मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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शिल्पी बन आयी
मेरे मन-भावों की मिट्टी,
राह पड़ी, जाती थी कुचली ।
तेज हवायें, उड़ती, फिरती,
रहे उपेक्षित, दिन भर तपती ।
ऊँचे भवनों बीच एकाकी,
शान्त, प्रतीक्षित रात बिताती ।।१।।...
प्रवीण पाण्डेय
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संडे को बनाना है फंडे
सुबह सुबह मिल गई चाय बिस्तर पर बैठे बिठाये देख श्रीमती जी को शर्मा जी मुस्कुराये हाथ पकड़ बोले चलो भाग्यवान आज संडे मनाये कुछ हमारी सुनो कुछ अपनी सुनाओ सुनते ही प्यार भरी बाते श्रीमती जी के माथे पे बल आये हाथ झटक कर वह गुर्राई है आपके लिए यह संडे फंडे हमे तो हफ्ते भर का काम...
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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Valentine..डायरी....
तुमको बताऊँगी मैं....!!!
दिल की सारी बाते...
कहनी है तुमसे...
जिन बातो को लब्ज़...
नही दे पाऊँगी..
वो बाते भी...
आँखों से कहनी है....
कुछ भी ना छुपाऊंगी मैं...
कहनी है तुमसे...
जिन बातो को लब्ज़...
नही दे पाऊँगी..
वो बाते भी...
आँखों से कहनी है....
कुछ भी ना छुपाऊंगी मैं...
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
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ख़ुशी की ओर पहला कदम ...
"दर्द ! कैसा दर्द !! "
" अब दर्द कहाँ होता है डॉक्टर ?
कहीं भी हाथ रखो ,
दर्द नहीं होता मुझे !
यह तो मेरे बदन में
लहू बन कर दौड़ रहा है...
नयी दुनिया+ पर
Upasna Siag
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हताशा
थक गयीं हैं आँखें
मद्धम हो गये हैं सितारे
छिप गया है चाँद
और अब तो
सारी कायनात भी
जैसे गहन अन्धकार में
डूब गयी है
मेरा मन भी
थक चला है...
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ये सानिहा सा
वो आया तो ऐसे आया ,
जैसे हो साँझ का कोई झुटपुट साया
हाथ से फिसला वही लम्हा ,
समझा था जिसे , जीने का सरमाया...
जैसे हो साँझ का कोई झुटपुट साया
हाथ से फिसला वही लम्हा ,
समझा था जिसे , जीने का सरमाया...
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कह रहा है खड़ा हिमालय
कह रहा है खड़ा हिमालय
थे हम कभी मुनि का आलय
शिव-शंकर करते थे निवास
होता ऋतु वसंत का वास ...
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...बराक ने सही कहा है
"भारत में आपस में लड़ कर विकास नहीं पैदा नहीं हो सकता"
यह तो आपस के प्यार से ही पैदा होगा।
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दुनिया रंगीन दिखे
इसलिए तो नहीं भर लेते रंग आँखों में
तन्हा रातों की कुछ उदास यादें
आंसू बन के न उतरें
तो खुद-बी-खुद रंगीन हो जाती है दुनिया...
इसलिए तो नहीं भर लेते रंग आँखों में
तन्हा रातों की कुछ उदास यादें
आंसू बन के न उतरें
तो खुद-बी-खुद रंगीन हो जाती है दुनिया...
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"माँझी " की " नैया
" ढूंढें " किनारा "!?-
पीताम्बर दत्त शर्मा
(लेखक-विश्लेषक)
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सूरज कुमार
किरणों के तेज में,
हवा के वेग में,
एक नये उल्लास में,
उमंगो के तलाश में तुम चलो
ये राह भी तुम्हारा है,
ये धरा भी तुम्हारी है,
तो क्यो डरते हो बाधाओ से...
Suraj kumar Jaiswal
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रश्क़े-समंदर हम !
न नींद आए न चैन आए
तो आशिक़ क्यूं हुआ जाए
लिया तक़दीर से लोहा
बहारें लूट कर लाए...
साझा आसमान पर
Suresh Swapnil
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"दोहे-प्रस्ताव दिवस"
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दोराहे पर ठिठका भारतीय प्रजातंत्र
असगर अली इंजीनियर स्मृति व्याख्यान
मैं अपने इस व्याख्यान की शुरूआत, अपने अभिन्न मित्र डाॅ. अस़गर अली इंजीनियर को श्रद्धांजलि देकर करना चाहूंगा, जिनके साथ लगभग दो दशक तक काम करने का सौभाग्य मुझे मिला। डाॅ. इंजीनियर एक बेमिसाल अध्येता-कार्यकर्ता थे। वे एक ऐसे मानवीय समाज के निर्माण के स्वप्न के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध थे, जो विविधता के मूल्यों का आदर और अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा करे।...
मैं अपने इस व्याख्यान की शुरूआत, अपने अभिन्न मित्र डाॅ. अस़गर अली इंजीनियर को श्रद्धांजलि देकर करना चाहूंगा, जिनके साथ लगभग दो दशक तक काम करने का सौभाग्य मुझे मिला। डाॅ. इंजीनियर एक बेमिसाल अध्येता-कार्यकर्ता थे। वे एक ऐसे मानवीय समाज के निर्माण के स्वप्न के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध थे, जो विविधता के मूल्यों का आदर और अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा करे।...
लो क सं घ र्ष !परRandhir Singh Suman
बहुत बढ़िया लिंक !
जवाब देंहटाएंगोस्वामी तुलसीदास
सुंदर चर्चा । आभार शास्त्री जी 'उलूक' के सूत्र 'पढ़ पढ़ के पढ़ाने वाले भी कभी पानी भर रहे होते हैं' को आज की चर्चा में जगह देने के लिये ।
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जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति…मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
excellent links have to check them one by one
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सार्थक, उम्दा सूत्र ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंसभी सुन्दर लिंक.........
जवाब देंहटाएंhttp://shabdsugandh.blogspot.in/
सुन्दर चर्चा में मेरी रचना को जगह देने के लिए धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स, चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार शास्त्री जी...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर -सुन्दर और सार्थक लिंक्स!
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा ... आभार मुझे शामिल करने का ...
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