लीजिये हाजिर है आज की चर्चा
एक अदद मुस्कुराहट का सवाल है
ज़िन्दगी बोल तेरा क्या ख्याल है
शान हिल की ट्विटर कहानियां
मेरा लिखा हर शब्द मुझे पन्ने पर थोड़ा सा और टपका जाता है. कुछ दिनों में मैं
किताब हो जाऊंगा, किताब मेरी जगह ले लेगी और कहानी कह दी जाएगी.
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एलिसा से मैं समुद्र तट पर मिला. कार के पास लाकर उसे पोंछा. फिर भी जब किसी
जादू के जोर से उसके पैर नहीं नुमाया हुए तो मेरी दिलचस्प...
फांसले
फांसले
जिन्दगी कि जड़ो में
गहराती हुई
एक परिभाषा
फांसला जमीं आसमां के बीच का
फांसला डूबते सूरज और उगते चाँद के बीच
उनकी सीमाए तय करता
लेकिन इन फासलों में
ही सांस लेता है
सबका अपना अपना वजूद
वो हैं क्योकिं फासले हैं
अच्छे लगने लगे हैं
मुझे ये फासले
मैं गंगा बनकर आती हूँ
क्या उत्तर दूँ जग को मैं
कौन हृदय मे बसता है
आतुर,विकल नयन मे,
एक स्वप्न तुम्हारा सजता है।
तुम दुर्लभ से लगते हो क्यूँ?
...जैसे मुझे मिल ना पाओगे,
शूलों से भर हुआ जीवन
पुष्पों से सजा ना पाओगे
मैं गंगा बनकर आती हूँ
के प्यास बुझा लो तुम अपनी
तुम सागर तट पर जाते हो
क्यूँ प्यास बुझाने को अपनी ?!!!!
...... दामिनी माध्यम है स्व का .... सैनिक अपने स्व की तलाश में खो रहे (3)
अपनी पुकार दामिनी छोड़ गई
पर - सबने अपने घर के दरवाज़े बंद कर लिए हैं
या फिर गाली पर उतर आये हैं या मखौल पर
शहीद का शरीर भारत में
सर दुश्मनों के नापाक इरादों में
उनकी पुकार सरहद पार नहीं कर रही .....
आम जनता तो उलझी है इसने क्या कहा,उसने क्या कहा में ....
क्षणिकाएं- 2
अहम्
अक्सर देखा हैरिश्तों को
पहल के दायरेमें -
उलझते हुए -
वादे....
दावे....
रिश्तों की अहमियत.....
प्रघाड़ता.....
सब - दायरे के बाहर
विस्थापित से -
सर झुकाए खड़े रहतेहैं
और भीतर-
रहता है साम्राज्य
'अहम्' का !
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तो कौन सा है दर्द भारी ?
सीमा में घुसपैठ हो, शीत युद्ध दे छेड़ ।
विस्फोटों की बाढ़ है, पावे नहीं खदेड़ ।।
मजबूरी है क्या सरकारी ?
तो, कौन सा है दर्द भारी ?
मारे फौजी, काट सिर, जाता है धड़ फ़ेंक ।
हरदम कड़ा जवाब दे, सत्ता अपनी नेक ।।
कांग्रेस के हम आभारी ।
तो, कौन सा है दर्द भारी ?
'' रघुवीर सहाय को समग्रता में देखा जाना चाहिए''-मंगलेश डबराल
अकादमी ऑफ़ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के कवि रघुवीर सहाय को समर्पित कार्यक्रम
'डायलाग' एक रपट - 29 दिसम्बर 2012
--------------------------------------------------------- इस कार्यक्रम से
दौरान दिल्ली में गैंग-रेप प्रकरण के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के कारण
स्त्री-विमर्श चर्चा का विषय रहा और इस बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम को भी
स्त्री-अस्मिता और सुरक्षा को ही समर्पित किया गया। इस कार्यक्रम को 'दामिनी'
और उस जैसी बहुत सी लड़कियों को समर्पित करते हुए..
'इनके' 'उनके' सपने.............
*(चित्र आदरणीय अफलातून जी की फेसबुक वॉल से )*
सपने 'ये' भी देखते हैं
सपने 'वो' भी देखते हैं
'ये' इस उमर में कमाते हैं
दो जून की रोटी जुटाते हैं
जुत जुत कर रोज़
कोल्हू के बैल की तरह
'उनको' निहार कर
'ये' बस मुस्कुराते हैं
'इनको' पता है कि दुनिया
असल में होती क्या है
रंगीन तस्वीरें हैं
मगर अक्स स्याह है
'इनके' सपनों की दुनिया में
पुतली और सितारा … डॉ नूतन गैरोला
वह, एक सितारा था, शहर के ऊपर घने बादलों के पार चाँद की दुनियां से भी बहुत
दूर ... और वह औरत उसकी रौशनी में अंधेरों को मिटाती अकेले दुनियां के सफ़र में
.. लोगो के लिए उसकी दुनियां चार दिवारी थी और खुद वह उस दीवार को कभी नहीं
तोड़ पायी थी, न ही उस दरवाजे के ताले की चाभी उसके पास थी और दरवाजा भी ऐसा की
जिसके पलड़े कभी भी बाहर की ओर नहीं खुलते थे .............
उसके सोच से सोचना
वो निरंतर
कहती थी मुझसे
तुम भी वैसे ही सोचो
जैसे मैं सोचती हूँ
दुनिया की बुराइयों के
रंग ही मत देखा करो
प्यार स्नेह के रंगों को भी
देखा करो
बार बार की मनुहार से
थक हार कर
वैसे ही सोचने लगा
जैसा वो चाहती थी
शुभकामनाएँ
* १८ जनवरी
२०१३
शादी की प्रथम वर्षगाँठ पर
ढेर सारा प्यार! *
* हार्दिक बधाई,शुभकामनाएँ और शुभाशीष- सफ़ल दाम्पत्य
जीवन के लिए....*
कभी मेरे आँगन उतरते हो तुम
तो कभी तुम्हारे आँगन में मैं
चुगते हैं दाना
चहचहाते हैं खुशी से...
स्टैच्यू बोल दे...
स्टैच्यू बोल दे...
*******
जी चाहता है
उन पलों को
तू स्टैच्यू बोल दे
जिन पलों में
'वो' साथ हो
और फिर भूल जा...
***
एक मुट्ठी ही सही
तू उसके मन में
चाहत भर दे
लाइफ भर का
मेरा काम
चल जाएगा...
***
भरोसे की पोटली में
ज़रा-सा भ्रम भी बाँध दे
सत्य असह्य हो तो
भ्रम मुझे बैलेंस करेगा...
***
...
गंगा तुम भी पवित्र हो जाओ--------
गंगा की छाती पर
भर गया महाकुंभ
महाकुंभ में बस गई
कई कई बस्तियां
बस्तियों में जुट रही हस्तियां------
वह जो उजाड़ते आये हैं
निरंतर,लगातार,हरदम
कई कई अधबनी बस्तियां
बस चुकी बस्तियां
बसने को आतुर बस्तियां---------
अरकाटीपन,बनावटीपन
चिन्तक की चिंता
तरह तरह के गुरु मंत्र
टांग दी गयी हैं
छलकपट की दुकानों पर
आध्यात्म की तख्तियां-------
स्त्री तो स्त्री होती है
स्त्री तो स्त्री होती है
फिर चाहे वो
पड़ोस की हो
पडोसी नगर की हो
या पडोसी मुल्क की
मिल जाता है तुम्हें लाइसेंस
उसके चरित्र के कपडे उतारने का
उसको शब्दों के माध्यम से बलात्कृत करने का
उसको दुश्चरित्र साबित करने का
"प्यार कहाँ से लाऊँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
*आँखों का सागर है रोता**,*
*अब मनुहार कहाँ से लाऊँ**? *
*सूख गया भावों का सोता**, *
*अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ**?*
*पैरों से** **तुमने** **कुचले थे**,*
*जब उपवन में सुमन खिले थे**,*
*हाथों में है फूटा लोटा**,*
*अब जलधार कहाँ से लाऊँ**?*
*अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ**?* प्यार कहाँ से लाऊँ**?*
-
हर रात
तुम होती हो, बस मेरे साथ...
मेरे ख्वाबों में,
ख्यालों में...
नींदों में,
और कुछ अनसुलझे सवालों में...
बन कर एक जवाब सा,
एक अनदेखा ख्वाब सा...
एक साय...
लघुकथा) सुसाइड नोट
काले रंग के बुर्के में ढ़की थी वह..किसी बुत्त की तरह बैठी थी लेकिन उसकी नजरें हर तरफ दौड़ रही थीं..वह खुद को ऐसे लिबाज में लिपटा हुआ महसूस कर रही थी जो रोके हुआ था…ताजे हवा पानी को…उसकी आ.
ये जुगनू सी तेरी आंखें,तेरा चेहरा है किताबी सा,ये सोणी सी हंसी तेरी,वो बेंदा लाज़बाबी सा,तेरे माथे पे चमके है,पिया का रंग लाली सा,वो होठों पर खिली लाली,लगे जैसे शबाबी सा।यूं न देखो मुझे..
बहुत देर तकपसीजी रहीहथेलियांतुम्हारे गर्म स्पर्श केअहसास से....थिरकती रहीएक बूंदअधरों परलरजती रहीसीप की तलाश में......
लैपटॉप या पीसी पर आप कभी भी लाइव मैच और अपने फेवरेट टीवी सीरियल का मजा ले सकते हैं। वो भी बिना किसी चार्ज के। जी हां, बस इसके लिए आपको पेन ड्राइव की तरह दिखने वाले एक डिवाइस को लगाना
क्या आप भी रस्मी टिप्पणी करते हैं ?
क्या आप भी रस्मी टिप्पणी करते हैं ?
जैसा कि इस पोस्ट के टाईटल से जाहिर है, बहुत से ब्लॉगर रस्मी टिप्पणी करते
हैं | मैं भी कभी कभार इस तरह की टिप्पणी कर जाता हूँ | पता नहीं क्यूँ ? इस
तरह की टिप्पणियों को देखकर मन में कुछ प्रश्न उभरते हैं :-
१. क्या रस्मी टिप्पणी करना जरूरी है ?
२. क्या आप सिर्फ रस्म निभाने के लिए टिप्पणी करते हैं (रस्म से भाव है कि उस
ने मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी की थी इसलिए मुझे भी टिप्पणी करनी है ) ?
३. क्या रस्मी टिप्पणी करना निहायत जरूरी है ?
कहानियाँ सुनाती है पवन आती जाती ......>>> संजय कुमार
कहानियाँ सुनाती है पवन आती जाती
एक था दिया एक बाती
बहुत दिनों की है ये बात
बड़ी सुहानी थी वो रात
दिया और बाती मिले
मिलके जले एक साथ
ये चाँद ये सितारे बने सारे बाराती
एक था दिया ...
उठाई दोनों ने क़सम
जले बुझेंगे साथ हम
उन्हें ख़बर ना थी मगर
ख़ुशी के साथ भी है ग़म
मिलन के साथ साथ ही
जुदाई भी है आती
एक था दिया ...
मौत आती है आने दे डर है किसे, मेरे जीने की रफ्तार कम तो नहीं
बाँटने से कभी प्यार घटता है क्या, माप लेना तू इकबार कम तो नहीं
गम छुपाने की तरकीब का है चलन, लोग चिलमन बनाते हैं मुस्कान की
पार गम के उतर जूझना सीखकर, अपनी हिम्मत पे अधिकार कम तो नहीं
था कहाँ कल भी वश में ना कल आएगा,
मेरे जीने की रफ्तार कम तो नहीं
एक बलात्कारी की माँ का करुण आर्तनाद है यह जो ह्रदय को चीर देता है !
आज याद करती हूँ
तो बड़ा क्षोभ होता
है कि
तुझे पाने के लिए
मैंने
कितने दान पुण्य
किये थे
कितने मंदिर, मस्जिद
गुरुद्वारों में
भगवान् के सामने जाकर
महीनों माथा रगड़ा था
!
वो किसलिये ?
तुझ जैसे कपूत को
पाने के लिए ?
शब्द
शब्द, शब्दों में तलाशते हैं मुझे
और मैं ...उन शब्दों में तुम्हें !
रात जर्द पत्ते सी शबनम को टटोलती
चाँद जुगनू सा मंद मंद बुझा सा
नदी खामोश किनारों को सहलाती हुई
तब दूर कहीं सन्नाटे के जंगल में
सुनाई देता है मुझे दबा सा
कौन जिम्मेदार हैं इस दर्द ???
आज कल हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार में दूसरे पेज पर उन महिला के संस्मरण छापे जा
रहे हैं जिनका कभी ना कभी बलात्कार या मोलेस्टेशन यानी शारीरक शोषण हुआ हैं .
ये संस्मरण आप ई संस्करण में हर दिन 2 नंबर के पेज पर पढ़ सकते हैं
ज्योति सिंह पाण्डेय के साथ जो 16 दिसम्बर को हुआ वो कोई अपवाद नहीं था वो एक
आम घटना थी जो रोज किसी ना किसी महिला के साथ , बच्ची के साथ , बूढी के साथ हो
रही हैं .
जब कभी अपने पास आता हूँ
मकबरे पर दिया जलाता हूँ
फिर जरा दूर बैठ जाता हूँ
चैन की बाँसुरी बजाता हूँ
जब कभी अपने पास आता हूँ
कोई मंज़र हसीं नही होता
अब कहीं भी यकीं नही होता
याद भी साथ छोड़ जाती है
आँख से बूँद टपक जाती है
डूब जाने का डर तो है लेकिन
गहरे सागर में उतर जाता हूँ
चैन की बाँसुरी बजाता हूँ
जब कभी अपने पास आता हूँ
शब्द का शोर नहीं भाता है
आबरू ...
*क्राईटेरिया ...*
सुनो 'उदय'... जा के... कह दो सब से ...
सिर्फ ...
कुत्ते-औ-कुकुरमुत्ते ... ही हैं ...
अपने .... क्राईटेरिया में !
सिबाय उनके ...
किसी और को, ...
बादशाहत ............ नसीब नहीं होगी ??
...
जहाँ हैं हम अक्सर वहाँ नहीं होते
जहाँ हैं हम अक्सर वहाँ नहीं होते, तभी तो उसके दरस
नहीं होते
जिंदगी कैद है दो कलों में, आज को दो पल मयस्सर नहीं
होते
जनवरी की रेशमी, गुनगुनी धूप
सहलाती है तन को
बालसूर्य की लोहित रश्मियाँ
लुभाती हैं मन को..
ब्लाग : क्या भूलूं क्या याद करुं !
* आ*ज नहीं, सच में कई दिन से सोच रहा हूं कि आखिर पिछले साल मेरे साथ ऐसा
क्या हुआ जिसे याद रखूं और ऐसा क्या जिसे भूल जाऊं। वैसे लिखने के लिए मैं ये
कह रहा हूं कि अच्छी बातें याद रखूंगा और बुरी बातें भूल जाऊंगा, लेकिन मैं
कोई ईश्वर तो हूं नहीं कि सिर्फ अच्छी बातें सहेज कर रख लूं और बुरी बातें
एकदम से भूल जाऊं। मैं भी आप सबके बीच का ही हूं ना,
सैकिंड-हैण्ड देह-नीलामी !
जानता हूँ कि ऐसी कबाड़ी चीजे आप लोग नहीं सोच सकते, इसलिए यह नहीं लिखूंगा की
क्या आप भी कभी ऐसा सोचते है।
मान लो कि सैकिंड-हैण्ड गाड़ियों / सामान की तरह ही इंसानों की भी बिक्री /
नीलामी का प्रचलन होता तो मैं अपनी नीलामी का जो विज्ञापन निकालता उसका मजमून
कुछ इस तरह का होता :)
उम्मीद है काफ़ी रहे होंगे आज के लिये लिंक्स
फिर मिलेंगे ………शुभ दिन
सारे लिंक्स नये हैं मेरे लिये
जवाब देंहटाएंमिलवाने के लिये कोटिशः धन्यवाद
कई महत्वपूर्ण चिट्ठों का संकलन करके आपने जो पाठकों के सामने रखा - वह प्रशंसनीय है वन्दना जी - बधाई एवं शुभकामना
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
बहुत बढ़िया लिनक्स चुन लायीं हैं .......आभार
जवाब देंहटाएंविस्तार लिए हुए शानदार चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार!
धन्यवाद वन्दना जी इतने सारगर्भित लिन्क्स के बीच मेरी रचना को भी इस शानदार चर्चामंच में स्थान देने के लिए ! हर लिंक लाजवाब है ! आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात वन्दना जी :))
जवाब देंहटाएंमेहनत तारीफे - काबिल है !!
शुभकामनायें !!
behatreen ... shaandaar-jaandaar prastuti ... jay ho !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों का संयोजन..
जवाब देंहटाएंकाफी वृहद् चर्चा है ..सुन्दर लिंक्स में मेरी पोस्ट पुतली और सितारा को भी जगह मिली... आपका सादर शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा -
जवाब देंहटाएंमनभावन ||
शुभकामनायें आदरेया ||
बेहद सुन्दर चर्चा वंदना जी हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स वन्दना जी !आभार !
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा, बेहतर लिंक्स
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार
लघुकथा को भी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका आभार वंदना जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब वन्दना जी, इतने सारे लिंक्स..सभी विविधता लिए हुए..काफी वक्त चाहिए सभी पर जाने के लिए..बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत से सजाया है आपने आज चर्चा मंच | सभी लिंक्स अच्छे |
जवाब देंहटाएं.......... बढ़िया चर्चा वन्दना जी
जवाब देंहटाएंवंदना जी बहुत बढ़िया | आपने आज की चर्चा में जमकर मेहनत की है | इस चर्चा में आपने ३२ लिंक जुटाएं हैं | इस तरह से लिंक ढूंढना व उसे सबके साहमने प्रस्तुत करना काबिलेतारीफ़ है | मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंहिंदी टिप्स ब्लॉग की नयी पोस्ट : वर्तमान समय में लाल किताब की उपयोगिता
Wonderful work!: D
जवाब देंहटाएंवन्दना जी - बधाई एवं शुभकामना
जवाब देंहटाएंवंदना जी...आज कई नए ब्लाग पर जाना हुआ। अच्छा लगा। ये चर्चा मंच की वजह से है। मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका आभार...
जवाब देंहटाएंअच्छा संयोजन वंदना जी!
जवाब देंहटाएंआभार!!