कुंवर कुसुमेशजी ,आपने इबोला विषाणु जन्य बीमारी का मूल स्रोत खोलके बड़ा उपकार किया है। ब्लॉगर बंधुओं के हितार्थ मैं इसे हिंदी में रख रहा हूँ यहीं से :
इबोला मनुष्यों ,के अलावा बंदरों चिम्पांजियों को होने वाला एक विषाणुजन्य रोग है जिसका फिलवक्त कोई इलाज़ नहीं है अलबत्ता इसके लक्षणों का शमन मुमकिन है।कोंगों देश में इबोला नाम की एक नदी बहती है इसी के नाम पर इसे इबोला कहा जाता है। इस रोग का पता सबसे पहले १९७६ में यहीं चला था।
संक्रमित प्राणियों के रक्त के अलावा शरीर से होने वाले अन्य रिसावों के संपर्क में आने से यह बीमारी स्वस्थ प्राणियों को हस्तांतरित हो जाती है। रोगी को लगाईं जा चुकी सिरिंजों से सम्पर्कित होने और संक्रमित पशु का मांस खाने से भी यह बीमारी हो जाती है।
फिलवक्त इस रोग का कोई मानक इलाज़ नहीं है सिवाय इसके की संक्रमित व्यक्ति को अलग थलग दूर रखा जाए शेष जनों से। तरल पदार्थ लगातार दिए जाए ताकि इलेक्ट्रोलाइट बेलेंस न गड़बड़ाए रोगी शरीर का। रक्तसार्व शरीर के अंदरूनी या बाहरी अंगों से होने पर फ़ौरन रक्तापूर्ति भी की जाए।
कमज़ोरी से शुरुआत होती है इसके लक्षणों की। हैमरेजिक फीवर के अलावा पेशीय पीड़ा (मसल पेन ),सिर दर्द और गले में दर्द (दुखन )इसके दीगर लक्षण हैं। अतिसार के साथ मतली भी रोगी को आती है आ सकती है। अंदरूनी अंगों में रक्तसार्व के अलावा चमड़ी पे चकत्ते भी देखे जा सकते हैं।
बचाव ने ही बचाव। घबराने की कोई वजह नहीं है। एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
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सुंदर संकलन...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सूत्र। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकार्टून को भी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आभार जी.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स।
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल किया,आभार।
उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रविकर जी।
पठनीय सूत्रों से सजी सुंदर चर्चा...आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रविकर चर्चा । 'उलूक' का आभार 'कभी उनकी तरह उनकी आवाज में कुछ क्यों नहीं गाते हो' को स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंकुंवर कुसुमेशजी ,आपने इबोला विषाणु जन्य बीमारी का मूल स्रोत खोलके बड़ा उपकार किया है। ब्लॉगर बंधुओं के हितार्थ मैं इसे हिंदी में रख रहा हूँ यहीं से :
जवाब देंहटाएंइबोला मनुष्यों ,के अलावा बंदरों चिम्पांजियों को होने वाला एक विषाणुजन्य रोग है जिसका फिलवक्त कोई इलाज़ नहीं है अलबत्ता इसके लक्षणों का शमन मुमकिन है।कोंगों देश में इबोला नाम की एक नदी बहती है इसी के नाम पर इसे इबोला कहा जाता है। इस रोग का पता सबसे पहले १९७६ में यहीं चला था।
संक्रमित प्राणियों के रक्त के अलावा शरीर से होने वाले अन्य रिसावों के संपर्क में आने से यह बीमारी स्वस्थ प्राणियों को हस्तांतरित हो जाती है। रोगी को लगाईं जा चुकी सिरिंजों से सम्पर्कित होने और संक्रमित पशु का मांस खाने से भी यह बीमारी हो जाती है।
फिलवक्त इस रोग का कोई मानक इलाज़ नहीं है सिवाय इसके की संक्रमित व्यक्ति को अलग थलग दूर रखा जाए शेष जनों से। तरल पदार्थ लगातार दिए जाए ताकि इलेक्ट्रोलाइट बेलेंस न गड़बड़ाए रोगी शरीर का। रक्तसार्व शरीर के अंदरूनी या बाहरी अंगों से होने पर फ़ौरन रक्तापूर्ति भी की जाए।
कमज़ोरी से शुरुआत होती है इसके लक्षणों की। हैमरेजिक फीवर के अलावा पेशीय पीड़ा (मसल पेन ),सिर दर्द और गले में दर्द (दुखन )इसके दीगर लक्षण हैं। अतिसार के साथ मतली भी रोगी को आती है आ सकती है। अंदरूनी अंगों में रक्तसार्व के अलावा चमड़ी पे चकत्ते भी देखे जा सकते हैं।
बचाव ने ही बचाव। घबराने की कोई वजह नहीं है। एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
unwarkusumesh.blogspot.com/2014/08/blog-post_10.html
नई बिमारी आ गई,मचा हुआ कुहराम।
दिया डॉकटरों ने इसे,नया"इबोला"नाम।।
नया"इबोला"नाम,चली ये अफ्रीका से।
बारह दिन में सिर्फ,उठा दे यह दुनिया से।
रहिये बड़े सतर्क,छोड़ कर दुनियादारी।
अब तक नहीं इलाज,ये ऐसी नई बिमारी।।
सुन्दर चर्चा मंच सजाया। सुन्दर चर्चा मंच सजाया। देखो देखो रविकर छाया।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स दिए है जरुरु पढूंगी,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कविवर, मुझे शामिल करने के लिए !
सभी लिंक्स अनोखे एवम उपयोगी हैं.
जवाब देंहटाएंमिसफ़िट के लिये आभार है जी
सुंदर संकलन...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति .....आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र संकलन !!
जवाब देंहटाएंसादर आभार !!
अच्छा संकलन है आज ...
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन...अच्छे सूत्रों के साथ आपने मेरा लिंक्स शामिल किया, इसके लिए धन्यवाद.....
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंअच्छी सूत्र अच्छी जानकारी
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