क्रूर कुदरती हादसे, दे राहत निष्काम |
दे राहत निष्काम, बचाते आहत जनता |
दिए बगैर बयान, हमारा रक्षक बनता |
अमन चमन हित जान, निछावर हँसते हँसते |
भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते -
|
ललकारो न मेरी शक्ति को...............नीना वाही (अप्रवासी भारतीय)
yashoda agrawal
|
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -
|
"नेत्र शिव का खुल गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') |
फट रहे बादल दरकती है धरा,
उफनती धाराओं ने जीवन हरा,
कुछ नहीं बाकी बचा है, अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे, अब पहाड़ी गाँव में
|
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
|
स्वराज या गुंडाराज – मर्ज़ी है आपकी क्योंकि देश है आपका
तुषार राज रस्तोगी
|
लिखने का माध्यम और सरोकार !संतोष त्रिवेदी |
त्रासदी
Madan Mohan Saxena
|
आखिर सच्चाई से कब तक मुह मोड़ेंगे ??S.K. Jha |
मयंक का कोना(१)
रास्ता केवल पक्षियो से ही नही भरा था । ये भरपूर है प्राकृतिक नजारो से भी । जैसे जैसे उपर की ओर चलता गया मै वैसे ही यहां से और सुंदर नजारे दिखते गये । पहाडो की चोटियां जब बर्फ से ढकी हुई पृष्ठभूमि में दिखती हों तो मन खुश हो जाता है ....
|
(२)
जो मंजर तलाश करता है....अजीज अंसारी जो फन में फिक्र के मंजर तलाश करता है वो राहबर भी तो बेहतर तलाश करता है न जाने कौन सा पैकर तलाश करता है फकीर बनके वो घर-घर तलाश करता है.... मेरी धरोहर पर yashoda agrawal |
(३)
फहमाइश देती ''शालिनी ''इन हुक्मरानों को , बेचकर ईमान को ये देश खा गए . बरगला अवाम को ये दिन दिखा गए . .. साहिबे आलम बने घूमे हैं वतन में , फ़र्ज़ कैसे भूलना हमको सिखा गए . . कौशल ! पर Shalini Kaushik |
(५)
ताऊ तेल का सारा स्टाक खत्म ! ताऊ कुछ सोच में बैठा हुआ था. अब क्या सोच रहा था यह तो खुद ताऊ जाने, भगवान इस लिये नही जान सकते कि उनको आजकल सोचने की फ़ुरसत ही नही है....अब भगवान भी कहां तक और किस किस की सोचें? इस समय ताऊ जरूर उतराखंड त्रासदी में अपना नफ़ा नुक्सान और वाहवाही के बारे में ही सोच रहा होगा....पर फ़िर भी ताऊ के दिमाग का कोई भरोसा नही..... ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया |
(६)
कदमों तले धरा ! कभी सोचा है शायद नहीं , धरा जो जननी है , धरा जो पालक है , अपनी ही उपज के लिए मूक बनी , धैर्य धारण किये , सब कुछ झेलती रही . धरा रहती है भले ही सबके कदमों के नीचे पर ये तो नहीं कि वो सबसे कमजोर है . ... hindigen पर रेखा श्रीवास्तव |
आदरणीय रविकर जी!
जवाब देंहटाएंआपने आज शुक्रवार (28-06-2013) को भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते - चर्चा मंच 1290 में बहुत सुन्दर चर्चा की है!
आभार के साथ..सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उम्दा लिंक्स दी हैं रविकर जी |अभी काफी पढ़ना बाकी हैं |
जवाब देंहटाएंआशा
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसर्व प्रथम आभार आप दोनों भाइयों को
सामयिक और सारगर्भित सूत्रों के चयन के लिये
इसमे मेरे ब्लाग "मेरी धरोहर" की रचनाएं भी शामिल की गई....आभार
रविकर भाई वेलकम होम....
आपका प्रवास कैसा रहा.....
सादर
अच्छे पठनीय सूत्रों से सजी सुन्दर चर्चा !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा, आभार रविकर जी !
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स सुन्दर चर्चा ,आभार...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा ,आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
लौटने की बधाई।
जवाब देंहटाएं।
।आभार
उम्दा लिंक्स सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा आदरणीय गुरुदेव श्री पठनीय सूत्र हार्दिक आभार आपका.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिंक्स सुन्दर चर्चा ,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: एक हमसफर चाहिए.
बहुत सुन्दर चर्चा आभार
जवाब देंहटाएंयहॉ भी पधारें
MY BIG GUIDE
विण्डोज 8 के बाद अब विण्डोज 8.1 फ्री डाउनलोड कीजिये अभी
बढ़िया सार्थक चर्चा प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स , सब के मन के भावों को पढ़कर लगा की यही भाव तो हमारे मन में भी हैं .
जवाब देंहटाएंरचना के सम्मिलन के लिए आभार !
क्या कहने हैं अभिव्यक्ति के बिम्ब के .अर्थ और भाव के सब कुछ के सार के .
जवाब देंहटाएंज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -
खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।
बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।
भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥
पाप का बोझा हिमालय क्यों सहे?
जवाब देंहटाएंइसलिए घर-द्वार, देवालय बहे,
ज़लज़ला-तूफान आया, अब पहाड़ी गाँव में।
हो गये लाचार सारे, अब पहाड़ी गाँव में।।
बहुत सटीक अर्थ पूर्ण भावपूरित प्रासंगिक रचना .
बजरिये बख्शीश-ए-लोहा ,सोयी जनता जगायेंगे .
जवाब देंहटाएंShalini Kaushik
Mushayera
नायाब प्रस्तुति .गजब की अभिव्यक्ति और शब्द चयन .ॐ शान्ति .
रोचक सूत्रों से सजी चर्चा..
जवाब देंहटाएं