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Friday, January 18, 2013

हो जाए अब वार, मची चैनल पर चै चै : चर्चा मंच 1128


महेन्द्र श्रीवास्तव  

 
चै-चै चैनल पर शुरू,  कमर्शियल के संग |
सुषमा ने भर ही दिया, जन-गन-मन में जंग |
जन-गन-मन में जंग, रंग में आया भारत |
लेकिन सत्ता
दंग, अंग सब बैठ विचारत |
 उधर पाक में कूच, विपक्षी कूचें धै-धै |
हो जाए अब वार, मची चैनल पर चै चै ||

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 पूरी की पूरी ख़तम, विरादरी यह धूर्त |
धोखा छल कर-वंचना, करें गलत आपूर्त |
करें गलत आपूर्त, खर्च विज्ञापन पर कर |
लेते अधिक वसूल, फंसे जब रविकर गुरुवर |
रहिये सदा सचेत, बना कर रखो दूरी |
खाओ रोटी-दाल, तलो मत पापड़-पूरी |


नौनिहालों की निरर्थक तारीफ़ करना भी ठीक नहीं है

Virendra Kumar Sharma 
 हुल्लड़ यू पी में किया, लौंडा नक्शेबाज |
अतिश्योक्ति है जुबाँ पर, शहजादा अंदाज |
शहजादा अंदाज, बड़ा शातिर यह नेता |
जन्मसिद्ध अधिकार, डोर सत्ता की लेता |
लेकिन घोड़े सभी, नहीं पाले है काबुल |
क्रिकेट में भी गधे, ठीक तो है ना राहुल ||



Some more Inhumane and Barbaric act by Pakistan

sanjay rai 
घर की मुर्गी नोन है, घर का भेदी पाल ।
पेट फाड़ के बम रखे, काटे गला हलाल ।
काटे गला हलाल, उछाले जाते हर दिन ।
चिंतित अंतरजाल, कौन ले बदला गिन-गिन ?
पहला दुश्मन पाक,  दूसरे नक्सल ठरकी ।
मरने दो यह पुलिस, बात आखिर है घर की ।।



हक बात
सिद्दीकी साहब लिखें, एक राज पर राज |
गड़बड़झाला देख के, उठा रहे आवाज |
उठा रहे आवाज, बना कानून खिलौना |
मिटा रहे बचपना, नियम हो जाता बौना |
मातो श्री की ठाठ, यहाँ भी जय जिद्दी की |
अपना अपना राज, बड़ा मसला सिद्दीकी ||



भारतीय सेना के वीर जवानों को नमन !!

पूरण खंडेलवाल  

पुख्ता पावन वृत्तियाँ, न्यौछावर सर्वस्व |
कीर्ति पताका फहरती, धावति रविकर अश्व |

धावति रविकर अश्व , मेध चाहे हो जाए |
एक नहीं सैकड़ों, बार धड़ शीश कटाए |
मम माता तव शान, चढ़ाएंगे सिर-मुक्ता |
लेना आप पिरोय, गिनतियाँ रखना पुख्ता ||

पागल बना मसीह, छुड़ाकर हाथ गए जो


रविकर 

साथी *पहली बार जिसे पकड़ा था,वह था मेरा हाथ।और कहा था ,
पगले को सब ध्यान है, मिलन-विछोह *अनीह ।

जागृति हर एहसास है, पागल बना मसीह ।

पागल बना मसीह, छुड़ाकर हाथ गए जो ।

बाकी अब भी **सीह, डूब कर स्वयं गया खो ।

साठ वर्ष का साथ, मिलो फिर जीवन अगले ।

पकडूँ फिर से हाथ, मसीहा हम हैं पगले ।।
*बिन चेष्टा 

**खुश्बू 

व्याकुल वनिता वत्स, महाकामी *वत्सादन

हुआ भयानक हादसा, दिल्ली में वीभत्स
रौद्र-करुण उत्तेजना, व्याकुल वनिता-वत्स ।
व्याकुल वनिता वत्स, महाकामी *वत्सादन ।
अद्भुत सत्ताधीश, शांत-रस का उत्पादन ।
करे हास्य-श्रृंगार , किन्तु फिर पाक अचानक ।
 काट गया दो शीश, वीर रस हुआ भयानक ।।
*भेड़िया 


 हाय हाय रे मीडिया,  देश-देश का भक्त ।

टी आर पी की दौड़ सह, विज्ञापन आसक्त । 


 विज्ञापन आसक्त, आज तक पूजा बेदी ।

बलि बेदी पर शीश, मस्त है घर का भेदी ।


लगा दिया आरोप, विपक्षी भड़काते हैं ।
सत्ता के व्यक्तव्य , सख्त देखो आते हैं ।।


'आहुति'

तुम कहो तो....!!!

 उद्धव लेकर चल पड़े,  रो के रोके गोपि ।
मथुरा की धुन में किशन, झिड़के करके कोपि ।
झिड़के करके कोपि, दुखी मन गोपी बोले ।
शब्द रंग कुछ ख़्वाब, हस्त-रेखाएँ खोले
लम्हे रखी संजोय, बनाई राहें संभव।
चलने को तैयार, चले ज्यों कृष्णा उद्धव ।। 




Kailash Sharma 


तेरे सामने नजर उठाऊँ कैसे............डॉ. अनिल चड्ढा

yashoda agrawal 


Rajesh Kumari 

प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है

अरुन शर्मा "अनंत" 
(प्रिय अरुण !! कुछ समस्या आ रही है)

हर क्षण मन से झरतीं क्षणिकाएं....

expression 


चारधाम : हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थल

RAJESH MISHRA 
 DHARMMARG  


Virendra Kumar Sharma 

udaya veer singh 

ग़ज़ल

Madan Mohan Saxena 


श्री लंका यात्रा-वृत्त ---भाग दो--- ---कोलम्बो ..


Dr. shyam gupta 



पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

आप कैसे तोड़ते हैं रोटी?

Kumar Radharaman  


संध्या आर्य 

महिला बोले तो????


Bamulahija dot Com 



"जय किसान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 


♥ किसान ♥
सूरज चमका नील-गगन में।
फैला उजियारा आँगन में।।

22 comments:

  1. अति सुन्दर लिंक्स का चयन
    रविकर भाई आभार
    मेरी पसंदीदा रचना भी यहाँ है
    यह देख कर अतीव प्रसन्नता हुई
    सादर

    ReplyDelete
  2. उपयोगी लिंकों के साथ बढ़िया चर्चा!
    आभार रविकर जी आपका!

    ReplyDelete
  3. बढ़िया चर्चा....
    लिंक्स का ढेर लगा दिया आपने...धीरे धीरे सभी पर जाती हूँ.
    हमारी रचना को स्थान देने का शुक्रिया रविकर जी.

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  4. सूत्रों का काव्यात्मक विवेचन..उतना ही रोचक..

    ReplyDelete
  5. सुंदर पठनीय लिंक्स की प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  6. सुन्दर लिंक संयोजन

    ReplyDelete
  7. आदरणीय रविकर सर प्रणाम, बेहद सुन्दर लिंक्स शामिल किये हैं प्रस्तुतिकरण भी बेहद शानदार है हार्दिक बधाई.

    ReplyDelete
  8. काफी अच्छे लिंक मिले पढने के लिये ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार आपका @रविकर जी !

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  9. रविकर सर मेरी रचना को चर्चामंच पर स्थान देने हेतु पुनः आपका ह्रदय के अन्तःस्थल से अनेक-अनेक धन्यवाद. सादर.

    ReplyDelete
  10. मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार आपका @रविकर जी अनेक-अनेक धन्यवाद. सादर.

    ReplyDelete
  11. बढिया चर्चा, सभी लिंक्स एक से बढ़कर एक
    मुझे स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार

    ReplyDelete
  12. काव्यात्मक टिप्पणियों के साथ रोचक लिंक्स...बहुत सुन्दर...आभार

    ReplyDelete
  13. काव्यात्मक टिप्पणियों के क्या कहने.....

    ReplyDelete
  14. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...
    आभार!

    ReplyDelete
  15. करता हूँ मैं टिप्पणी, पढ़ कर पूरा लेख |
    यहाँ लिंक-लिक्खाड़ पर, जो चाहे सो देख |

    जो चाहे सो देख, जमा हैं कई हजारों |
    कुछ करते नापसंद, करूँ क्या लेकिन यारो ?

    आदत से मजबूर, कई को बड़ा अखरता ||
    काम-चलाऊ किन्तु, कभी रविकर भी करता ||

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  16. बहुत खूब बहुतखूब बहुतखूब !क्या कहने हैं रूपकात्मक अभिव्यक्ति के प्रेम की मिश्री के ,सौन्दर्य के पैरहन के .

    प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है
    अरुन शर्मा "अनंत"
    दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की) -
    (प्रिय अरुण !! कुछ समस्या आ रही है)

    सुन्दर सेतु ,काव्यात्मक टिपण्णी लिखाड़ी की ,शानदार कुंडलीनुमा चर्चा DNA सी सार्थक ,सजीव .

    ReplyDelete
  17. बहुत खूब बहुतखूब बहुतखूब !क्या कहने हैं रूपकात्मक अभिव्यक्ति के प्रेम की मिश्री के ,सौन्दर्य के पैरहन के .परवाज़ लग गए हैं शब्दों के पैरहन को

    'आहुति'
    तुम कहो तो....!!!
    उद्धव लेकर चल पड़े, रो के रोके गोपि ।
    मथुरा की धुन में किशन, झिड़के करके कोपि ।
    झिड़के करके कोपि, दुखी मन गोपी बोले ।
    शब्द रंग कुछ ख़्वाब, हस्त-रेखाएँ खोले ।
    लम्हे रखी संजोय, बनाई राहें संभव।
    चलने को तैयार, चले ज्यों कृष्णा उद्धव ।।

    ReplyDelete
  18. सुन्दर सेतु ,काव्यात्मक टिपण्णी लिखाड़ी की ,शानदार कुंडलीनुमा चर्चा DNA सी सार्थक ,सजीव .

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  19. एक विरोधाभास एक परम्परा से उपजी पीर है एक यथार्थ की चुभन है इस रचना में बेटियों के प्रति एक शाश्वत है माँ बाप .अति उत्कृष्ट रचना .आभार आपकी सद्य टिपण्णी का .

    सब टोक और बंदिशें सहती हैं बेटियाँ,
    वारिस कपूत बेटे भी, पराई हैं बेटियाँ.
    हर वक़्त इंतजार करती हैं प्यार का,
    रह कर के मौन देती हैं प्यार बेटियाँ.


    उनके घरों में शायद न होती हैं बेटियाँ

    Kailash Sharma
    Kashish - My Poetry

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  20. अगर तलाश करोगे कोई मिल ही जाएगा ,मगर वो आँखें(टिपण्णी ) हमारी कहाँ से लाएगा .(स्पेम से टिपण्णी निकाल लो )

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