मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के लिंक।
नवगीत (27)
वह मेरे दिल के क़रीब है ॥
बेशक़ ! यह लगता अजीब है ॥
वह करता है अपने मन की ।
कुछ कहते हैं उसको सनकी ,
कुछ उसको धुर सिड़ी पुकारें –
वह मेरे दिल के क़रीब है ॥...
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कभी बिछुड़े तो कभी साथ...
मुक्तक और रुबाईयाँ-6
(1)
कभी बिछुड़े तो कभी साथ-साथ चलते रहे,
एक ही ताप फिर मोम-से पिघलते रहे
छू गया तब कोई शैतान हवा का झौंका
साथ-साथ बुझते रहे, साथ-साथ जलते रहे।
-जिगर मुरादाबादी
धरती की गोद पर
Sanjay Kumar Garg
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जा के देख
वो समंदर में हुई बे नकाब जा के देख।
नदी में तिश्नगी है बे हिसाब जा के देख।।...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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शिक्षित बचपन
"निर्मला पानी ला , अरी कितना समय लगाएगी" , चिल्लाने लगी निर्मला की मालकिन...... डरी सहमी 9 साल की निर्मला काँपने लगी उस भय से की फिर देर हो गयी तो कल कि तरह मार पड़ेगी , जैसे ही वो गयी मालकिन ने सारे दिन का काम बता दिया ...
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नहीं कहना कुछ भी किसी से
यूं तो हैं यहाँ
बहुत से किस्से
सुनने सुनाने को
बहुत से सुनूँ क्या
और क्या कहूँ किससे ....?
Yashwant Yash
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दूरदृष्टि
पिताजी सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. छोटा भाई कोई पाँच - सात साल पहले ही सरकारी नौकरी में लगा था. अब तक पिताजी, छोटी बहन की शादी के लिए रिटायरमेंट के बाद भी उसके साथ ही रहते थे, जो उनके सेवा निवृत्ति के स्थान पर ही नौकरी भी करती थी. भाई की उम्र हो चली थी पर वह कि शादी के फेरों में पड़ने से भाग रहा था...
Laxmirangam
पिताजी सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. छोटा भाई कोई पाँच - सात साल पहले ही सरकारी नौकरी में लगा था. अब तक पिताजी, छोटी बहन की शादी के लिए रिटायरमेंट के बाद भी उसके साथ ही रहते थे, जो उनके सेवा निवृत्ति के स्थान पर ही नौकरी भी करती थी. भाई की उम्र हो चली थी पर वह कि शादी के फेरों में पड़ने से भाग रहा था...
Laxmirangam
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शाम का सांवला अक्स
काश...तुम न होते
तो ये बातें भी न होती
गुजरते शाम का
सांवला अक्स
मेरे चेहरे पर न पड़ता...
रूप-अरूप
काश...तुम न होते
तो ये बातें भी न होती
गुजरते शाम का
सांवला अक्स
मेरे चेहरे पर न पड़ता...
रूप-अरूप
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कुछ अलाहदा शे’र :
आग़ाज़े बहार है
मेरा चेहरा बिगाड़ कर मुझे दिखाता है,
एक अर्सा से आईने को संवारा जो नहीं।
एक अर्सा से आईने को संवारा जो नहीं।
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल
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मान का एक दिन
मेरे अनबोले का एक बोल गूँज गया ,
जैसे ये पछुआ मनुहार तुम्हारी ! !
मटमैले वर्तमान ने अपने कन्धों पर
डाली है बीते की सात रंग की चादर ,
दुख के इस आँगन में सुधियों के सुख - जैसा
सन्ध्या ने बिखराया जाने क्यों ईंगुर ?...
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"रूप कञ्चन कहीं है कहीं है हरा"
धानी धरती ने पहना, नया घाघरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।।...
बहुत उपयोगी लिँक
जवाब देंहटाएंपधारौ
फसबुक पेज
सुंदर शनिवारीय प्रस्तुति । आभार 'उलूक' का सूत्र 'ब्लागर होने का प्रमाणपत्र कहाँ मिल पायेगा कौन बतायेगा' को स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंसूत्र संचयन संतुलित लगा ,पढ़ते हैं .... आभार आपका !!!
जवाब देंहटाएंसूत्र संचयन संतुलित लगा ,पढ़ते हैं .... आभार आपका !!!
जवाब देंहटाएंउम्दा तरीके से पोस्ट रखी गयी है,कई काफी पसन्द आई,शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा आज का चर्चामंच.....आपको बधाई और आभार कि मेरी रचना को आपने यहां स्थान दिया।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत बहुत धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना 'नवगीत (27) वह मेरे दिल के क़रीब है' को शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंसुन्दर-सुन्दर लिंक के लिए धन्यवाद! आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंमयंक जी आपका बहुत सराहनीय प्रयास है . आपको बहत - बहुत धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंacche links padhne hetu mile--abhaar.
जवाब देंहटाएंbahut sundar ..dhanyavad n aabhar ....
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