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रविवार, अप्रैल 07, 2013

जुल्म : चर्चा मंच 1207

"जय माता दी" रु की ओर से आप सबको सादर प्रणाम. बिना विलम्ब किये चलते हैं आज की चर्चा की ओर
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
प्यार करने वालो पर जुल्म बहुत पुराना है,
चोट दिल पर लगती मुस्कराता जमाना है!
फैसला है दिल का उसको कर दिखाना है,
झील सी इन आँखों में हमको डूब जाना है!
बे -सबब नही रुख पर जुल्फ के घने साए,
फूलसे नाजुक चेहरे को धूप से बचाना है!
सदा
मन के आँगन में
स्‍नेह का बीज बचपन से ही
बो दिया गया था जो वक्‍त के साथ
पल्लिवत होता रहा जिस पर
सम्‍मान का जल सिचित करते-करते
स्‍वाभिमान की डालियों ने
अपना लचीलापन नहीं खोया
जब भी आवश्‍यकता हुई
उपासना सियाग
एक वो था जो
सांसों में बसा था ,
एक ये जिसके
नाम से सांसे
चलती है ...........
एक वो था जिसने
कभी कदमो में
फूल बिछाये थे ,
और इसने मेरा
दामन ही फूलों
से भर दिया ..........
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
ज़िन्दग़ी तार-तार मत करना
कोई वादा-क़रार मत करना
भावनाओं के जोश में आकर
राहगीरों से प्यार मत करना
ज़लज़ले नाख़ुदा नहीं होते
ज़ालिमों से पुकार मत करना
अपने दिल की सफेद चादर को
बेवज़ह दाग़दार मत करना
(Vivek Rastogi)
तीन दिन पहले जन्मदिन था, दुख था कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया और खुशी इस बात की कि आने वाला कल सुहाना होगा । कुछ लिखने की इच्छा थी परंतु समयाभाव के कारण लिखना मुमकिन नहीं हुआ, फ़ेसबुक पर जन्मदिन की शुभकामनाओं के इतने मैसेज मिले कि दिल प्रसन्न हो गया, इतने लोगों की शुभकामनाओं से दिल खुशियों से लबरेज हो गया।
Praveen Malik
*किसी व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमताओं से अधिक उसके निर्णय और कर्म उसके व्यक्तित्व के सारत्व के परिचायक हैं ! ये कर्म और निर्णय मानव की सोच का प्रतिफल होते हैं ! "
अपने विचारों के प्रति सचेत हों " ....
मानव की सोच मानव को उसके भाग्य का आधार बना देती है ! यह कहती है :--
Anita
हमारी अनुभूतियाँ जितनी सच्ची होंगी, उतना हमारा मन खाली होता जायेगा, हमारा मन जितना खाली होगा उतना प्रेम उसमें समाता जायेगा. हम कटुता से तभी भरते हैं जब भीतर की अनुभूति को छू नहीं पाते, एक पर्दा सेवार का मन की झील पर छा जाता है. हमें सरल होना है, कोई दुराव या छिपाव नहीं क्योंकि हमारे भीतर कोई है जो सब देखता है, सब जानता है, वह हमारे पक्ष में है, सुह्रद है,
Amrita Tanmay
बेजुबान लुटने वालों की
कुछ बात करूँ या कि
बेख़ौफ़ लूटने वालों की...
बेकुसूर नुचे खालों की या
बेरहमी से खाल नोचने वालों की...
बेदाम पर बिकने वालों की या
बेहुरमती बेचने वालों की...
लश्करे-जुल्म सहने वालों की या कि
जुल्म-दर-जुल्म बाँटने वालों की...
शीशों के दरकते कतारों की या फिर
उन पत्थर के दिलदारों की...
अज़ीज़ जौनपुरी
काम दुश्मन का दोस्त कर गये यारों
दवा के नाम पे ज़हर पिला गये यारों
बढ़ा के हाथ जो दामन से लगा लेते थे
वही हँस- हँस पीठ पर वार गये यारों
हमराज बन जो राज़े-दिल सुना करते थे
बीच मझधार वही छोड़ चल दिये यारों
डॉ. मोनिका शर्मा
एक समय था जब कई सारे फोन नंबर मौखिक याद थे । इतना ही नहीं कई पते ठिकाने और अन्य आम जीवन से जुड़ी जानकारियां सहेजने को मस्तिष्क स्वयं ही तत्पर रहा करता था । कभी इसके लिए विशेष श्रम भी नहीं करना पड़ता था । कारण कि कोई और विकल्प ही नहीं था अपने दिमाग को काम में लेने के अलावा । मोबाइल फोन के आविष्कार ने यह समस्या हल की । पहली बार मोबाईल लिया तो अच्छा ही लगा था । सब कुछ कितना सरल हो गया था । अपनी स्मरणशक्ति की थाह मापने की तब आवश्यकता ही नहीं रही थी ।
Priti Surana
तू जो मिला है मुझको,
ये तो मेरी किस्मत है,..
तू क्या जाने मेरे लिए,
तेरी कितनी अहमियत है,..
कैसे कहूं कि मेरे दिल में,
कितनी गहरी चाहत है,...
तुझे पाने की खातिर की मैंने,
खुदा की कितनी खिदमत है,.
Dr. Alka Singh
‘बुलबुल’ इसी नाम से मेरे मा – बाप और बडे- बुजुर्ग मुझे घर में पुकारते थे. पापा को छोडकर अब इस नाम से बुलाने वाले इक्का- दुक्का बचे हैं. कई बार कान तरस जाते हैं यह नाम किसी के मुंह से सुनने को. पर आज इस हवेली के हर कोने आवाज आ रही है जैसे कितने ही लोग बुला रहे है. उपर बालकनी से नानी की आवाज़ सुनाई दे रही है और नीचे दरोखे से भंडारी की आवज़ आ रही है ‘ ए बूलबूल बबुनी आ गयीनी’ . चौका अनगना से ललमतिया की माई कह रही हैं कि ए बुलबुल बबुनी हाल्दी हाल्दी हाथ गोड धो लीं........
पूरण खण्डेलवाल
कांग्रेस जहां राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की सोच रही है वहीँ लगता है अभी तक राहुल गांधी राजनीति में अपरिपक्व ही है ! उनको राजनीति में आये लगभग दस वर्ष से ज्यादा हो गये हैं लेकिन वो जनता के बीच अपनी गांधी परिवार से जुड़े होनें के अलावा कोई छाप छोड़ पानें में नाकाम ही साबित हुए है ! और कई बार तो खुद राहुल गाँधी ही दिग्भार्मित से नजर आते है जिससे उनकी समझदारी पर ही प्रश्नचिन्ह लगता हुआ दिखाई पड़ता है ! ऐसे में पारिवारिक पृष्ठभूमि के सहारे ही वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नजर आते है !
रश्मि शर्मा
'पेड़ से गि‍रती एक तन्हा पत्ती,
होती है बेहद तन्हा
डाल भी सोचती है,
इसे कब कि‍या मैंने खुद से अलग
आखि‍र कि‍सकी चाह में हो जाती है
एक पत्ती बेहद तन्हा''
(अजित वडनेरकर)
जो शब्द ग़लत बर्ताव के शिकार हैं, उनमें ‘नस्ल’ का ‘नस्लीय’ रूप भी शामिल है। ‘नस्ल’ मूलतः अरबी शब्द है। शब्दकोशों में हिन्दी रूप ‘नसल’ होता है पर ‘अस्ल’ के ‘असल’ रूप की तरह यह आम नहीं हो पाया और इसका प्रयोग वाचिक ही बना रहा। नस्ल के मूल में अरबी क्रिया नसाला है जिसमें उपजाना, पैदा करना, जन्म देना, प्रजनन करना, बढ़ाना, दुगना करना, वंश-परम्परा जैसे भाव हैं।
रोली पाठक
कौन है इस जहां में जिसका कोई माज़ी नहीं
ये बात और है लोग बीते कल को भुला देते हैं
वो कम होते हैं जो गुजरी यादों से लिपट कर
ताउम्र उनके दर्द में जीने का मज़ा लेते हैं.......
अश्कों से लिपटे हुए वो उसके सर्द अहसास
अब भी अलाव की लौ सा जलाते रहते हैं ......
उसके साथ गुज़ारे मेरे वो हसींन लम्हें
अब भी साथ जीने का मज़ा देते हैं .........
Munkir
कहीं हैं हरम1 की हुकूमतें, कहीं हुक्मरानी-ऐ-दैर2 है,
कहाँ ले चलूँ तुझे हम जुनूँ, कहाँ ख़ैर शर3 के बगैर है।
बुते गिल4 में रूह को फूँक कर, उसे तूने ऐसा जहाँ दिया,
जहाँ जागना है एक ख़ता, जहाँ बे ख़बर ही बख़ैर है।
बड़ी खोखली सी ये रस्म है कि मिलो तो मुँह पे हो ख़ैरियत?
ये तो एक पहलू नफ़ी5 का है, कहाँ इस में जज़्बाए ख़ैर है।
Shekhar Suman
पिछले एक घंटे से न जाने कितनी पोस्ट लिखने की कोशिश करते हुए कई ड्राफ्ट बना चुका हूँ... सारे खयालात स्कैलर बनकर एक दुसरे से भिडंत कर रहे हैं... कई शब्द मुझे छोड़कर हमेशा के लिए कहीं दूर जा चुके हैं, मेरे पास चंद उल-झूलुल लफंगे अक्षरों के सिवा कुछ भी नहीं बचा है ... कई चेहरों की किताबें मुझसे मूंह फेर चुकी हैं... वो अक्सर मेरे बिहैवियर को लेकर शिकायत करते रहते हैं, ऐसे शिकायती लोग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है, ऐसा लगता है उनकी शर्तों पर अपनी ज़िन्दगी जीने का कोई एग्रीमेंट किया हो मैंने... बार-बार अपनी कील लेकर मेरी पर्सनल लाईफ पर ठोकते रहते हैं... खैर, ऐसी वाहियात चेहरों की किताबें मैंने भी छत पर रख छोड़ी हैं, धुप-पानी लगते-लगते खुद सड़ कर ख़त्म हो जायेंगी...
Swati
बारिशों के पानी से
मैं बनाती रही अंजुलियाँ
होठों की नमी जाती रही
सूखा रहा कंठ मेरा
ऋतुओं के रेशों से
मैं सिलती रही लम्हों के कुरते
रातों के बटन लगते रहे
उघडा रहा जतन मेरा
रविकर
.इसके लिए किसका कत्ले-आम होगा????
रविकर की टिप्पणी
मूरी गाजर से कटे, बटे घटे भूखंड |
हमलावर देते जला, सहे "गो धरा" दंड |
सहे "गो धरा" दंड, सिक्ख सैनिक बन जाते |
मचता कत्ले आम, जिन्हें "चौरासी" खाते |
नर नरेन्द्र निर्दोष, बताये बैलट-जूरी |
पब्लिक का प्रतिकार, जंग रूकती तैमूरी ||
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
आज की चर्चा जल्दबाजी में लगानी पड़ी अभी अभी दिल्ली जाना पड़ रहा भूल चूक हेतु क्षमा, शुभविदा मिलते हैं अगले रविवार को . आप सब चर्चामंच पर गुरुजनों एवं मित्रों के साथ बने रहें. आपका दिन मंगलमय हो
जारी है ..... 
"मयंक का कोना"
(1)
आयात का बढ़ता दबाव कहीं भारी ना पड़ जाए

(2)
यूँ ही तो लोग नहीं झुकते, आपके दौलत ख़ाने में....
हर बात की आहट मिल गई, मुझे आपके आशियाने में 
यूँ ही तो लोग नहीं झुकते, आपके दौलत ख़ाने में..
(3)
क्या कुछ और गिरने की कोई गुंजाइश बाकी है ?

(4)
सिमटती जाये गंगा .........
 गंगा जमुना भारती ,सर्व गुणों की खान 
मैला करते नीर को ,ये पापी इंसान . 
सिमट रही गंगा नदी ,अस्तित्व का सवाल 
कूड़े करकट से हुआ ,जल जीवन बेहाल...
(5)

मोक्ष की प्राप्ति


दिल्ली में मकान  मिलना  मोक्ष मिलने के बराबर है, एक अद्द्द  मकान जहाँ मिला वही आप अपने आपकी हालत वैसी हो जाती जैसे जेहादियों को जन्नत मिल गयी. दिल्ली में इस खाकसार देशी मुजाहिर को भी इसका ख़ासा अनुभव है .
मकान ढूढने के लिए आपको श्री कृष्ण की तरह सोलह कला सम्पन्न  होना आवश्यक है...

25 टिप्‍पणियां:

  1. अरुण जी नमस्कार!
    वयस्तता के बावजूद भी आपने इतनी सुन्दर और लाजवाब चर्चा की है।
    एतदर्थ आपका बहुत-बहुत आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रोचक सूत्र ,मेरी रचना को मंच में स्थान देने के लिए अरुण जी आभार,,,,

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर और सार्थक चर्चा लिंकों से सजी सुन्दर चर्चा !!
    अरुणजी और आदरणीय शास्त्री जी द्वारा मेरे दो आलेखों को इसमें स्थान देने के लिए सादर आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  4. हमेशा की तरह बढ़िया चर्चा, "मयंक का कोना" में मुझे स्थान देने के लिए सादर आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर सार्थक चर्चा प्रस्तुति ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही बेहतरीन पठनीय लिंकों का चयन,बहुत बहुत आभार.

    जवाब देंहटाएं
  7. sabhi links bahut acche hai abhaar hamen bhi yahan shamil karne ke liye .

    जवाब देंहटाएं
  8. कुकुरमुत्ता के जैसे उगते उद्योग कृषि भूमि को ग्रसते चले जा रहे हैं
    और उद्योग पति, भूमि स्वामीयों को बंधुवा श्रमिक बनाते जा रहे है,
    परिणाम स्वरूप कृषि विकास दर, लगातार पतन की और अग्रसर है |
    सरकारे, सत्ता सिद्ध होते ही उसे साधने के साधन एकत्र करने में लगी
    रहती है, नीतियाँ बनाने के लिए उसके पास समय ही कहाँ है.....
    एक बात तो बताइए ऐसा कौन सा श्रृंगार सदन है जहां
    चुनावी दल, चुनाव के लिए 'तैयार' होते हैं.....और तैयार होकर इन्हें
    किसकी 'जनेत' में चढ़ना है.....

    जवाब देंहटाएं
  9. बढ़िया गजल सभी अशआर अर्थपूर्ण सावधान करते हुए माया मोह से .काया मोह से .
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं

    "ग़ज़ल-राहगीरों से प्यार मत करना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)

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  10. सहमत आपसे .उनके पास कोई विजन नहीं है .सूचना है ज्ञान नहीं है .जो सूचना अम्ल में नहीं लाई जाती वह ज्ञान नहीं बनती है .

    दिग्भ्रमित से लगते राहुल गांधी !!
    पूरण खण्डेलवाल

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  11. बढ़िया चर्चा बढ़िया सेतु संयोजन .

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  12. अति सुन्दर चर्चा के लिए आभार और शुभ यात्रा..

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  13. बहुत खूब अरुण जी ... लिंक्स के शीर्षक ही पढ़ें हैं अभी ..और सभी लिंक्स पर जाने की उत्सुकता ने मं में घर बना लिया है ... प्रभावशाली चर्चा के लिए बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  14. mujhe sabhi rachnaayen , behad bhaayi.....aapka kaam saraahneey hai...

    जवाब देंहटाएं
  15. mujhe sabhi rachnaayen , behad bhaayi.....aapka kaam saraahneey hai...

    जवाब देंहटाएं
  16. सुन्दर चर्चा-
    आभार प्रिय अरुण-

    जवाब देंहटाएं
  17. बेहतरीन व रोचक सूत्र ,मेरी रचना को मंच में स्थान देने के लिए आपका आभार

    जवाब देंहटाएं

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