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Wednesday, January 30, 2013

इक अदद चेहरा - -(बुधवार की चर्चा-1140)


आप सबको प्रदीप का नमस्कार |
(2 अक्टूबर 1869)-(30 जनवरी 1948)
गांधीजी को सादर श्रद्धांजलि |

अब चलते हैं आज की चर्चा की ओर |
इक अदद चेहरा - -
अग्निशिखा


मुखौटों की भीड़, और इक अदद ख़ालिस चेहरे
की तलाश, बहोत मुश्किल है बहरान
दरिया की सतह पर, अक्स
नाख़ुदा का उभरना !
दुःस्वप्न
@ ॥ दर्शन-प्राशन ॥


निशा आधी नग्न होकर
मेरी शैया के किनारे
आई सुधा-मग्न होकर
लिए नयनों में नज़ारे।
किसानों की आत्महत्या: कितनी बड़ी समस्या?
दरअसल

किसान
कफ़न अपना बुने जा रही हूँ
@ Benakab


बेटिओं के किस्से लिखे जा रहीं हूँ
कफ़न अपना ख़ुद बुने जा रही हूँ

कब कहाँ जल उठे बेटिओं की चिता
बन अभागन का आँचल जिए जा रही हूँ
फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ...
गिरीश पंकज


फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ
है यही इक सिलसिला, मैं क्या कहूँ

देख ली तेरी वफ़ा मैंने इधर -
ला, जहर मुझको पिला, मैं क्या कहूँ
रिश्तों को चाहिये
सफर के सजदे में


कड़वे से घूँट
सब्र के प्याले से
हाय क्या अन्दाज़ हैं
दर्द के निवाले से
पुस्तकालय ऐसे भी..
@ स्पंदन


यदि विदेशी धरती पर उतरते ही मूलभूत जानकारियों के लिए कोई आपसे कहे कि पुस्तकालय चले जाइए तो आप क्या सोचेंगे? यही न कि पुस्तकालय तो किताबें और पत्र पत्रिकाएं पढ़ने की जगह होती है, वहां भला प्रशासन व सुविधाओं से जुड़ी जानकारियां कैसे मिलेंगी।
वंशवाद से नहीं विकासवाद से चलता है देश
तेताला


आखिर कुछ आच्छा दिखने लगा भाजपा में, एक बुरे दौर से गुजर रही भाजपा ने लोकसभा चुनाव के पहले कुछ अनोखे पहलुओ पर काम करते हुए देश को दिखा दिया की ये किसी परिवारवाद पर चलने वाला दल नहीं है !
कविता उसके पार खडी है लुप्तप्राय सी
Impleadment

"प्यार के माने
हमारे और ...तेरे और हैं
इसलिए प्यार मेरे यार मैं लिखता नहीं
स्नेह यदि स्वीकार हो सत्कार कर लेना
हमन है इश्क़ मस्ताना
लिखो यहां वहां


हमन है इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या?
रहें आज़ाद या जग से हमन दुनिया से यारी क्या?

जो बिछुड़े हैं पियारे से भटाकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम मेम हमन को इन्तज़ारी क्या?
भ्रष्ट कहा तो सुलग गई
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र


चलिये, नंदी महोदय ने आरक्षण का एक और पहलू सामने रख दिया। उनके बयान के बाद भ्रष्टाचार की वर्गवार स्थिति पर वर्तमान में भले ही एक अलग प्रकार का माहौल बना दिख रहा हो, वर्ग विशेष में रोष का वातावरण दिख रहा हो किन्तु इस विषय पर एक प्रकार की बहस की गुंजाइश दिखाई देती है।
जिन्दगी है एक धूप छाँव सी;
अन्तर्गगन


जिन्दगी है एक धूप छाँव सी;
पल-पल बदले शहर गाँव सी!
साहित्य सम्मेलन में साहित्यकार बीरबल
सफ़ेद घर


"बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय"
इस शख्श को बोलने के दस्त लगें हैं
@ ram ram bhai


जब से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखने की आकांक्षा लोगों में बलवती होती जा रही है ,कांग्रेसियों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं हैं .इसमें उन्हें अपनी करतूतों का डर ज्यादा सता रहा है
दामि‍नी.....नहीं मि‍लेगा तुम्‍हें न्‍याय
@ रूप-अरूप


मत करो दामि‍नी
तुम कि‍सी इंसाफ का इंतजार
नहीं मि‍लेगा तुम्‍हें न्‍याय
रच शौर्य गाथा ना गा चाँचरी
" सोच का सृजन "

आ जा ,सुन ल जा बात खरी-खरी
ना बताइब ,ना समझाइब बारी-बारी
बहुत चला चु क ल जा जुबान के आरी
अब आ गइल बा ओकर पारी
थका मादा
@ बेचैन आत्मा


देर शाम
सब्जियों का भारी झोला उठाये
लौटते हुए घर
चढ़ते हुए
फ्लैट की सीढ़ियाँ
मत बांधो मुझको परिभाषा के बंधन में
@ Kashish - My Poetry


मत बांधो मुझको परिभाषा के बंधन में,
मुझको तो बस नारी बन कर जीने दो
.
पहरा....
@ मैं और मेरी कविताएं


बावली है...
आजकल उसे
चंदामामा, बिल्ली मौसी,
चिड़िया रानी, परियों के
सपने नहीं आते
तेरे आने से
मेरा मन पंछी सा


तेरे आने से रोशन मेरा जहाँ हो गया
तेरे प्यार से महकता आशियाँ हो गया .....
इक अदद चेहरा - -
@ अग्निशिखा


मुखौटों की भीड़, और इक अदद ख़ालिस चेहरे
की तलाश, बहोत मुश्किल है बहरान
दरिया की सतह पर, अक्स
नाख़ुदा का उभरना !
कोशिश
@ मेरे हिस्से की धूप


हर मुनासिब कोशिश की तुम्हें मनाने की
तुमने तो ठान ली थी ...बस दूर जाने की

जानते थे तेरी किस बात से डर लगता है
अपना ली वही आदत पार पाने की
मेरे हक में जब भी फैसला होगा
@ " मेरे जज्बात "


मेरे हक में जब भी फैसला होगा
पत्थर उनके और सर मेरा होगा
लहुलुहान जिस्म है मेरे शहर का
फिर से मजहबी खंजर चला होगा
तन की सुन्दरता या मन की
Love


हँसी आती है मुझे
ये देख कर की लोगों के
बोलने मे
और सोच मे
कितना फरक होता है
तुम्हारी याद
@ Do Took

लो, अबकी फिर से भूल गए अपनी यादें साथ ले जाना
कितनी बार कहा था यादों का बैग छोड़ मत जाना
बहुत परेशान करती हैं मुझे पीछे से...
अनचाहे ब्लॉग वेबसाइट ब्लॉगर के अपडेट से छुटकारा पायें
कंप्यूटर वर्ल्ड हिंदी -

सुनो………।
@ ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र


सुनो
तुम ज़लालत की ज़िन्दगी जीने
और मरने के लिये ही पैदा होती हो
सुनो
तुम जागीर हो हमारी
कैसे तुम्हारे भले का हम सोच सकते हैं
नहीं करे एतबार, बड़ी चालाक प्रियतमा-"लिंक-लिक्खाड़"
"आने वाला है बसन्त"
@ च्चारण

आने वाला है बसन्त,
अब प्रणय दिवस में देर नहीं।
कुहरा छँटने ही वाला है,
फिर होगा अन्धेर नहीं।।
आज के लिए बस इतना ही | मुझे अब आज्ञा दीजिये | मिलते हैं अगले बुधवार को कुछ अन्य लिंक्स के साथ |
तब तक के लिए अनंत शुभकामनायें |
आभार |

30 comments:

  1. चहकती-महकती सुन्दर चर्चा!
    आभार इं.प्रदीप कुमार साहनी जी!
    --
    रविकर जी से एक निवेदन!
    मान्यवर,
    मुझे कल देहरादून के लिए निकलना है।
    रविकर जी आप रविवार की चर्चा लगाने की कृपा करें!
    सादर सूचनार्थ!
    धन्यवाद!

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  2. शुभप्रभात !!
    मेरी रचना यहाँ लाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया !!
    शुभकामनायें !!

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  3. बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सजी चर्चा..

    ReplyDelete
  4. प्रिय प्रदीप जी-
    शुभकामनायें-
    बढ़िया -
    सुरूचिपूर्ण प्रस्तुति ||

    ReplyDelete
  5. प्रदीपजी मेरी रचना को स्थान देने लिए हार्दिक आभार ...वाकई बहुत ही दिलचस्प लगीं सारी पोस्ट्स ...बधाई ..!!

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  6. आपके लिँक कलेकश्न हमेँशा से अच्छी लगती रही आज भी एक से बढकर एक हैँ ।

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  7. एक से बढकर एक,बहुत सार्थक लिंक्स के साथ सजी आज की चर्चा,आभार।

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  8. वाह प्रदीप जी बहुत ही सुन्दर विस्तृत चर्चा बधाई आपको

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  9. bahut sundar charcha...meri rachna ko yahan sthan dene kay liyee shukriya

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  10. प्रदीप भाई बहुत ही सुन्दर चर्चा है बधाई स्वीकारें

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  11. बेहतरीन लिंक्स...
    आभार..
    :-)

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  12. सुन्दर लिंक्स से सुसज्जित शानदार चर्चा

    ReplyDelete
  13. मेरी रचना को चर्चा मंच पर जगह देने के लिए बहुत-बहुत आभार। सभी लिंक्स बहुत सुंदर हैं...।

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  14. सुन्दर लिंक्स से सजी रोचक चर्चा...आभार

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  15. सुन्दर लिंक संयोजन . बहुत आभार.

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  16. शालिनी कौशिक ने कहा…
    वीरुभाई जी इसे कहते हैं अंधभक्ति अगर आपके मोहन भगवत जी इन्हें ''जी''या साहब कहते तो आप कोई न कोई तर्क उनके समर्थन में दे ही देते कि उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उन्हें झाड़ पर चढ़ा कर गिराने का इरादा रखते थे वैसे मोदी जी की खिलाफत बहार तो कम उनके अपने दल में ही कुछ ज्यादा है इस पर भी तो कुछ कहिये रोचक प्रस्तुति मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी

    29 जनवरी 2013 10:22 pm


    Virendra Kumar Sharma ने कहा…
    मैंने दिग्विजय के वक्तव्यों पर सवाल उठाए थे .उन्होंने ओसामा बिन लादेन और हाफ़िज़ सईद के लिए "जी "और "साहब "का प्रयोग किया है .इस देश के स्वाभिमान को चुनौती देने वाले

    ,मुंबई पर हमला करने वाले सैंकड़ों हजारों लोगों के हत्यारे और भारत को अपना दुश्मन घोषित करने वाले इन आतंकवादियों के लिए "जी" और "साहब "जैसे आदरसूचक शब्दों का प्रयोग

    करना किस न्याय के अंतर गत तर्क संगत है ?अपराध करने वाले व्यक्ति का सहकारी भी अपराधी माना जाता है .कोई और स्वाभिमानी देश होता तो दिग्विजय जैसी प्रवृत्ति के व्यक्ति को

    शेष जीवन एडियाँ रगड़ने के लिए जेल में डालदेता .दुर्भाग्य यह है कि आप जैसी शिक्षित महिला भी परोक्ष रूप से दिग्विजय का समर्थन कर रही हैं .जब आप मेरे द्वारा कहे गए तर्कों को

    पचाने से इनकार करती हैं तो आतंकवाद की समर्थक भाषा का प्रयोग करने वाले दिग्विजय को कौन सम्मान देगा .ये तो भारत का लोक तंत्र है जिसमें दिग्विजय जैसे राष्ट्र हित के विरोधी

    और आप जैसी उनकी समर्थक दनदनाते फिर रहें हैं .आपका कोई दोष नहीं है .बस इतना ही कि राष्ट्रहित को देखके टिपण्णी दिया करें .

    30 जनवरी 2013 1:02 pm

    इस शख्श को बोलने के दस्त लगें हैं
    @ ram ram bhai

    जब से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखने की आकांक्षा लोगों में बलवती होती जा रही है ,कांग्रेसियों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं हैं .इसमें उन्हें अपनी करतूतों का डर ज्यादा सता रहा है

    ReplyDelete
  17. सेतु चर्चा मंच के विशिष्ठ साहित्यिक तेवर लिए हैं आज कविता से तल्ख़ झरबेरियों वाले आलेख तक ,चुभन और सिरहन सब कुछ है आज चर्चा में .हमें चर्चा में बिठाने के लिए आभार ,दिल से .

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  18. हमारे समय का एक विद्रूप और नाबालिग लम्पट सभी दर्द एक साथ लिए है त्यह रचना ,माँ -बाप की दुभांत भी ,


    कफ़न बुने जा रही हूँ



    बेटिओं के किस्से लिखे जा रहीं हूँ
    कफ़न अपना ख़ुद बुने जा रही हूँ

    कब कहाँ जल उठे बेटिओं की चिता
    बन अभागन का आँचल जिए जा रही हूँ

    न हया है बची कहीं देश में अब
    लाश,बन एक ,ख़ुद को ढुले जा रही हूँ

    नियम कानून की धज्जियाँ उड़ रहीं हैं
    एक जलती चिता बन जिए जा रही हूँ

    कोख से ही बेबस हो गई बेटियाँ अब
    जन्म लेने के पहले ही मरी जा रही हूँ

    सत्य को गरिमा मिले बेटियाँ हीं सत्य हैं
    यही अरमा सजोए मैं जिए जा रही हूँ

    कफ़न अपना बुने जा रही हूँ
    @ Benakab

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  19. बड़ी वि‍स्‍तृत चर्चा सजाई है आपने...मेरा भ्रमण जारी है। रूप-अरूप को शामि‍ल करने का शुक्रि‍या..

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  20. बहुत बढ़िया लिंक्स संकलन ...स्थान देने का शुक्रिया...

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  21. बहुत बढ़िया लिंक्स..आभार

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  22. सुन्दर चर्चा!Benakab करने को स्थान देने का शुक्रिया
    आभार इं.प्रदीप कुमार साहनी जी!

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  23. अघ ते अघ अगुवन करें फिर जा कुंभ नहाएँ ।
    जे जी मन चंगा धरें गँगा कठौत सुहाए ।।

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  24. आभार। इस मेहनत को सलाम . निरंतर मेहनत बड़ी बात है। अनेक अच्छी लिनक्स मिले

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  25. A beautiful collection!
    http://voice-brijesh.blogspot.com

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