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Tuesday, January 08, 2013

बदले काली सोच, पंख जो रही कतरती- चर्चा मंच 1118


2

संकल्प

अरुन शर्मा "अनंत"  

3

क्रान्ति-बीज बन जाना...

डॉ. जेन्नी शबनम 





8

चीख लेने दो मुझे


रश्मि प्रभा...  



11

" सारे नियम तोड़ दो - नियम पे चलना छोड़ दो "..!!???

PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.) 


13

पुरातत्वविद ....

स्वप्न मञ्जूषा 

14

रहा सुलगता प्यार, धुँआ परदे दर परदे -

 परदे पर लगती हवा, हुआ कलेजा चाक ।
 लट्टू-कंचा खेलते, ताक-झाँक आवाक ।
ताक-झाँक आवाक, श्याम-पट चित्र उकेरा ।
चाक लिए रंगीन, लगाया करता फेरा ।
 हुई निगाहें चार, पीर कोई क्यों हर दे ।
रहा सुलगता प्यार, धुँआ परदे दर परदे ।।


15

दूध की धुली नारियाँ -


सच्चित-सचिन  



लज्जा की प्रतिमूर्ति को, मिला नपुंसक नाथ |
काम वासना के लिए, क्यूँ ढूँढे नहिं पाथ ?

क्यूँ ढूँढे नहिं पाथ, उसे भी ज्वर चढ़ता है |
जो भी हत्थे चढ़े, सहारा बन बढ़ता है |

माने रविकर पक्ष, बिगाड़े पर क्या काकी ?
फ़ोकट में दे पाठ, बात समझो लज्जा की ||



16

खार जैसे रह गए हम डाल पर


नीरज गोस्वामी 

17

बदले काली सोच, पंख जो रही कतरती-

A

सर्द अहसास !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
जीना बन देता चढ़ा, दस मंजिल मजबूत |
है जीना किस हेतु तब, प्रश्न पूछता पूत |

प्रश्न पूछता पूत, पिता जी मकसद भूला |
भूल गया वह सीख, आज हूँ लंगडा लूला |

बढ़ी विश्व रफ़्तार, जाय दुत्कार सही ना |
अंधड़ गया उजाड़, कठिन है ऐसे जीना ||
जीना= सीढ़ी

B

राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँ


DR. ANWER JAMAL 
 Mushayera

शब्द शब्द अंगार है, धारदार हथियार |
नहीं दुश्मनी से भला, मित्र बांटिये प्यार |
मित्र बांटिये प्यार, भूख इक सी ही होवे |
बच्चों को अधिकार, कभी नहिं दुःख से रोवे  |
अपना अपना धर्म, नियम से अगर निभाओ |
हर बन्दे में ईश, सामने दर्शन पाओ || 

C

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-27

रही कतरती कल्पनी, शुभ्र-कल्पना-पंख |
मानहुँ अब कल्पांत का, कल्कि बजाये शंख |
कल्कि बजाये शंख, दंश गहरे अति गहरे |
दुष्ट कुतर्की लंठ, कल्कि के सम्मुख ठहरे |
रविकर कर संकल्प, बचाए पावन धरती |
बदले काली सोच, पंख जो रही कतरती ||
कल्पनी=कैंची
बैसवारी baiswari 

 मिनी इण्डिया जागता, सोया भारत देश |
फैली मृग मारीचिका, भला करे आवेश |


भला करे आवेश, रेस नहिं लगा नाम हित |
लगी मर्म पर ठेस, जगाये रखिये यह नित |


करिए औरत मर्द, सुरक्षित दिवस यामिनी |
रक्षित नैतिक मूल्य, बचाए सदा दामिनी ||


 अंधों की भरमार है, मार बिना चालाक |
सीधी राहों पर चलें, थामे अपनी नाक |
 
थामे अपनी नाक, नदी में रहे डूबते |
फिर भी है विश्वास, ठगी से नहीं ऊबते |
 
ढकोसलों की जीत, जीत है इन धंधों की |
भटके प्रभु को भूल, दुर्दशा है अंधों की ||

F

दामिनी के दोस्त का बयान और शर्मशार मानवता !!


 (पूरण खंडेलवाल) 

दुनिया भागमभाग में, घायल पड़ा शरीर |
सुने नहीं कोई वहां, करे बड़ी तकरीर |
करे बड़ी तकरीर, सोच क्या बदल चुकी है |
नहीं बूझते पीर, निगाहें आज झुकी हैं |
सामाजिक कर्तव्य, समझना होगा सबको |
अरे धूर्तता छोड़, दिखाना है मुँह रब को ||


G

हर वाशिंदा मोहल्ले का,तबसे ही वक्त पर घर पहुँचने लगा है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

 दोष पड़ोसन का नहीं, बिगड़ा बड़ा पड़ोस |
अंधड़ आते इस कदर, रहे नहीं तब होश |

रहे नहीं तब होश, रोस में कई पडोसी |
लेकर क्यूँ नहिं भगा, ताव खा कहते जोशी |

हुआ पडोसी मस्त, दिवाली से घर रोशन |
देख उसे खुशहाल, लगाती दोष पड़ोसन |

31 comments:

  1. आज की चर्चा का शंखनाद अच्छी लिंक्स के साथ |
    उम्दा लिंक्स |
    आशा

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  2. बहुत सुन्दर चर्चा!
    आपकी पसंद के लिंक पठनीय हैं।
    आभार!

    ReplyDelete
  3. लिंक 17 डी-
    हमारी सोच ही बदल गयी है।
    मगर कौन बदलेगा इस सोच को?

    ReplyDelete
    Replies
    1. लिंक 17 डी को लिंक 17 जी पढ़ा जाये-
      --
      हमारी सोच ही बदल गयी है।
      मगर कौन बदलेगा इस सोच को?

      Delete
  4. लिंक 17-एफ
    --
    मानवता की दौड़ में, हार गये इंसान।
    देश-वेश परिवेश में, जीत गये हैवान।।

    ReplyDelete
  5. लिंक-17 ई
    --
    कैसे प्यारे देश की, बदलेगी तसबीर।
    अपनी रोटी सेंकते, संत-महन्त-फकीर।।

    ReplyDelete
  6. लिंक-17 डी
    --
    रोज-रोज ही दामिनी, होती हैं हैरान।
    मृत्युदण्ड के मुस्तहक, हैं ऐसे हैवान।।

    ReplyDelete
  7. लिंक-17 बी
    --
    भक्तों के व्यवहार पर, रब भी है हैरान।
    इंसानों के भेष में, घूम रहे शैतान।।

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    Replies
    1. जबरदस्त दोहावली, गुरुवर करूं प्रणाम |
      भक्त श्रमिक आसक्त को, रहे काम से काम |


      काम=महादेव, विष्णु , कामदेव, कार्य, सहवास की इच्छा आदि

      Delete
  8. बहुत बढ़िया , आभार रविकर जी !

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  9. सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर चर्चा

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  11. बढिया चर्चा,
    अच्छे लिंक्स

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  12. प्रासंगिक सेतु चयन ,समन्वयन ,बधाई .

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  13. सभी जीवों को तदानुभूति करवाती रचना .प्रासंगिक .प्रसंगवश अमरीका जैसे मुल्कों में मिशिगन जैसे राज्य(कमोबेश पूरी ईस्टरन टाइम ज़ोन के राज्य ) बे हद ठंडे रहते हैं लेकिन वहां ठंड का एहसास

    नहीं होता .सड़क के किनारे बर्फ

    खोद के डाल

    देते हैं बुल डोज़र जो कीचड सी पड़ी रहती है कलौंच लिए .कार में बैठो दो मिनिट बाद कार गर्म ,घर गर्म दफ्तर माल .स्टोर गर्म .सब गर्म ही गर्म .बस घर और कार के बीच की दूरी कार और स्टोर के

    बीच की दूरी ठंड का एहसास करवाती है सच है ठंड गरबों के लिए होती है .एनर्जी गजलर्स के लिए कैसी ठंड ?
    12
    नुकीली हवाएँ ,चुभती ठण्ड!
    (Arvind Mishra)
    क्वचिदन्यतोSपि...

    ReplyDelete
  14. समाज के किसी काम के नहीं हैं ये स्वयम घोषित भगवान .एक निर्मल जी थे ,एक आशाराम जी हैं जब तब सुर्ख़ियों में रहतें हैं अब मृतका निर्भया को सीख दे रहें हैं उसे कुसूरवार ठहरा रहें हैं पूछा जा

    सकता है ये अंतर -यामी ,सर्वत्र व्यापी कण कण वासी उस समय क्या कर रहे थे .सरस्वती अखंड जाप करके बलात्कार की समस्या का समूल नाश क्यों नहीं कर देते .शाप क्यों नहीं दे देते .रोट तोड़ते

    राम सिंह जैसों को .?

    E
    रूहानियत के नाम पर धंधेबाज़ी और पाखंड
    Dr. Ayaz Ahmad
    सोने पे सुहागा
    अंधों की भरमार है, मार बिना चालाक |
    सीधी राहों पर चलें, थामे अपनी नाक |

    थामे अपनी नाक, नदी में रहे डूबते |
    फिर भी है विश्वास, ठगी से नहीं ऊबते |

    ढकोसलों की जीत, जीत है इन धंधों की |
    भटके प्रभु को भूल, दुर्दशा है अंधों की ||

    तोड़ते

    राम सिंह जैसों को .?

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  15. हलकी फुलकी में भी व्यंग्य विनोद है तंज है चुभन है जो अब धीरे धीरे ही कम हो पायेगी .काँटा गहरा लगा है करजवा में सैयां .

    G
    हर वाशिंदा मोहल्ले का,तबसे ही वक्त पर घर पहुँचने लगा है।
    पी.सी.गोदियाल "परचेत"
    अंधड़ !

    दोष पड़ोसन का नहीं, बिगड़ा बड़ा पड़ोस |
    अंधड़ आते इस कदर, रहे नहीं तब होश |

    रहे नहीं तब होश, रोस में कई पडोसी |
    लेकर क्यूँ नहिं भगा, ताव खा कहते जोशी |

    हुआ पडोसी मस्त, दिवाली से घर रोशन |
    देख उसे खुशहाल, लगाती दोष पड़ोसन |

    ReplyDelete
  16. सशक्त अभिव्यक्ति हुई है सार की, अर्थविस्तार की ,विचार की .बढ़िया सर्वकालिक रचना .बधाई भाई जान .

    राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँ

    DR. ANWER JAMAL
    Mushayera -


    शब्द शब्द अंगार है, धारदार हथियार |
    नहीं दुश्मनी से भला, मित्र बांटिये प्यार |
    मित्र बांटिये प्यार, भूख इक सी ही होवे |
    बच्चों को अधिकार, कभी नहिं दुःख से रोवे |
    अपना अपना धर्म, नियम से अगर निभाओ |
    हर बन्दे में ईश, सामने दर्शन पाओ ||

    ReplyDelete

  17. व्यापक कलेवर लिए है पोस्ट हमारे वक्त के विविध आयामों से रु -ब -रु भी है .

    11
    " सारे नियम तोड़ दो - नियम पे चलना छोड़ दो "..!!???
    PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
    5TH Pillar Corruption Killer

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  18. काव्यात्मक ताजिया सन्देश शहादत का .कौम के लिए कुर्बानी का .बढ़िया चित्र मय रचना .

    10

    "ये कैसा त्यौहार-खुशी या ग़म" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
    उच्चारण

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  19. बेशक माँ बाप तैयार हैं नाम उजगार होने पे उन्हें कोई एतराज न होगा .लेकिन क्या यह कानूनी प्रावधान के ही विपरीत नहीं होगा .बीच का रास्ता यही है प्रतीकात्मक नाम निर्भया ही उपयुक्त लगता

    है .तख्खुल-लुस ही सही निर्भया .

    5
    क्या बलात्कार के मामले में पीड़ित का नाम जाहिर करना सही होगा?

    डॉ शिखा कौशिक ''नूतन ''
    भारतीय नारी

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  20. एक सामूहिक अनुभूति को आपने स्वर दिया है .तदानुभूति हमें भी हुई है .दामिनी कंस के काल का भविष्य कथन सिद्ध होवे ये ज़ज्बा बना रहे लाठी भान्जू सरकार जागे फिल वक्त तो -

    गूंगा राजा बहरी रानी ,

    दिल्ली की अब यही कहानी .

    D
    दामिनी का अपनों के नाम सन्देश !
    संतोष त्रिवेदी
    बैसवारी baiswari

    मिनी इण्डिया जागता, सोया भारत देश |
    फैली मृग मारीचिका, भला करे आवेश |

    भला करे आवेश, रेस नहिं लगा नाम हित |
    लगी मर्म पर ठेस, जगाये रखिये यह नित |

    करिए औरत मर्द, सुरक्षित दिवस यामिनी |
    रक्षित नैतिक मूल्य, बचाए सदा दामिनी ||

    ReplyDelete
  21. बहुत बढ़िया चर्चा ....

    ReplyDelete
  22. प्रभावी, बहुत बढ़िया चर्चा
    शुभकामना,

    जारी रहें !!

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  23. बहरा राजा ,गूंगी रानी

    दिल्ली की अब यही कहानी .

    बहुत बढ़िया रचना है अनंत भाई .

    2
    संकल्प
    अरुन शर्मा "अनंत"
    दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की)

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  24. Wonderful
    ---
    नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

    ReplyDelete
  25. सार्थक चर्चा।
    आभार!!

    ReplyDelete
  26. आदरणीय रविकर सर प्रणाम यात्रा पर होने के कारण चर्चा पर आ नहीं सका, बेहद रोचक चर्चा छूट गई थी खैर आज लिंक्स पर जाना हो रहा है, मेरी रचना को स्थान दिया तहे दिल से आभार रविकर सर. देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ.

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