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शुक्रवार, जून 28, 2013

भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते - चर्चा मंच 1290

नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम-
क्रूर कुदरती हादसे, दे राहत निष्काम  |

दे राहत निष्काम, बचाते आहत जनता |
दिए बगैर बयान, हमारा रक्षक बनता |

अमन चमन हित जान, निछावर हँसते हँसते |
भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते -

ललकारो न मेरी शक्ति को...............नीना वाही (अप्रवासी भारतीय)

yashoda agrawal  

ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -

खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप । 
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप । 

बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई । 
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई । 

भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥

नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल । 

भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल । 
 

महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते । 

राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते । 
 

आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी । 

हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥
तप्त-तलैया तल तरल, तक सुर ताल मलाल ।

ताल-मेल बिन तमतमा, ताल ठोकता ताल ।



ताल ठोकता ताल, तनिक पड़-ताल कराया ।

अश्रु तली तक सूख, जेठ को दोषी पाया ।



कर घन-घोर गुहार, पार करवाती नैया ।

तनमन जाय अघाय, काम रत तप्त-तलैया ।
तक=देखकर

"नेत्र शिव का खुल गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

फट रहे बादल दरकती है धरा,
उफनती धाराओं ने जीवन हरा,
कुछ नहीं बाकी बचा है, अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे, अब पहाड़ी गाँव में
उच्चारण


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 


स्वराज या गुंडाराज – मर्ज़ी है आपकी क्योंकि देश है आपका

तुषार राज रस्तोगी  



त्रासदी


Madan Mohan Saxena 



मयंक का कोना

(१)

रास्ता केवल ​पक्षियो से ही नही भरा था । ये भरपूर है प्राकृतिक नजारो से भी । जैसे जैसे उपर की ओर चलता गया मै वैसे ही यहां से और सुंदर नजारे दिखते गये । पहाडो की चोटियां जब बर्फ से ढकी हुई पृष्ठभूमि में दिखती हों तो मन खुश हो जाता है ....

(२)
जो मंजर तलाश करता है....अजीज अंसारी

जो फन में फिक्र के मंजर तलाश करता है 
वो राहबर भी तो बेहतर तलाश करता है 
न जाने कौन सा पैकर तलाश करता है 
फकीर बनके वो घर-घर तलाश करता है....
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal 
(३)
फहमाइश देती ''शालिनी ''इन हुक्मरानों को ,

बेचकर ईमान को ये देश खा गए .
 बरगला अवाम को ये दिन दिखा गए . ..
साहिबे आलम बने घूमे हैं वतन में , 
फ़र्ज़ कैसे भूलना हमको सिखा गए . .
कौशल ! पर Shalini Kaushik 
(४)
वियतनाम

उन्नयन  पर udaya veer singh
(५)
ताऊ तेल का सारा स्टाक खत्म !

ताऊ कुछ सोच में बैठा हुआ था. अब क्या सोच रहा था यह तो खुद ताऊ जाने, भगवान इस लिये नही जान सकते कि उनको आजकल सोचने की फ़ुरसत ही नही है....अब भगवान भी कहां तक और किस किस की सोचें? इस समय ताऊ जरूर उतराखंड त्रासदी में अपना नफ़ा नुक्सान और वाहवाही के बारे में ही सोच रहा होगा....पर फ़िर भी ताऊ के दिमाग का कोई भरोसा नही.....
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया
(६)
कदमों तले धरा !

कभी सोचा है शायद नहीं , धरा जो जननी है , धरा जो पालक है , अपनी ही उपज के लिए मूक बनी , धैर्य धारण किये , सब कुछ झेलती रही . धरा रहती है भले ही सबके कदमों के नीचे पर ये तो नहीं कि वो सबसे कमजोर है . ...
hindigen पर रेखा श्रीवास्तव

19 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय रविकर जी!
    आपने आज शुक्रवार (28-06-2013) को भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते - चर्चा मंच 1290 में बहुत सुन्दर चर्चा की है!
    आभार के साथ..सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा लिंक्स दी हैं रविकर जी |अभी काफी पढ़ना बाकी हैं |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात
    सर्व प्रथम आभार आप दोनों भाइयों को
    सामयिक और सारगर्भित सूत्रों के चयन के लिये
    इसमे मेरे ब्लाग "मेरी धरोहर" की रचनाएं भी शामिल की गई....आभार
    रविकर भाई वेलकम होम....
    आपका प्रवास कैसा रहा.....
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छे पठनीय सूत्रों से सजी सुन्दर चर्चा !!

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा लिंक्स सुन्दर चर्चा ,आभार...

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा लिंक्स सुन्दर चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन चर्चा आदरणीय गुरुदेव श्री पठनीय सूत्र हार्दिक आभार आपका.

    जवाब देंहटाएं
  8. बढ़िया सार्थक चर्चा प्रस्तुति ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर लिंक्स , सब के मन के भावों को पढ़कर लगा की यही भाव तो हमारे मन में भी हैं .
    रचना के सम्मिलन के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं
  10. क्या कहने हैं अभिव्यक्ति के बिम्ब के .अर्थ और भाव के सब कुछ के सार के .

    ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -
    खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।
    खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।

    बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
    ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।

    भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
    लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥

    जवाब देंहटाएं
  11. पाप का बोझा हिमालय क्यों सहे?
    इसलिए घर-द्वार, देवालय बहे,
    ज़लज़ला-तूफान आया, अब पहाड़ी गाँव में।
    हो गये लाचार सारे, अब पहाड़ी गाँव में।।

    बहुत सटीक अर्थ पूर्ण भावपूरित प्रासंगिक रचना .

    जवाब देंहटाएं
  12. बजरिये बख्शीश-ए-लोहा ,सोयी जनता जगायेंगे .

    Shalini Kaushik
    Mushayera

    नायाब प्रस्तुति .गजब की अभिव्यक्ति और शब्द चयन .ॐ शान्ति .

    जवाब देंहटाएं

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