सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
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महाकुम्भ के अवसर परAnita |
दुआexpression |
कब तक करूं मै इंतजार, तेरे ज़वाब का.....!!!!कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा |
हिंद स्वराज-1
मनोज कुमार
*गांधी और गांधीवाद-**14**6*
*संदर्भ और पुराने पोस्टों के लिंक यहां पर*
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*1909***
*हिंद स्वराज-**1***
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*1909* में जब गांधी जी के लंदन से दक्षिण अफ़्रीका लौटने का समय पास था तो एक
महत्वपूर्ण घटना हुई। कनाडा में रह रहे एक भारतीय क्रांतिकारी तारक नाथ दास ने
लिओ टॉल्सटॉय को एक पत्र लिखा था। वह वैंकोवेर (*Vancouver*) से प्रकाशित होने
वाले पत्र ‘फ़्री हिन्दुस्तान’ के सम्पादक थे। उन्होंने टॉल्सटॉय से सलाह मांगी
थी कि भारत के लोग किस तरह ख़ुद को आज़ाद कर सकते हैं? रूस वासी इस संत ने बड़ा
साधारण सा जवाब दिया था – *भारतीय ख़ुद के ग़ुलाम हैं, ब्रिटिशों के नहीं। |
अगर जीवन सपना होता......यशवन्त माथुर |
भीगी सी एक बूंद ओस !शिवनाथ कुमार |
शहीदों के प्रति बैरुखी क्यों दिखाती हैं सरकारें !!(पूरण खंडेलवाल) |
कदाचार मुक्त भारत के लिए आम आदमी पार्टी का प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में आगाज
Surendra shukla" Bhramar"5
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मानवाधिकारियों का दोहरा चरित्र
Saleem akhter Siddiqui
करवाता बम प्लांट फिर, डाक्टर सिले समेट । डाक्टर सिले समेट, कहाँ मानव-अधिकारी । हिमायती हैं कहाँ, कहाँ करते मक्कारी । चुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल ? शत्रु देश नापाक, कहाँ का है तू नक्सल ?? |
सभ्यता शासन सुरक्षा क़ानून व्यवस्था दंड प्रक्रिया 2Er. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता
जली दिमागी बत्तियां, किन्तु हुईं कुछ फ्यूज ।
बरबस बस के हादसे, बनते प्राइम न्यूज ।
बनते प्राइम न्यूज, व्यूज एक्सपर्ट आ रहे ।
शब्द यूज कन्फ्यूज, गालियाँ साथ खा रहे ।
सड़ी-गली दे सीख, मिटाते मुंह की खुजली ।
स्वयंसिद्ध *सक सृज्य , गिरे उनपर बन बिजली ।।
*शक्ति |
मर्यादित वो राम जी, व्यवहारिक घनश्याम ।
देख आधुनिक स्वयंभू , ताम-झाम से काम ।
ताम-झाम से काम-तमाम कराते राधे ।
राधे राधे बोल, सकल हित अपना साधे ।
बेवकूफ हैं भक्त, अजब रहती दिनचर्या ।
कर खुद गीता पाठ, रोज ही जाकर मर-या ।
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दर्द और बाज़ार !
संतोष त्रिवेदी
दर्द दूसरे के उदर, तड़पे खुद बेकार | तड़पे खुद बेकार, लगा के भद्र मुखौटा | मक्खन लिया निकाल, दूध पी गया बिलौटा | वालमार्ट व्यवसाय, हुआ सम्पूरण कारज | जारकर्म संपन्न, तड़पती दर दर जारज || |
सच कहता हूँ...प्रतुल वशिष्ठ |
रोवै प्रस्तर पर पटक, जब भी अपना माथ |
व्यर्थ लहू से लाल हो, कुछ नहिं आवे हाथ |
कुछ नहिं आवे हाथ, नाथ-नथुनी तड़पावे |
दास ढूँढ़ता पाथ, किन्तु वो मुड़ी हिलावे |
होय दुसह परिणाम, अंत दोउ दीदा खोवै |
रविकर बारम्बार, कहे क्यों कोई रोवै ||
कहीं बर्फ़बारी विकट, काँप जाय मनु-हाड़ | काँप जाय मनु-हाड़, हमेशा छेड़-छाड़ हो | चले काम-लू-लहर, स्खलित भू पहाड़ हो | बादल फटते ढीठ, मरुस्थल भीगे रूखा | रखिये तन तैयार, खाइये रूखा सूखा || |
पेशी ओ-वेशी भड़क, बोले न्यायाधीश -
पेशी ओ-वेशी भड़क, बोले न्यायाधीश ।
बके गालियाँ राम को, लेकिन देख खबीस । लेकिन देख खबीस, *राम दो दो हैं आये । दे दलील वे किन्तु, जमानत हम ठुकराए । नियमबद्ध अन्यथा, एक क्षण भी है वेशी । करदूं काम-तमाम, आखिरी होती पेशी ।। * दोनों वकीलों के नाम में राम |
" A - B - C - D - छोड़ो.., दुश्मन का मुँह तोड़ो ".!!?
PD
SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN
and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of
PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
थोथी गीदड़ भभकियां, इस सत्ता का काम | सीमा पर सिर कट रहे, नक्सल फाड़ें चाम | नक्सल फाड़ें चाम, पेट बम प्रत्यारोपित | हिमायती हुक्काम, करें जनता को कोपित | नारी अत्याचार, सड़ी कानूनी पोथी | त्राहिमाम हरबार, कार्यवाही पर थोथी || |
मकर संक्रान्ति के अवसर पर आपने सुन्दर चर्चा की है!
जवाब देंहटाएंउत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!
मकर संक्रांति के अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ख़ूब! शुक़्रिया रविकर भाई! मकर संक्रान्ति की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएं....आभार एवं मकर संक्रान्ति की बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पठनीय सूत्रों के साथ विस्तृत चर्चा लोहड़ी और मकर सक्रांति की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की शुभ-कामनाएँ............
जवाब देंहटाएंजाने को है शिशिर ऋतु , आने को ऋतुराज
आग जला कर झूम लें,हम तुम मिलकर आज ||
सूर्य उत्तरायण हुए , मकर – संक्रांति पर्व
जन्में भारत - देश में , हमें बड़ा है गर्व ||
मिलजुल कर रहना सदा, हर खाई को पाट
मीठा-मीठा बोल कर , सबको तिल गुड़ बाँट ||
सरसों झूमें झाँझ ले , गेहूँ गाये गीत
चना नाचता मस्त हो , तिल तो बाँटे प्रीत ||
मटर मटकता बावरा , मूंगफली मुस्काय
मुँह मसूर का खिल उठा, मौसम खूब सुहाय ||
नेह रेशमी डोर फिर , माँझे का क्या काम
प्रेम – पतँगिया झूमती ,ज्यों राधा सँग श्याम ||
ऋतु आवत – जावत रहे , पतझर पाछ बसन्त
प्रेम – पत्र कब सूखता ? इसकी आयु अनन्त ||
खूबसूरत चर्चा लिंक और इसमें मेरे लेख को भी जुड़ने का सौभाग्य मिला इसके लिए आभार !!
जवाब देंहटाएंसौवें पोस्ट की बधाई...जानकारी भरे लिंक्स...आभार !! मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंसूर्य उत्तरायण हुए , मकर – संक्रांति पर्व
जन्में भारत - देश में , हमें बड़ा है गर्व ||...अरुण सर का यह दोहा बहुत अच्छा लगा|
बढ़िया प्रस्तुति ! मकर संक्राति की मंगलमय कामनाये !
जवाब देंहटाएं@ रविकर : गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
जवाब देंहटाएंमारो मन के पाप को,काटो कलुष विचार
हे माता ममतामयी , कर दो अब उद्धार
कर दो अब उद्धार, तमस है बहुत घनेरा
उगा ज्ञान का सूर्य , हमें दो नया सबेरा
मन में बैठे दैत्य , तुरत इनको संहारो
काटो कलुष विचार,पाप को मन के मारो ||
(रविकर की 100 वीं प्रस्तुति)
जवाब देंहटाएंशतकवीर रविकर बनें,बहुत बधाई मित्र
यूँ ही चर्चा मंच पर,सदा खींचिए चित्र ||
रविकर जी को मेरी तरफ से 100 बेहतरीन चर्चाओं के लिए हार्दिक बधाई। आपके द्वारा की गयी चर्चा का एक अपना अंदाज होता है। पिछली चर्चाओं की तरह आज की चर्चा भी काफी हटकर रही।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स एक से बढकर एक
मुझे शामिल करने के लिए आभार
100 वीं चर्चा के लिये हार्दिक बधाई……………सुन्दर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंNice links.
जवाब देंहटाएंन तो मैं कुछ बना सका न मैं कुछ भी सजा सका..,
जवाब देंहटाएंजहा किसी ने खुदा लिखा मैं उसको भी मिटा चला.....
बहुत सुन्दर चर्चा...
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया रविकर जी...
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
अनु
100वीं चर्चा करने के लिए आपको बधाई हो रविकर जी!
जवाब देंहटाएं--
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं@@ आलमी स्तर पर हो चुका है मौसम का बिगडैल मिजाज़
जवाब देंहटाएंमानव ने छेड़ा इसे , भुगत रहे हैं आज
अब मौसम का देखिए,बिगड़ा हुआ मिजाज
बिगड़ा हुआ मिजाज , संतुलन इसने खोया
कहीं बरसती आग , बाढ़ ने कहीं डुबोया
झूमा मद में चूर , हाय बन बैठा दानव
दोहन से आ बाज,सँभल जा अब भी मानव
जवाब देंहटाएं@@@ सच कहता हूँ...
खुद को दण्डित कर दिया, यह प्रायश्चित खूब
किंतु सत्य का सूर्य कब , गया तमस में डूब
गया तमस में डूब , निराशा में आशा है
नहीं अश्रु की सदा , एक - सी परिभाषा है
भावुकता को नहीं , कीजिये महिमा मण्डित
निर्णायक नहिं आप,न कीजे खुद को दण्डित ||
आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें,
जवाब देंहटाएंरविकर जी नारी मन को सम्मिलित करने का शुक्रिया।
सर जी मछली जब कांटे में आ जाती है तब वह पानी में ही होती है .कांटे से मुक्त होने के लिए वह मचलती ज़रूर है लेकिन जहां तक पीड़ा का सवाल है निरपेक्ष बनी रहती है मौन सिंह की तरह
जवाब देंहटाएं.मछली के
पास प्राणमय कोष और अन्न मय कोष तो है ,मनो मय कोष नहीं है .पीड़ा केंद्र नहीं हैं .हलचल तो है चेतना नहीं है दर्द का एहसास नहीं है .शुक्रिया ज़नाब की टिपण्णी के लिए .
मंगल मय हो संक्रांति पर्व .देश भी संक्रमण की स्थिति में है .सरकार की हर स्तर पर नालायकी ने देश को इकठ्ठा कर दिया है .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
दोहे पे दोहे ,सब तोकू टोहे
"दोहा-चार चरण-दो पंक्तियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उच्चारण
शुभ भाव शुभ कामना से सिंचित रचना .आभार .ठंडी बयार चले देश में सुख शान्ति की , दुश्मनों का सर्वनाश करे भारतीय सेना ,मौन सिंह को सद्बुद्धि दे ,नींद से उठाए .
जवाब देंहटाएंमहा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
सर जी मछली जब कांटे में आ जाती है तब वह पानी में ही होती है .कांटे से मुक्त होने के लिए वह मचलती ज़रूर है लेकिन जहां तक पीड़ा का सवाल है निरपेक्ष बनी रहती है मौन सिंह की तरह
जवाब देंहटाएं.मछली के
पास प्राणमय कोष और अन्न मय कोष तो है ,मनो मय कोष नहीं है .पीड़ा केंद्र नहीं हैं .हलचल तो है चेतना नहीं है दर्द का एहसास नहीं है .शुक्रिया ज़नाब की टिपण्णी के लिए .
मंगल मय हो संक्रांति पर्व .देश भी संक्रमण की स्थिति में है .सरकार की हर स्तर पर नालायकी ने देश को इकठ्ठा कर दिया है .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
दोहे पे दोहे ,सब तोकू टोहे
समर्थक
MONDAY, JANUARY 14, 2013
महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप- चर्चा मंच 1124--- (रविकर की 100 वीं प्रस्तुति)
महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
अब धियाँ दी लोड़ी .....|
udaya veer singh
उन्नयन (UNNAYANA)
कुंभ 2013 - 360 साल बाद अमृत योग
RAJESH MISHRA
DHARMMARG
महाकुम्भ के अवसर पर
Anita
मन पाए विश्राम जहाँ
"लोहिड़ी के दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण
"दोहा-चार चरण-दो पंक्तियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जवाब देंहटाएंआज के माहौल की उदास परतों को उधेड़ती है यह रचना नया रूपकात्मक भेष भरे .बढिया बिम्ब ,सशक्त अभिव्यक्ति अर्थ और विचार की .संक्रांति की मुबारकबाद .लोहड़ी का रस बरसाती रचना के लिए आभार .आपकी सद्य टिप्पणियों के लिए
आज के माहौल की उदास परतों को उधेड़ती है यह रचना नया रूपकात्मक भेष भरे .बढिया बिम्ब ,सशक्त अभिव्यक्ति अर्थ और विचार की .संक्रांति की मुबारकबाद .लोहड़ी का रस बरसाती रचना के लिए आभार .आपकी सद्य टिप्पणियों के लिए
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र भाई देश आज उस हालात में पहुँच गया है की अब तक सिर्फ आदेश लेने वाली सेना खुद फैसला कर ले तो देश अन्दर से खुश ही होगा .इस राजनीतिक प्रबंध ने उस दो कौड़ी के प्रवक्ता को जिसने देश की सर्वोच्च सत्ता एवं शौर्य के प्रतीक सर्वोच्च कमांडर (तत्कालीन वी के सिंह जी )के लिए कहा -वह है क्या एक सरकारी नौकर भर है .सोनिया इंतजाम ने उस बित्ते से प्रवक्ता को आज सूचना प्रसारण मंत्रालय खुश होकर सौंप दिया .क़ानून में सैंध लगाके विकलांगों की बैसाखी खा जाने वाले क़ानून मंत्री को खुश होकर विदेश मंत्री बना दिया है वह आदमी आज इत्मीनान से कहता है .सरकार बात ही तो कर सकती है वह बात कर रही है .आज ज़नाब इस बात से बहुत खुश हैं दोनों तरफ के फ्लेग कमांडरों की मीटिंग तो हुई .स्तर देखिये इनके संतोष का .
अलबत्ता हर स्तर पर सरकार की नालायकी ने इधर उधर बिखरे लोगों को एक जगह लाकर खड़ा कर दिया है जहां वह इस स्वाभिमान हीन सरकार से कैसे भी छुटकारा पाना चाहेगी .सेना पहल करे देश उसके साथ है देश का स्वाभिमान उसके साथ है .सरकार को गोली मारो .
गूंगा राजा बहरी रानी ,दिल्ली की अब यही कहानी .
बंधुआ मजदूर नहीं है देश की सेना !
महेन्द्र श्रीवास्तव
आधा सच...
मन की गहन पीड़ा की बड़ी सशक्त अभिव्यक्ति हुई है इस रचना में विछोह का दर्द उभरा है यादों के समुन्दर की ओट लेके .
जवाब देंहटाएंदुआ
प्रेम में
रख दिये थे उसने
दो तारे मेरी हथेली पर
और कस ली थी मैंने
अपनी मुट्ठियाँ....
भींच रखे थे तारे
तब भी ,जब न वो पास था न प्रेम....
जुदाई के बरसों बरस
उसकी निशानी मान कर.
तब कहाँ जानती थी
कि मुरादों के पूरा होने की दुआ
हथेलियाँ खोल कर
टूटते तारों से मांगनी होगी...
मगर
उस आखरी निशानी की कुर्बानी
मुझे मंज़ूर नहीं थी,
किसी कीमत पर नहीं.....
मेरी लहुलुहान हथेलियों ने
अब भी समेट रखे हैं
वो दो नुकीले तारे...
अनु
दुआ
expression
my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन..... -
जवाब देंहटाएंसुन्दर सेतु संयोजन और समन्वयन के लिए बधाई .
जाकी रही भावना जैसी प्रभु ,मूरत देखि तिन तैसी ,
जवाब देंहटाएंजाकी रही भावना जैसी प्रभु ,मूरत देखि तिन तैसी ,
जाकू प्रभु विपदा देहीं ,ताकी मत पहले हर लेहीं .
निदा फाजली की शाएरी में बदलाव?
IRFAN
ITNI SI BAAT
जवाब देंहटाएंएक मर्तबा लालूजी ने राहुल बाबा की तुलना महात्मा गांधी से ही कर दी थी .उन का आशय साफ़ था ,तू लाठी लेके भारत भ्रमण कर राज में करूंगा .उस वक्त ज़नाब लालू रेल संभाले थे .निदा साहब क्या चाहते हैं पूछना पड़ेगा .कुछ ज़हीन लोग कह सकते हैं :अरे क्या बात है आउट आफ बोकड थिंकिंग है .
बहुत सुंदर उम्दा लिंक्स ,,,100 वीं चर्चा के लिये हार्दिक बधाई…शुभकामनाए
जवाब देंहटाएंrecent post: मातृभूमि,
हमारी पोस्ट शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर
100वीं चर्चा करने के लिए आपको बधाई हो रविकर जी!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सामिल किया .धन्यवाद ,आभार