चर्चा करो मगर कैसे और किसकी
क्या ब्लोग्स की
ब्लोगर्स की
त्यौहार की
देश की या उसके हालात की
व्यथित मन मंथन मे जुटा है
मगर ना कोई हल निकला है
ये तो पानी का सा रेला है
आज इधर तो कल उधर बहा है
चलो ये फ़र्ज़ भी निभा लें
फिर चाहे युद्ध सरह्द पर छिडा हो
या मन मे ही कोई तीर गडा हो
चलता दरिया कब कहाँ रुका है
चलो बह चलें समय के साथ
समय के दरिया में
तलाश कभी तो मुकम्मल होगी
समय के दरिया में
तलाश कभी तो मुकम्मल होगी
हुन धीयां दी लोहड़ी मनाइए
सुंदर मुन्दरिय हो,
तेरा कौन विचार-,
दुल्ली भट्टी वाला-हो,
दुल्ले ने धी ब्याही-हो,
सेर शक्कर पाई-हो,
कुडी डे बोझे पाई-हो,
मिट्टी को भी है चाहत तुम्हारे फूल से पैरों को चूमने की
इस मुरझाए से दिन में
मैं खुद को कह रहा हूँ बार बार कि
खुश हो जाऊँ
कि तुम किस मक़सद से हो रही हो रूबरू
मैं कहता हूँ कि प्यार नहीं है सिर्फ़ चाहत वस्ल की
कि तुम जिन राहों पर चलना चाहती हो
उनकी मिट्टी को भी है चाहत तुम्हारे फूल से पैरों
को
चूमने की
यह सुविधा केवल उन्हें ही क्यों?
भक्ति
कालीन और रीति कालीन कवियों को एक सुविधा प्राप्त थी। वे अपनी उक्तियों और
वक्तव्यों को व्याकरण के इतर भी तोड़-मरोड़ सकते थे। कहीं वे "तुक मिलाने"
के लिए ऐसा कर देते थे, तो कहीं वे अपनी क्षेत्रीय बोलियों के प्रचलन के
प्रभाव में आकर ऐसा कर देते थे। बड़े और नाम-चीन कवियों के इस कृत्य को भी
आदर और आत्मीयता से देखा जाता था, और कालांतर में उनके यह प्रयोग नए
अलंकारों, मुहावरों या उक्तियों को जन्म देते थे। वे लोग तुक मिलाने के लिए
गणेश को 'गनेसा' कह देते थे, तो कृष्ण को 'किसना' कह देते थे।
इब्ने इंशा
इब्ने इंशा की कविताओं में निहित प्रभावों को रेखांकित करना कठिन है ,परंतु उनकी जीवन यात्रा से ही कुछ मजबूत रेखाएं स्पष्ट होती है । इब्ने जी की रचनाएं सुखद आश्चर्य से भर देती है कि इस पाकिस्तानी साहित्यकार में हिंदुस्तानी जीवन ,शब्दावली और हिंदुस्तानी रंग के इतने इन्द्रधनुष कैसे हैं । इनकी गजलों में जोगी ,सजन ,जोत ,मनोहर ,प्रेम ,बिरह ,रूप-सरूप ,सखि ,सांझ ,अंबर ,बरखा ,गोपी ,गोकुल ,मथुरा ,मनमोहन ,जगत ,भगवान संन्यास जैसे शब्दों का प्रयोग यह बतलाने के लिए पर्याप्त है कि उनके रचनात्मक संस्कार कैसे थे
जीना है तो मरना सीखो !!!
मन का शोक विलाप के आंसुओं से
खत्म नहीं हुआ है
संवेदनाएं प्रलाप करती हुई
खोज रही हैं उस एक-एक सूत्र को
जो मन की इस अवस्था की वज़ह बने
आहत ह्रदय चाहता है
खत्म नहीं हुआ है
संवेदनाएं प्रलाप करती हुई
खोज रही हैं उस एक-एक सूत्र को
जो मन की इस अवस्था की वज़ह बने
आहत ह्रदय चाहता है
'इनकी भी सुनें ' कार्यक्रम की रिपोर्ट
ये घरों में साफ़ - सफाई और दूसरे कई तरह के घरेलू काम करतीं हैं,आमतौर पर हर रोज सुबह ऑफिस जाने वाले लोग सैर पर या एक्सरसाईज के लिए घर से बाहर जातें हैं उस समय ये अपने घर का काम ख़त्म करके इनके घरों में काम कर रहीं होतीं हैं, इनके खुद के बच्चे भी स्कूल जातें हैं, लेकिन ये रोजी-रोटी के लिए दूसरों के बच्चों का टिफिन तैयार करने के लिए अपने बच्चों को छोड़कर दूसरों के घरों में काम करने आ जातीं हैं | घरों में काम करने वाली इन महिलाओं की बहुत सारी समस्याएँ होती हैं,
डाक्टर अच्छा मिले , तो और बात है --
कहते हैं , हँसना और गाल फुलाना एक साथ नहीं होता। लेकिन लगता है कवियों के जीवन में ये प्रक्रियाएं साथ साथ ही चलती हैं। तभी तो ख़ुशी हो या ग़म, एक कवि का धर्म तो कविता सुनाना ही है। विशेषकर हास्य कवियों के लिए यह दुविधा और भी महत्त्वपूर्ण होती है। भले ही दिल रो रहा हो, लेकिन हास्य कवि को तो श्रोताओं को हँसाना होता है। यही उसका कर्म है , यही कवि धर्म है।
वहाँ स्त्रियाँ हैं
पगडंडी
वहाँ घने पेड़ हैं
उनमें पगडंडियाँ जाती हैं
ज़रा आगे ढलान शुरू होती है
जो उतरती है नदी के किनारे तक
वहाँ स्त्रियाँ हैं
घास काटती जाती हैं
आपस में बातें करते हुए
घने पेड़ों के बीच से ही उनकी
बातचीत सुनायी पड़ने लगती है
वहाँ घने पेड़ हैं
उनमें पगडंडियाँ जाती हैं
ज़रा आगे ढलान शुरू होती है
जो उतरती है नदी के किनारे तक
वहाँ स्त्रियाँ हैं
घास काटती जाती हैं
आपस में बातें करते हुए
घने पेड़ों के बीच से ही उनकी
बातचीत सुनायी पड़ने लगती है
असल में इस फ़िल्म बनने के पीछे ओफ़्रा विन्फ़्रे का बहुत बड़ा हाथ है। ओफ़्रा विन्फ़्रे ने जबसे ‘बिलवड’
पढ़ा वे उसे परदे पर लाने के लिए बेताब थीं। १९९६ में उन्होंने अपना
प्रसिद्ध और लोकप्रिय बुक क्लब प्रारंभ किया और तभी घोषणा कर दी कि उनके
क्लब के दूसरे महीने का चुनाव टोनी मॉरीसन का उपन्यास ‘सॉन्ग
ऑफ़ सोलोमन’ होगा। तुरंत मॉरीसन की किताबों की बिक्री बढ़ गई। ओफ़्रा के
बुक क्लब की यह खासियत है उनके यहाँ नाम आते ही रचनाकार का सम्मान बढ़ जाता
है, उसकी किताबों की बिक्री तेज हो जाती है।
शर्तों वाला प्यार भाग 2
दॊ इंसान कभी एक जैसे नहीं होते वैसे तो कहा जाता है सबका कोई न कोई हमशक्ल होता है ,पर हमशक्ल भी एक जैसे नहीं होते .और सारी दिखने वाली बाते शायद एक सी हो भी सकती है पर इंसानी फितरत और हर बात को लेकर उनका नजरिया अलग अलग होता है यही कुछ अनदेखी पर सबसे ज्यादा जरूरी चीज़ें हर इंसान को एक दुसरे से अलग बनाती है ।मुझे कहना तो है - पर क्या ?
मुझे कहना तो है - पर क्या ?
मौन - एक विस्तृत धरा
मन सोच के बीज लिए चलता है
धरा उसका साथ देती है
कई खामोश पौधे,वृक्ष
अपनी अनकही भावनाओं के संग लहलहाते हैं
कहीं तो होगा कोई मौन सहयात्री,पथिक
जो इन खलिहानों से एक अबूझ रिश्ता जोड़ेगा !
मधुशाला.... ( कहानी )
हाल
का टीवी आन था ... अमिताभ बच्चन का इन्टरव्यू चल रहा था और अमिताभ मधुशाला
की कुछ पंक्तियाँ सुना रहे थे .... पारु उधर से गुजरी ... पंक्तियाँ सुनते
ही बुदबुदाई “आई हेट अल्कोहल .... पता नहीं लोग , इस पर क्यों लिखते हैं
.... दुनिया में टॉपिक कम हैं क्या ?”
तभी
पीछे से आती आवाज ने उसकी तन्द्रा भंग की “कभी पढ़ के देख पग्गल दास
....ये कोई दारू की कहानी नहीं है –समझी” कहते हुए उसकी दीदी आगे बढ़ गयी।
शोर...
क्या वक़्त है...!!
हर शख्स बदलाव चाहता है...
बगावत से या अहिंसा से,
शब्दों से या बातों से
मगर चाहते सब हैं...
कोई चाहता है सत्ता बदलना...
मुकम्मल....
सुनो....अब भी मैं
थमी हूं
वहीं...उस पल में
जिस वक्त
तुमने कहा था
बस....
तुम रहना
हमेशा रहना
साथ
मुझे मुकम्मल
होने देने के लिए.....
एक औरत का धड़ भीड़ में भटक रहा है
औरत
वह औरत
आकाश और पृथ्वी के बीच
कब से कपड़े पछीट रही है,
पछीट रही है शताब्दियों से
धूप के तार पर सुखा रही है,
वह औरत आकाश और धूप और हवा से
वंचित घुप्प गुफा में
कितना आटा गूंध रही है ?
गूंध रही है मानों सेर आटा
असंख्य रोटियाँ
सूरज की पीठ पर पका रही है,
एक खिड़की
(मौसम बदले, न बदले... हमें उम्मीद की कम-से-कम
एक खिड़की तो खुली रखनी ही चाहिए. अशोक वाजपेयी
की कविता, ऑनरी मातीस की कलाकृति 'द ओपन विंडो'
के साथ)
एक खिड़की तो खुली रखनी ही चाहिए. अशोक वाजपेयी
की कविता, ऑनरी मातीस की कलाकृति 'द ओपन विंडो'
के साथ)
मौसम बदले, न बदले
हमें उम्मीद की
कम-से-कम
एक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए
शायद कोई गृहिणी
वसंती रेशम में लिपटी
उस वृक्ष के नीचे
किसी अज्ञात देवता के लिए
छोड़ गई हो
फूल-अक्षत और मधुरिमा
एकांत
फूलों की सुगंधपक्षियों की चचहाहट
कल कल करते
झरनों की ध्वनि
गर्मी की दोपहर में
शीतल वायु का स्पर्श
किस को अच्छा नहीं
लगता
"पत्थर दिल कब पिघलेंगे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भारत भाग्यविधाताओं के,
पत्थर दिल कब पिघलेंगे?
मौन तोड़कर, मातृभूमि के लिए
बोल कब निकलेंगे?मैं पत्थर
मैं पत्थर
मुझमें है प्राण
जो देव रूप लेता है
मुझे खंडित करके
देवता बनने की खातिर तुम विध्वंसक हो गए हो ....
- धडकनों के मौन आकाश पर गुंजित तुम्हारा प्रेमराग स्पन्दित कर नव चेतना भर गया और शब्द झंकृत हो गये भाव निर्झर बह गये हाय! कैसी है ये प्रेम के बाजूबंद की अठखेल..
हाइकू !
क़ानून तेरा मुझे क्या न्याय देगा ? खुद करूगी। *******' चेहरे ढके क्या गुनाह छिपेगा ? धिक्कारते हैं। ******* मशालें जलीं ज्वालामुखी न बनें हदें जान लो। ******* कैद कर दो, सिफारिशे हो रही हदें जान लो। ******* हमारे लिए इतिहास की बात खुद खुदा हैं। ******** उड़ाते हैं वे कीचड हम पर सने खुद हैं। ******** वे चाहते है हम भटक जाए इस जंग से . ******* इस जंग में हौसले से लड़ना जीत हमारी। ********फँसा आदमी
कभी दफ्तरों में कभी कठघरों में फँसा आदमी कागजी अजगरों में तमन्ना रही आसमानों को छूएं मगर ठोक रक्खी हैं कीलें परों में कहाँ से उगेगी नई पौध कोई घुने बीज बोये हुए बंजरों में अगर मर गईं सारी संवेदनाएं रहा फर्क क्या वनचरों में नरों में खड़े प्रश्न ही प्रश्न हर ओर अपने न है कोई विश्वास अब उत्तरों में मचलती हुई ज़िन्दगी थम गई है नदी जैसे खोई कहीं गह्वरों में करे राख अन्याय के हर किले को अगन ऐसी पैदा करें अक्षरों में जिसे खोजना था स्वयं के ही अंदर उसे खोजता आदमी पत्थरों में हुए हैं 'भरद्वाज'हालात ऐसे रहें ज्यों किराए से अपने घरों में चंद्रभान भारद्वाजसर्द सर्द श्वेत दूधिया कश्मीर
स्वामी विवेकानंद (गतांक से आगे)
जनवरी १२, २०१३ विश्वगुरु स्वामी विवेकानन्द जी की एक सौ पचासवीं जयन्ती पर समस्त मानवता को हार्दिक बधाई स्वामी विवेकानंद जी ने समग्र मानवता के आध्यात्मिकु उत्थान ,भौतिकी प्रगति एवं सर्वांगीण मंगलमय कल्याण के लिए आज से १५० वर्ष पूर्व भारत की पवित्र धरती पर जीवन धारण किया था ! प्रियजन, भारत की इस महान विभूति की विलक्षणता तो देखें कि केवल ३९ वर्ष की अल्पायु तक इस धरती पर विचरने वाले इस तत्ववेत्ता महापुरुष ने इतने थोड़े समय में ही कैसे भारत की प्राचीनतम सांस्कृतिक संपदा को खोजा, खंगाला , निज अनुभूतियों के आधार से उन्हें समझा, उनका मूल्य आंका और खराप्रेमी प्रेमिका, दूध और शक्कर, डायबिटीज
चलो कर दिया आज का कर्म पूरा
मगर दिल है अभी भी भरा - भरा
मगर दिल है अभी भी भरा - भरा
शुभप्रभात :))
जवाब देंहटाएं*यही वक़्त है लटका दो अफ़ज़ल गुरु भी, देश मेरे !**एक औरत का धड़ भीड़ में भटक रहा है*
शुभकामनायें !!
पठनीय लिंकों के साथ सधी हुई सार्थक चर्चा रही आज की!
जवाब देंहटाएंआभार!
सुप्रभात ,सार्थक और खूबसूरत चर्चा ,नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ,मेरे कश्मीर यात्रा वृतांत को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार वंदना जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र..
जवाब देंहटाएंचर्चा के समंदर में खुद की लहर देख अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंपाठनीय लिंक्स बढ़िया प्रस्तुतीकरण हार्दिक बधाई वंदना जी
जवाब देंहटाएंकरो विवेकानंद की, चर्चा मेरे मित्र |
जवाब देंहटाएंयुवा वर्ग के हृदय में, होय स्थापित चित्र |
होय स्थापित चित्र, ढेढ़ सौ साल हो रहे |
प्रासंगिक है सीख, समय समय पर जो कहे |
हे भारत के युवा, देश को अब मत अखरो |
पूरे कर कर्तव्य, शपथ लेकर मत मुकरो |
बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंमेहनत दिखाई दे रही है, बहुत सुंदर
बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा !!
जवाब देंहटाएंसुंदर और सार्थक चर्चा के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर चर्चा। आज की चर्चा में तकनिकी लिंक्स की कमी जरुर रही।
जवाब देंहटाएंachchhee charchaa --sundar links
जवाब देंहटाएंbahut hi sarthak charcha ... isme meri kahani ko shamil karne ke liye bahut bahut dhanybaad vandna ji ... aabhar
जवाब देंहटाएंhiii hello frend
हटाएंhiii hello friend
जवाब देंहटाएंHELLO FRIEND KYA MUJHEE AAP BATA SAKTE HO KI AAJ KI LIFE KASE HE OR OLD LIFE KASI HE PLZ GIVE ME ANS.........???
जवाब देंहटाएं