मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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हाँ मैं नास्तिक हूँ
नहीं बजाती
रोज़ मंदिरों की घंटियाँ
ना ही जलाती हूँ
आस का दीपक...
बावरा मन पर सु-मन
(Suman Kapoor)
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कायस्थ ब्राह्मण
कायस्थ, एक 'उच्च' श्रेणी की जाति है हिन्दुस्तान में रहने वाले सवर्ण हिन्दू चित्रगुप्त वंशी क्षत्रियो को ही कायस्थ कहा जाता है। स्वामी वेवेकानंद ने अपनी जाती की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है :- एक बार स्वामी विवेकानन्द से भी एक सभा में उनसे उनकी जाति पूछी गयी थी। अपनी जाति अथवा वर्ण के बारे में बोलते हुए विवेकानंद ने कहा था “मैं उस महापुरुष का वंशधर हूँ, जिनके चरण कमलों पर प्रत्येक ब्राह्मण ‘‘यमाय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै नमः’’ का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि प्रदान करता है और जिनके वंशज विशुद्ध रूप से क्षत्रिय हैं...
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डेढ़ सालतक मैं भी कुत्ता था
...सड़क तो गरीबों के बाप की नहीं हैं फुटपाथ क्या अमीरों के बाप का है।
गायक का सबंध भावना से होता है लेकिन अचनाक वह भौंकने लगे तो आश्चर्य होता है। ये अच्छी बात है उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ है और उन्होंने माफ़ी मांग ली है अपनी इस संवेदहीनता के लिए। वह कुत्ता से फिर आदमी बन गए हैं इसीलिए हमें भी एक गायक के रूप में अब वे स्वीकार्य है।
गायक का सबंध भावना से होता है लेकिन अचनाक वह भौंकने लगे तो आश्चर्य होता है। ये अच्छी बात है उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ है और उन्होंने माफ़ी मांग ली है अपनी इस संवेदहीनता के लिए। वह कुत्ता से फिर आदमी बन गए हैं इसीलिए हमें भी एक गायक के रूप में अब वे स्वीकार्य है।
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क्या होगा तब
जब करूंगा अंतिम प्रयाण
ढहते हुए भवन को छोडकर निकलूँगा जब
बाहर किस माध्यम से होकर गुज़रूँगा ?
हाँ हवा होगी या निर्वात होगा?
होगी गहराई या ऊंचाई में उड़ूँगा
मुझे ऊंचाई से डर लगता है...
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दे भुक्ति मुक्ति हैं जग तारन तरन
सदा साथ कमलाकर किंकर।
कुन्दकली सम वरदंत मनोहर।।
मति विमला सबला विद्या वर।
सुमिरत मोह कोह हटे सत्वर।।
दांत पीस कर मुष्टिका प्रहार।
रन छोड़े शत्रु दांत खट्टे कर...
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जलन और मुहब्बत - सुधीर मौर्य
देख लेता था मैं,
तुम्हारे चेहरे पे
जलन के निशान
क्लास में मेरे
प्रथम आने के एनअउंस पे
देखते थे मुझे तुम,
तिरछी निगाहो से
जब हमारी टीम
जीत लेती थी
क्रिकेट का कोई मैच...
कलम से.. पर
Sudheer Maurya 'Sudheer'
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जाने कब हम गुज़रा हुआ कल हो जाएँ...!
...आँखें मूँद कर महसूस किया तो पास मिली...
प्रश्नों से जूझती ज़िन्दगी बन उत्तर की आस खिली...
अब बस यही प्रार्थना है प्रश्न सकल हल हो जाएँ
आ ज़िन्दगी! अभी गले मिल...
जाने कब हम गुज़रा हुआ कल हो जाएँ...
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कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!!
भाग-16
तुम मुझे जीतने की, इक कोशिश तो करो...
मैं तो खुद को पहले ही, हार चुकी हूँ...
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न तुम गया वक्त हो
और न मैं .........
जाने वो कौन सा गाँव कौन सा शहर कौन सी डगर है
जहाँ कोयल के कुहुकने से होती हैं सुबहें
अब चौपाये इश्क के हों या अंधेरों के
एक बिखरी रौशनी कात रही है सूत
उम्र का रेशा रेशा कम होता रहे बेशक
ओढने को चादर बना ही दी जाएगी
फिर क्या फर्क पड़ता है दिन हो या रात...
vandana gupta
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