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बुधवार, मई 06, 2015

बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं; चर्चा मंच 1967

Neeraj Kumar Neer 
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दोहे "तोल-तोलकर बोल" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

जीवन ऐसा क्षेत्र है, जहाँ नहीं विश्राम।
परमारथ के काम को, करना आठों याम।।
--
चलना ही है ज़िन्दग़ी, रुकना है अवसान।
 जब आती है रात तो, होता तब सुनसान...

तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी मुझसे.. 

 जो मुस्कराहट मेरी, 
तुम्हारे होटों पर मुस्कान लाती थी... 
वही आज... 
तुम्हे अच्छी नही लगती है.... 
'आहुति' पर sushma 'आहुति' 

माँ हो गई है कुछ कमजोर... 

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नयी उड़ान +पर Upasna Siag 

अर्पित ‘सुमन’ पर सु-मन (Suman Kapoor) 

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