मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
कुछ ब्लॉगर मित्रों ने प्रश्न किया है कि
पोस्टो के मात्र लिंक ही क्यों दिये जाते हैं चर्चा में?
मेरा मानना यह है कि
लोग यदि आपकी पूरी पोस्ट यहीं पर पढ़ लेंगे
तो वो आपके ब्लॉग पर क्यों जायेंगे?
इसलिए कोतूहल बनाये रखने के लिए
पोस्टों का लिंक दिया जाता है।
कुछ ब्लॉगर मित्रों ने प्रश्न किया है कि
पोस्टो के मात्र लिंक ही क्यों दिये जाते हैं चर्चा में?
मेरा मानना यह है कि
लोग यदि आपकी पूरी पोस्ट यहीं पर पढ़ लेंगे
तो वो आपके ब्लॉग पर क्यों जायेंगे?
इसलिए कोतूहल बनाये रखने के लिए
पोस्टों का लिंक दिया जाता है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"मौसम नैनीताल का"
गरमी में ठण्डक पहुँचाता,
मौसम नैनीताल का!
मस्त नज़ारा मन बहलाता,
माल-रोड के माल का!!
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अलका सरावगी
साहित्यिक कसौटियों पर खरी हैं |
Alka Saraogi's Novel
'Jankidas Tejpal Mansion' getting popular
शब्दांकन पर Bharat Tiwari
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बढ़कर गले लगाती मुमताज़ मौत है
दरिया-ए-जिंदगी की मंजिल मौत है ,
आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .
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बाजीगरी इन्सां करे या कर ले बंदगी ,
मुक़र्रर वक़्त पर मौजूद मौत है ...
आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .
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बाजीगरी इन्सां करे या कर ले बंदगी ,
मुक़र्रर वक़्त पर मौजूद मौत है ...
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अब शमा बुझने लगी
परवाने' के जाने के बाद
छुप गया कोई कहीं
फिर पास अब आने के बाद
याद आई फिर हमें
तेरे कहीं जाने के बाद ....
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माँगकर सम्मान पाने का चलन देखा यहाँ
मान अपना खुद घटाने, का चलन देखा यहाँ...
किस तरह साहिल बचाए, डूबते को कर पकड़
साहिलों को ही डुबाने, का चलन देखा यहाँ...
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''माँ'
कोई बला जब हम पर आई ,
माँ को खुद पर लेते देखा !
हुआ हादसा साथ हमारे ,
माँ को बहुत तड़पते देखा...
माँ को खुद पर लेते देखा !
हुआ हादसा साथ हमारे ,
माँ को बहुत तड़पते देखा...
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बेड़ियाँ
न जाने कब से मैं खोल रहा हूँ बेड़ियाँ,
पर एक खोलता हूँ, तो दूसरी लग जाती है.
तरह-तरह की बेड़ियाँ, अनगिनत बेड़ियाँ...
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अच्छा लगता सब कुछ- जैसे माँ की लोरी
...आओ अपना लें सब अच्छा दुर्गुण छोड़ें
सच ईमान को अंग बना लें रहें ख़ुशी
दिव्यानंद समाये मन में हाथ मिला लें
सब को गले लगा रे प्यारे , ना धन-निर्धन दीन दुखी...
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN
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फिर से कलम उठा।
थोड़ी सी स्याही भरता हूँ।
बहुत दिनों से सोचता हूँ।
कोई खत लिखता हूँ...
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साथी का साथ
नही मिलता
अपनो का हाथ
नही बढ़ता
बढ़ता अपेक्षाओ का सागर
खाली खाली रह गई डगर
हम बिखर बिखर कर
सिमट गये...
नही मिलता
अपनो का हाथ
नही बढ़ता
बढ़ता अपेक्षाओ का सागर
खाली खाली रह गई डगर
हम बिखर बिखर कर
सिमट गये...
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...पुर्साने-हाल दे !
आसां है तो क्यूं कर न ज़ेह्न से निकाल दे
मुश्किल है तो ला दे, मुझे अपना सवाल दे...
मुश्किल है तो ला दे, मुझे अपना सवाल दे...
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गर जुल्फी सायों में सर नहीं,
शेरों में फिर वो असर नहीं
आँखों में लुत्फ़-ए-शराब वो, मेरी जिन्दगी की किताब वो,
बचपन से उठते सवाल का, हर ख़त में उसका जवाब वो...
बचपन से उठते सवाल का, हर ख़त में उसका जवाब वो...
Harash Mahajan
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