मित्रों!
हमारी मंगलवार की चर्चाकार बहन राजेश कुमारी जी के पति अस्वस्थ हैं इसलिए मंगलवार की चर्चा की चिट्ठी में मैं डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक कुछ चिट्ठों के लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ।
क्या सरबजीत सिंह जी को हलाल नहीं किया गया? जी हाँ... सरबजीत की जान से पाकिस्तान कर रहा खिलवाड़, भारत ने अपने ही नेताओं को लगाई लताड़....! अब समय है कि कह दो मन की बातें....*1 छूटी सारी गलियाँ बाबुल का अँगना वो बाग़ों की कलियाँ ...! गूगल के कुछ लाजबाब सीक्रेट और ट्रिक्स....सीक्रेट और ट्रिक्स में आपका स्वागत है, सबसे पहले मैं आपको यह बताना चाहता हॅू कि आपने *Google* सीक्रेट और ट्रिक्स PART 1 को काफी पंसद किया,..सम्भोग से समाधि तक...संभोग एक शब्द या एक स्थिति या कोई मंतव्य विचारणीय है ......... सम + भोग समान भोग हो जहाँ अर्थात बराबरी के स्तर पर उपयोग करना अर्थात दो का होना और फिर समान स्तर पर समाहित होना समान रूप से मिलन होना भाव की समानीकृत अवस्था का होना वो ही तो सम्भोग का सही अर्थ हुआ....! नदिया....आ सखी चुगली करें...सुनो, सुनाऊं, तुमको मैं इक, मोहक प्रेम कहानी, सागर से मिलने की खातिर, नदिया हुई दीवानी ... कल कल करती, जरा न डरती, झटपट दौड़ी जाती, कितने ही अरमान लिए वो, सरपट दौड़ी जाती....! उड़ान...सहज साहित्य...जीवन एक कला है । साहित्य उसी का सहज मार्ग...! हरामखोरी हमारा राष्ट्रीय चरित्र है....एक बड़ी पुरानी सीख है . हमारे पुरखे हमें देते आये हैं . अगर किसी की मदद करना चाहते हो तो उसे मछली मत दो , बल्कि मछली पकड़ना सिखाओ....! धरती माँ....ठीक है, तुम खूब शरारतें करो, दीवारों और ऊंचे वृक्षों पर चढो, अपनी साइकलों को जिधर चाहो घुमाओ-फिराओ, तुम्हारे लिए यह जानना अनिवार्य है कि तुम इस काली धरती पर किस प्रकार बना सकते हो अपना स्वर्ग....! एक दूजे के वास्ते ......सागर की लहरों के साथ थामें एक दूजे का हाथ चलो साथी चलें उस ओर ...जहाँ .... उन्मुक्त आकाश हो दिन हो या रात हो बुझे नहीं कभी मिलन से ऐसी अतृप्त प्यास हो ..... रिश्तों में मर्यादा हो कम....! रश्मिरथी...'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ?...
नई इबारत!!!...मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो सबको मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो समाज को मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो मजहब को मान्य न थी...! भाड़ में जाये संगठन तेल लेने जाये विकास हम तो ....!! कवि श्री हरे प्रकाश की कविता में खुलासा देखिये-नींद में मैं दफ़्तर के सपने देखता हूँ, सपने में दफ़्तर के सहकर्मियों के षड्यंत्र सूंघता हूँ, जिससे बहुत तेज़ बदबू आती है,इस बदबू में मुझे धीरे-धीरे बहुत मज़ा आता है, मैं नींद में बड़बड़ाता हूँ....! टेढ़ा है पर मेरा है...यह जिंदगी भी कितनी अजीब होती है खासतौर पर लड़कियों के लिए ,जन्म देने वाले माता पिता ,पालपोस और पढ़ा लिखा कर अपनी बेटी को अपने ही हाथों किसी पराये पुरुष के हाथ सौंप कर निश्चिन्त हो जाते है ,बस उनका कर्तव्य पूरा हुआ ...! मै उंगलियों से चुनता अपने ही पोरुओं पे लगे दुःख के शूल पलकों से उठता अपने होठों पे लगे आनंद के फूल विद्रूपता लिखने पर विस्मित होता विदूषक बनाने पर रुदन करता अपने ही गढ़े चरित्रों के अभिनय पर हँसता शिवि की भांति स्वयं का विच्छेदन करता दधिची सा हड्डी का वज्र बनाकर स्वयं से युद्ध करता ....!
डमरू घनाक्षरी/ प्रणय....नियम:- ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में…… ! चीख तिरष्कृतों का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है....आज चीखने का मन कर रहा है मैं चीखना चाहता हूँ शहर की सबसे ऊंची इमारत पर चढ़ कर मैं चीखना चाहता हूँ इस दौर की सबसे गहरी खाई में....'बरखा रानी ज़रा....… पिछले दो साल से बारिश नहीं हुई थी..कुछ महीने पहले हलकी सी हुई थी लेकिन पिछले दो दिन से यहाँ ऊपरवाले की ऐसी मेहरबानी है कि बादलों से ढके आसमान ने रूक- रूक कर अभी तक बरसाना जारी रखा है...! हमारी ज़मीन पे नहीं , इंडिया की ज़मीन पे कब्ज़ा किया है .............. चाइना ने हमारी जमीन पे कब्जा कर लिया है .......बेटा कैसी बात करती हो .....अपनी गवर्नमेंट है , अपनी पुलिस है , अपना गृह मंत्री है . ऐसे कैसे कोई हमारी ज़मीन पे कब्ज़ा कर लेगा . मम्मी ....बात को समझो ....."लोग पुराने अच्छे लगते हैं"...गीत पुराने, नये तराने अच्छे लगते हैं, हमको अब भी लोग पुराने अच्छे लगते हैं...''किस किस की सुरक्षा '' ....मुकेश अम्बानी जैसे उद्योगपति , खतरे से नहीं है खाली सरकार हमारी दे रही गाली । उनकी सुरक्षा के लिए सी .आर .पी .ऍफ़ बल शाली....अपना गाँव… … गाँव और शहर से मेरा संबन्ध जन्म देने वाली माँ और पालने वाली माँ जैसा है। गाँवों के सौंदर्य का बखान करते रहने वाले हम शहरी-गँवार लोग, वहा...! झरीं नीम की पत्तियाँ...त्याग ‘आवरण लाज का’, ‘शील के वसन’ उतार | ‘रति’ मदिरा पी कर चली, लिये ‘वासना-ज्वार’....! एक मुलाकात -- डॉ निशा महाराणा सुबह का समय था दिवाकर सात घोडों के रथ पे होके सवार अपनी प्रिया से मिलकर आ रहा था पवन हौले-हौले पेड की डालियों औ पत्तों को प्यार से सहला रहा था समाँ मनभावन था...! एक प्रेमकथा का किस्सा - कुछ दिन पहले "जूलियट की चिठ्ठियाँ" (Letters to Juliet, 2010) नाम की फ़िल्म देखी जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज़ी महिला (वेनेसा रेडग्रेव) इटली के वेरोना शहर में ....! मैकदे मैं उम्र गुजरी है तमाम - तमाम हाथों में शामो-सहर, रिन्दों के जाम सामने साकी खड़ी सागर लिए आज अपनी मयकशी का इम्तिहान आज होकर बज्म में खामोश हम ...!
ठाले बैठे....पाँच हाइकु - दुर्गा की पूजाकन्या की भ्रूण हत्यादोगलापन.रात का दर्द समझा है किसने देखी है ओस?न जाने कब फिसली थी उँगलीयादें ही बचींविकृत मनदेखे केवल देहबालिका में भी. नयन...! मेरे हबीब. - कागज के पुर्जे जमा हो गए थे, सोचा समेट के ब्लॉग पर डाल दूँ . अकेलापन अपने से जुड़ने का अवसर देता हैं, और उसी जुड़ने मे कुछ गहरे भाव उठते ....! क्योंकि यह प्यार है - क्यों वक्त के साथ ख्वाहिशों की कभी उम्र नहीं बढती ! क्यों आँखों के सपने बार-बार टूट कर भी फिर से जी उठते हैं....! मशक पुराण - इस्लाम धर्म में वर्ण व्यवस्था या जाति प्रथा तो नहीं है, पर जो आदमी जैसा पेशा करता है या जिसका जो खानदानी धन्धा होता है, उसी के अनुसार उसकी जाति बन गयी है....! हम नासमझों के हवाले जायेंगे - अँधेरे जायेंगे, उजाले जायेंगे इक रोज सब निकाले जायेंगे सच का जनाज़ा निकलेगा औ' झूठ के परचम संभाले जायेंगे....! मात्र देह नहीं है नारी .. -आये दिन भ्रूण हत्याएं होती हैं , बलात्कार होते हैं और दहेज़ के नाम पर खरीद फरोख्त होती है . नारी की देह बिकती है , अस्मिता हर दिन दावं पर लगती है और हम हैं ...! हर चुप्पी में इक चीख छुपी होती है - हर सन्नाटे में इक गूंज दबी होती है | इन चीखों को, इन गूंजों को बिरले कोई ही सुनता है...! अंधेरा - बैठकर कुछ पल इंतजार के सूने पहलू मेँ, सिसकती शाम गुजर गई छोड़कर तन्हा सुसप्त तन्हाईयां। शैशव अधेरा घुटनों के बल , रेंगता हुआ ताकता है डर से ...!
रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ....कल शहर में रेवडियाँ बाँटी गयीं थीं. रेवडियाँ बाँटने के लिए एक भव्य समारोह का आयोजन किया था. समारोह के आयोजक ऐसा समारोह हर साल करते हैं और अपने चाहने वालों के लिए नियम से रेवडियाँ बाँटते हैं. रेवडियाँ प्राप्त करने की कोई विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती. बस आपको रेवड़ी बाँटू कार्यक्रम में उपस्थित होना आवश्यक है.....! "वर्तमानकालीन ब्लाग धर्म में आपकी महती भूमिका"...जैसा की आप जानते हैं ताऊ टीवी द्वारा *अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर **सम्मेलन* - 2013 आहुत किया गया है. इस सम्मेलन के उदघाटन सत्र में सर्वप्रथम *"महान ब्लाग धर्म गुरू बाबा ताऊराम डमरू वाले" * के प्रवचन होंगे. आज का विषय है* "**वर्तमानकालीन** ब्लाग धर्म में आपकी महती भूमिकारेवडिया, बताशे और इनाम कुमार: अथातो 'विज्ञान परिषद' पुरस्कार कथा...बताशे की गंध हवाओं में तैरने लगी तो मैंने सोचा की क्या मै * काठमांडू* पहुच गया। पर सर झटका चश्मा उतारा तो धुल धक्कड़ देख के तसल्ली हुयी कि अब्बै तो कानपुर में ही है . खैर *'सामलाल' *से पता चला की यह गंध तो मेरे प्यारे शहर इलाहाबाद से आ रही है.... मर्यादा का उल्लंघन ...य ईश्वर ने समस्त जगत के लिए और जीव जगत के लिए एक धर्म और मर्यादा नियत की है और यदि कोई इनका उल्लंघन करता है तो उसे उसके दुष्परिणाम भोगने ही पड़ते हैं ....! कहानी मोबाइल की ...चालीस साल पहले तीन अप्रैल 1973 को मोटोरोला के इंजीनियर मार्टिन कूपर ने अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी के एक कर्मचारी को फ़ोन कर मोबाइल फ़ोन पर बातचीत की शुरुआत की थी. ...!
आतंकवादी....आतंकवादी कटुता ने पैर पसारे शुचिता से कोसों दूर हुआ अनजाने में जाने कब अजीब सा परिवर्तन हुआ सही गलत का भेद भी मन समझ नहीं पाया...! विकास,विकास और विकास !! जो राजनैतिक पार्टियां राज्य और केन्द्र में सत्तासीन है वो अपना विकास का राग अलाप रही है ....! जंगल, फन और "मोहब्बतें"...योजना बनाते वक़्त बच्चों के थोबड़े सूज गए थे,और हमें समझ में आ गया था कि जब तक इन बच्चों के लायक भी किसी स्थान का चयन नहीं किया जाएगा हमारी भी गाँव यात्रा खटाई में पड़ी रहेगी...! मैं कौन हूँ ?परमात्मा का परिचय ? दुखों का कारण है हमारा देह अभिमान .खुद को देही (देह का मालिक )न समझ सिर्फ देह भान में रहना .हम जानते ही नहीं है अपना सही परिचय .परिचय के अभाव में हम अशांत विचलित रहते हैं .हमारे कर्मों को दिशा नहीं मिलती है...! एक प्रेमकथा का किस्सा...कुछ दिन पहले "जूलियट की चिठ्ठियाँ" (Letters to Juliet, 2010) नाम की फ़िल्म देखी जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज़ी महिला (वेनेसा रेडग्रेव) इटली के वेरोना शहर में अपनी जवानी के पुराने प्रेमी को खोजने आती है. इस फ़िल्म में रोमियो और जूलियट की प्रेम कहानी से प्रेरित हो कर दुनिया भर से उनके नाम से पत्र लिख कर भेजने वाले लोगों की बात बतायी गयी....परम्परा..परिवारिक परम्परा, बुजुर्गों का हथियार, छोटो पर अत्याचार....! जीवन संध्या...संध्या से पहले भी कभी सवेरा हुआ था, अमा निशा से पहले भी कभी पूर्णमासी का चाँद खिला था....! बागी नहीं हूँ मैं ...मितरां किसी भी राग का रागी नहीं हूँ मैं , कहता हूँ अपनी बात...! पर तुम एक आभास ही तो हो ...उपासना का!
एक थी सोन चिरैया ..........एक औरत लें किसी भी धर्म ,जाति ,उम्र की पेट के नीचे उसे बीचों-बीच चीर दें चाहें ....! दिल चाहिए बस मेड इन चाइना .... चीन भारत में घुसपैठ कर गया । प्यारे बापू का दिल ही बैठ गया । बहुत परेशान हो गए । गुस्ताखी पर उसकी हैरान रह गए । कैसे भारत की सीमा के इतने अन्दर घुस आया होगा ? क्या किसी को भी नज़र नहीं आया होगा ? मुझको अभी के अभी धरती पे जाना होगा । जैसे भगाया था अंग्रेजों को, इनको भी भागना होगा । जंग - ए - आजादी अभी जिंदा है मेरे अन्दर ...किन्त हमारे कर्णधारों के भीतर नहीं....! जिन्दगी डराती है..........माँ अक्सर याद आती है तारा बनकर चमक रही है आकाश में उसकी रोशनी मेरे दिल तक आती है ....! मधुशाला.... बदनाम हो गयी,हर महफ़िल की शान हो गयी जिव्हा से हल्खो तक गुजरी,कब सुबहो से शाम हो गयी....!
आतंकवादी....आतंकवादी कटुता ने पैर पसारे शुचिता से कोसों दूर हुआ अनजाने में जाने कब अजीब सा परिवर्तन हुआ सही गलत का भेद भी मन समझ नहीं पाया...! विकास,विकास और विकास !! जो राजनैतिक पार्टियां राज्य और केन्द्र में सत्तासीन है वो अपना विकास का राग अलाप रही है ....! जंगल, फन और "मोहब्बतें"...योजना बनाते वक़्त बच्चों के थोबड़े सूज गए थे,और हमें समझ में आ गया था कि जब तक इन बच्चों के लायक भी किसी स्थान का चयन नहीं किया जाएगा हमारी भी गाँव यात्रा खटाई में पड़ी रहेगी...! मैं कौन हूँ ?परमात्मा का परिचय ? दुखों का कारण है हमारा देह अभिमान .खुद को देही (देह का मालिक )न समझ सिर्फ देह भान में रहना .हम जानते ही नहीं है अपना सही परिचय .परिचय के अभाव में हम अशांत विचलित रहते हैं .हमारे कर्मों को दिशा नहीं मिलती है...! एक प्रेमकथा का किस्सा...कुछ दिन पहले "जूलियट की चिठ्ठियाँ" (Letters to Juliet, 2010) नाम की फ़िल्म देखी जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज़ी महिला (वेनेसा रेडग्रेव) इटली के वेरोना शहर में अपनी जवानी के पुराने प्रेमी को खोजने आती है. इस फ़िल्म में रोमियो और जूलियट की प्रेम कहानी से प्रेरित हो कर दुनिया भर से उनके नाम से पत्र लिख कर भेजने वाले लोगों की बात बतायी गयी....परम्परा..परिवारिक परम्परा, बुजुर्गों का हथियार, छोटो पर अत्याचार....! जीवन संध्या...संध्या से पहले भी कभी सवेरा हुआ था, अमा निशा से पहले भी कभी पूर्णमासी का चाँद खिला था....! बागी नहीं हूँ मैं ...मितरां किसी भी राग का रागी नहीं हूँ मैं , कहता हूँ अपनी बात...! पर तुम एक आभास ही तो हो ...उपासना का!
एक थी सोन चिरैया ..........एक औरत लें किसी भी धर्म ,जाति ,उम्र की पेट के नीचे उसे बीचों-बीच चीर दें चाहें ....! दिल चाहिए बस मेड इन चाइना .... चीन भारत में घुसपैठ कर गया । प्यारे बापू का दिल ही बैठ गया । बहुत परेशान हो गए । गुस्ताखी पर उसकी हैरान रह गए । कैसे भारत की सीमा के इतने अन्दर घुस आया होगा ? क्या किसी को भी नज़र नहीं आया होगा ? मुझको अभी के अभी धरती पे जाना होगा । जैसे भगाया था अंग्रेजों को, इनको भी भागना होगा । जंग - ए - आजादी अभी जिंदा है मेरे अन्दर ...किन्त हमारे कर्णधारों के भीतर नहीं....! जिन्दगी डराती है..........माँ अक्सर याद आती है तारा बनकर चमक रही है आकाश में उसकी रोशनी मेरे दिल तक आती है ....! मधुशाला.... बदनाम हो गयी,हर महफ़िल की शान हो गयी जिव्हा से हल्खो तक गुजरी,कब सुबहो से शाम हो गयी....!
बोझ उठाना है लाचारी.....
आज की चर्चा में बस इतना ही...!