मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दोहे "करो आज शृंगार"
जिनके घर के सामने, खड़ा हुआ है नीम।
उनके घर आता नहीं, जल्दी वैद्य-हकीम।।
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प्राणवायु देते हमें, बरगद-पीपल नीम।
भूल रहे हैं आज सब, पुरखों की तालीम...
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मुझको मेरा यार पुराना पूछेगा
. बदली में है चाँद दीवाना पूछेगा,
मुझको मेरा यार पुराना पूछेगा...
Harash Mahajan
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सम्पूर्ण हुआ जीवन मेरा द्वार तेरे आके
अनुपम सौंदर्य अलौकिक छटा देख खुल गए द्वार
अंतर्मन के झंकृत हुआ मन
रूप नया देख मै इस पार तुम उस पार...
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अमेठी फ़ूड पार्क
... भाषा बोध संस्कारों से जुड़ा होता है और संस्कार ये दुर्बुद्ध उस महान महीयसी के लिए है जो गत पांच दशकों में भी न तो इस देश की भाषा सीख सकी हैं न हिन्दुस्तानी तहज़ीब। अमेठी फ़ूड परियोजना मूलतया यूपीए शासन काल में २०१० में उठायी गई थी ,किन्तु पांच साल तक यूपीए सरकार सोती रही। लेकिन चुनाव से पहले...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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....खामोश रही तू - संजय भास्कर
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कविता
दक्षिणपंथी दड़बों से
और वामपंथी कविता के कांजीहाउस से
अब आज़ाद हो चुकी है
"कविता किसे कहते हैं ? उसकी दिशा, दशा क्या है ? कालिदास के समय कविता अभ्यारण्य में थी ...फिर अरण्य में आयी ...फिर कुछ लोगों ने कविता को दक्षिणपंथी दकियानूसी दड़बों में कैद किया तो वामपंथी कविता के कांजीहाउस उग आये ...आलोचक जैसी स्वयंभू संस्थाएं कविता की तहबाजारी /ठेकेदारी करने लगे ...कविता की आढ़तों पर कविता के आढ़तियों और कविता की तहबाजारी के ठेकेदार आलोचकों से गंडा ताबीज़ बंधवाना जरूरी हो गया था . दक्षिणपंथियों ने कविता को अपने दकियानूसी दड़बे में कैद किया ...छंद, सोरठा, मुक्तक, चौपाई आदि की विधाओं से इतर रचना को कविता की मान्यता नहीं दी गयी ...शर्त थी शब्दों की तुक और अर्थों की लयबद्ध...
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