इक याद तेरी ने वर्का फोल्या
इक याद मेरी ने स्याही लिती
कुज कुज यादां तेरियाँ सी
मिठियां मीठियाँ
कुज यादां मेरियां सी
सौंधी जही अलसाई सी
इक याद मेरी ने स्याही लिती
कुज कुज यादां तेरियाँ सी
मिठियां मीठियाँ
कुज यादां मेरियां सी
सौंधी जही अलसाई सी
वे रान्झेया
इक बारी वेल्ली रखी
तेरे मेरे विचोड़े ने
अथरू भर भर के
अँखियाँ विच
लिखे ने
पोथियाँ हजार
इक बारी वेल्ली रखी
तेरे मेरे विचोड़े ने
अथरू भर भर के
अँखियाँ विच
लिखे ने
पोथियाँ हजार
अज हिज्र ने
तेरे मेनू
कमली कित्ता
अज चाड़ दितियाँ ने खड्डी ते
सारियां यादां
बन’न लई
इक दुशाला इश्क विच भिजे हर्फा नाल
लोड़ मैनू तेरी निग दी
तेरे मेनू
कमली कित्ता
अज चाड़ दितियाँ ने खड्डी ते
सारियां यादां
बन’न लई
इक दुशाला इश्क विच भिजे हर्फा नाल
लोड़ मैनू तेरी निग दी
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हिंदी अनुवाद
………………………
एक याद तेरी ने पन्ना खोला
एक याद मेरी ने स्याही ली
कुछ यादें तेरी थी
मीठी मीठी
कुछ यादें मेरी थी
सौंधी सी,अलसाई सी
………………………
एक याद तेरी ने पन्ना खोला
एक याद मेरी ने स्याही ली
कुछ यादें तेरी थी
मीठी मीठी
कुछ यादें मेरी थी
सौंधी सी,अलसाई सी
ओ राँझा (प्रिय)
एक अलमारी खाली रखना
तेरे मेरे विरह ने
आंसू भर भर कर
आँखों में
लिखी हैं
किताबें हजार
एक अलमारी खाली रखना
तेरे मेरे विरह ने
आंसू भर भर कर
आँखों में
लिखी हैं
किताबें हजार
तेरे विरह ने
मुझे
पागल किया हैं
मुझे
पागल किया हैं
आज मैंने खड्डी (कपड़ा बनने की मशीन) पर
चढ़ा दी हैं सारी यादें
बनने के लिये
प्यार से भीगे शब्दों का
शाल
चढ़ा दी हैं सारी यादें
बनने के लिये
प्यार से भीगे शब्दों का
शाल
मुझे जरुरत हैं
तेरे प्यार की गर्मी की
तेरे प्यार की गर्मी की
(साभार : नीलिमा शर्मा)
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नमस्कार !
रविवारीय चर्चा मंच में आपका स्वागत है.
एक नज़र आज की चर्चा में शामिल लिंक्स पर....
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आज तुम्हारे दरवाजे भी लगते खूब बुहारे से - सतीश सक्सेना
--------------------------
पूरे से ज़रा सा कम है ..
सु..मन
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कथांश-15
प्रतिभा सक्सेना
---------------------
काश कि वक्त ठहर जाता ---एक संस्मरण मीठी यादों का !
डॉ. टी. एस. दराल
-------------------
माना कि बहुत मुश्किल है …
प्रतिभा वर्मा
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ग़ज़ल : ख़ुदा सा सर्वव्यापी, दरिंदा हो गया है
सज्जन धर्मेन्द्र
-----------------
१३६. किनारा लहरों से
ओंकार
---------------------
कुछ लोग - 6
यशवंत 'यश'
----------------------
"सबके भय से मेरे साहस को हवा मिलती है"
परी ऍम 'श्लोक'
----------------------
गीत - तरस रहीं दो आँखें Taras Rahin Do Ankhein
नीरज द्विवेदी
-------------------
घरौंदा...
अलका अवस्थी
------------------
जुड़ाव
रेवा टिबरेवाल
-------------------
ये वक्त देखता रहा सहमा हुआ शजर
नवीन मणि त्रिपाठी
------------------
"फिर से हरा-भरा हुआ उजड़ा हुआ दयार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जब
अनिता
------------------
घाती है भादो
विभा रानी श्रीवास्तव
---------------------
खुद को भी पता कहाँ कुछ भी होता है कहाँ किस समय कौन क्या किस के लिये इस तरह भी कह देता है
सुशील कुमार जोशी
--------------------
या अनुरागी चित्त की गति समझे न कोय
वीरेंद्र कुमार शर्मा
--------------------
हम जैसे हैं--तेरे हैं एक प्रभु-गीत
मन के - मनके
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धन्यवाद !
नमस्कार !
रविवारीय चर्चा मंच में आपका स्वागत है.
एक नज़र आज की चर्चा में शामिल लिंक्स पर....
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आज तुम्हारे दरवाजे भी लगते खूब बुहारे से - सतीश सक्सेना
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पूरे से ज़रा सा कम है ..
सु..मन
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कथांश-15
प्रतिभा सक्सेना
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काश कि वक्त ठहर जाता ---एक संस्मरण मीठी यादों का !
डॉ. टी. एस. दराल
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माना कि बहुत मुश्किल है …
प्रतिभा वर्मा
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ग़ज़ल : ख़ुदा सा सर्वव्यापी, दरिंदा हो गया है
सज्जन धर्मेन्द्र
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१३६. किनारा लहरों से
ओंकार
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कुछ लोग - 6
यशवंत 'यश'
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"सबके भय से मेरे साहस को हवा मिलती है"
परी ऍम 'श्लोक'
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गीत - तरस रहीं दो आँखें Taras Rahin Do Ankhein
नीरज द्विवेदी
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घरौंदा...
अलका अवस्थी
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जुड़ाव
रेवा टिबरेवाल
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ये वक्त देखता रहा सहमा हुआ शजर
नवीन मणि त्रिपाठी
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"फिर से हरा-भरा हुआ उजड़ा हुआ दयार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
निन्यानबे के फेर में आया हूँ कई बार
रहमत औ’ करम ने तेरी, मुझको लिया उबार
रहमत औ’ करम ने तेरी, मुझको लिया उबार
ऐसे भी हैं कई बशर, अटक गये हैं जो
श्रम करके मैंने अपना, मुकद्दर लिया सँवार
कल तक थी जो कमी, वो पूरी हो गई है आज,
शबनम में आ गया है, मोतियों सा अब निखार
चलता ही रहा जो, वो पा गया है मंजिलें
पतझड़ के बाद आ गई, चमन में फिर बहार
नदियाँ मुकाम पा के, समन्दर सी हो गईं
थे बेकरार जो कभी, उनको मिला क़रार
महताब को दी रौशनी, जब आफताब ने,
बहने लगी है रात में, शीतल-सुखद बयार
चेहरा चमक उठा, दमक उठा है “रूप” भी
फिर से हरा-भरा हुआ, उजड़ा हुआ दयार
---------------------जब
अनिता
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घाती है भादो
विभा रानी श्रीवास्तव
---------------------
खुद को भी पता कहाँ कुछ भी होता है कहाँ किस समय कौन क्या किस के लिये इस तरह भी कह देता है
सुशील कुमार जोशी
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या अनुरागी चित्त की गति समझे न कोय
वीरेंद्र कुमार शर्मा
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हम जैसे हैं--तेरे हैं एक प्रभु-गीत
मन के - मनके
---------------------
धन्यवाद !
आज की चर्चा में
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और श्रम के साथ चयनित लिंक।
आपका आभार भाई राजीव कुमार झा जी।
उम्दा सूत्र |
जवाब देंहटाएंबहुरंगी सूत्र समेटे चुरुचिपूर्ण चर्चा -आभार राजीव जी !
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुती चर्चा मंच की .... आभार और बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र
जवाब देंहटाएंएक याद तेरी ने पन्ना खोला
जवाब देंहटाएंएक याद मेरी ने स्याही ली
बहुत सुंदर कविता...पठनीय सूत्रों के लिए आभार !
शुक्रिया अनीता जी मेरी नज़्म को पसंद करने का
हटाएंनीलिमा जी की सुंदर कविता से शुरु आज की सुंदर चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'खुद को भी पता कहाँ कुछ भी होता है कहाँ किस समय कौन क्या किस के लिये इस तरह भी कह देता है' को स्थान देने के लिये आभार राजीव जी ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुशिल जी देरी से यहाँ आने के लिय क्षमा पात्र हूँ ....
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति व सूत्र , आ. राजीव जी , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
खूबसूरत सूत्र संजोये हैं ,हार्दिक बधाई जी
जवाब देंहटाएंsunder sutr .....meri rachna shamil karne ke liye aabhaar....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रविवारीय चर्चा प्रस्तुति ..आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंसादर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। सुंदर सार्थक सेतु लिए आकर्षक चर्चा सजाई आपने बधाई। हमारे सेतु को शरीक किया आपका शुक्रिया।
प्रदूषण का असर है, या ए.सी. का करिश्मा
जवाब देंहटाएंहमारा खून सारा, लसीका हो गया है
बहुत खूब कही ग़ज़ल खूब कही।
ग़ज़ल : ख़ुदा सा सर्वव्यापी, दरिंदा हो गया है
सज्जन धर्मेन्द्र
निन्यानबे के फेर में आया हूँ कई बार
जवाब देंहटाएंरहमत औ’ करम ने तेरी, मुझको लिया उबार
सुंदरम मनोहरं
बहुत अच्छी कड़ियाँ मिलीं। मुझे भी शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंनीलिमा जी कि सुंदर कविता पढ़ने को मिली ..सभी लिंक्स बढ़िया ..मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंसु...मन ...शुक्रिया माय डिअर
हटाएंखुब् मनोयोग से आपने सूत्र सजाया है
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा के लिये आभार .
जवाब देंहटाएंआपने मेरी नज़्म से aइस चर्चा की शुरुवात की आपकी आभारी हूँ ......मेरी पसंदीदा नज़्म हैं जो मैंने अमृता प्रीतम जी को याद करते हुए लिखी थी ............आप सभी का तहे दिल से आभार
जवाब देंहटाएं