीक्षा के लिए आप पुस्तक के चित्र पर क्लिक कीजिए-

अन्त में एक रचना हमारी भी-

मित्रों!
कई वर्ष पहले यह गीत रचा था!
पिछले साल इसे श्रीमती अर्चना चावजी को भेजा था।
उसके बाद मैं इसे ब्लॉग पर लगाना भूल गया।
आज अचानक ही एक सी.डी. हाथ लग गई,
जिसमें मेरा यह गीत भी था!
इसको बहुत मन से समवेत स्वरों में मेरी मुँहबोली भतीजियों श्रीमती अर्चना चावजी और उनकी छोटी बहिन रचना बजाज ने गाया है। आप भी इस गीत का आनन्द लीजिए!

35 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया लिनक्स .... सुंदर चर्चा

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  2. बहुत सारे सूत्र मिले...बढ़िया चर्चा...आभार !!

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  3. सिलसिलेवार और खूबसूरत लिंक्स

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  4. विस्तृत ...सुंदर चर्चा ....!!मेरी रचना को स्थान मिला ...बहुत बहुत आभार ....शास्त्री जी ....!!

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  5. सुंदर चर्चा. मेरी रचना को स्थान दिया . आभार.

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  6. बहुत बढ़िया चर्चा ... काफी अच्छे पठनीय लिंक मिले ... समयचक्र की पोस्ट को स्थान देने के लिए आभारी हूँ ...

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  7. बेहतरीन प्रस्तुति, आभार शास्त्री जी !

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  8. Aadarniya Aacharya ji
    Aapki Sahitya sevako naman hai.. Meri rachna ko aapne yahan sthaan diya uske liye aabhaari hoon.
    Aapke comments se kaafi hausla mila hai mujhe.
    Aabhaari
    Vishal Bagh

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  9. आदरणीय अग्रज, शास्त्री जी,

    शत्-शत् वंदन ।

    “ मिटने वाली रात नहीं ” पुस्तक की सार गर्भित-समीक्षा

    के लिये बहुत-बहुत आभार।

    आपका सहयोग और स्नेह सदैव मिलता रहेगा,

    इस आशा और विश्वास के साथ।

    आनन्द विश्वास।

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  10. इस सुन्दर प्रस्तुति और उसके लिए करी गई मेहनत के लिए बहुत धन्यवाद

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  11. बहुत बढ़िया लिंक्स, सार्थक चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

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  12. आभार गुरु जी
    बढ़िया चर्चा ||

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  13. एक से बढ़कर एक लिंक लाये हैं छंट कर शास्त्री जी आभार

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  14. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स का चयन किया है आपने .. आभार ।

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  15. सुंदर चर्चा, बेहतरीन लिंक्स !

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  16. लिंक्स की प्रस्तुति का दिलचस्प अंदाज़ अच्छा लगा. मेरे लिंक को भी शामिल करने के लिए आभार

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  17. sarthak charcha .meri post ko yahan sthan dene hetu hardik dhanyvad

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  18. समुन्नत विचारों , व समीचीन चर्चा का बहुत -२आभार सर !सार्थक एवं अपने उद्देश्य में सफल ........

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  19. चर्चा के जगताल में फिर से शाष्त्री आये ,
    जीवन के सब रंग सजाये ,
    कितने सारे लिंक दिखाए ,
    किस किस को अनुपम बतलाएं .
    सबका तो ये मान बढायें .
    बढ़िया चर्चा .

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  21. इस तरह की चर्चा नेण कहानी के पठन का सुख मिलता है, पर लिंक्स के प्रति फोकस कम हो जाता है।

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  22. इस तरह की चर्चा नेण कहानी के पठन का सुख मिलता है, पर लिंक्स के प्रति फोकस कम हो जाता है।

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  23. bahut sunder sankalan.
    aapki mehnat ko naman
    meri rachna ko yaha sthan dene k liye aabhar.
    deri se pahunchne k liye kshama prarthi hun.

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