मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दोहे "मातृ-दिवस"
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दोहे "मातृ-दिवस"
होता माता के बिना, यह संसार-असार।
एक साल में एक दिन, माता का क्यों वार।।
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करते माता-दिवस का, क्यों छोटा आकार।
प्रतिदिन करना चाहिए, माँ से प्यार अपार...
--मुसलसल कायनात
शिद्दत से माँ के नग़मे गाती है .
खुदा नहीं मगर
''माँ'
खुदा से कम नहीं होती !
मातृ दिवस पर ....
कविता --
माँ ...
माँ जितने भी पदनाम सात्विक,
उनके पीछे मा होता है |
चाहे धर्मात्मा, महात्मा, आत्मा हो
अथवा परमात्मा |
जो महान सत्कार्य जगत के,
उनके पीछे माँ होती है...
डा श्याम गुप्त
--गांव से माँ आई है
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
--अब भला क्यों सजन, धूप में!
आग लगती है ठन्डी हवा तुम कहाँ हो? सजन,
धूप में हर तरफ बिछ रही चांदनी चल रहा हूँ सजन...
--तोड़े गए फूल
मत पहनाओ मुझे फूलों का हार,
मत स्वागत करो मेरा गुलदस्तों से,
मेरी शव-यात्रा को भी बख्श देना,
मत सजाना मेरा जनाज़ा फूलों से.
उन्हें खिल लेने दो डाल पर,
जी लेने दो अपनी ज़िन्दगी...
कविताएँ पर Onkar
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मैं अपना लिखा,
तुमसे सुनना चाहती थी.....!!!
अपने शब्दों में तो पिरोया था मैंने,
अब तुम्हारी आवाज़ में, बुनना चाहती थी....
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
--हाइकू !
माँ मेरी तुम ममता का आँचल छाँव घनी हो।
लोरी तुम्हारी पीड़ा हरे हमारी आये निंदियां.
तुमने छोड़ा अनाथ हुए हम पीड़ा भरी है।
कभी तो आओ सपने में ही सही प्यार करने...
हाथ हमारे
Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार
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गंगटोक से उत्तरी सिक्किम का वो सफ़र
(Gangtok to North Sikkim )
मुसाफ़िर हूँ यारों ... पर Manish Kumar
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विचार: न्याय की कीमत रवीन्द्र पाटिल!!!
मुम्बई उच्च न्यायलय द्वारा सलमान खान को बेल पर रिहा किया जाना और आज निचली अदालत के फैसले को निलम्बित कर देने के पूरे घटनाक्रम से न्याय और व्यस्था पर कई सवाल उठे है।कानून सब के लिये बराबर है, यह धारणा कमजोर होती दिखी है...
बुलबुला पर Vikram Pratap singh
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*एक पते की बात*
एक घर के मुखिया को यह अभिमान हो गया कि उसके बिना उसके परिवार का काम नहीं चल सकता। उसकी छोटी सी दुकान थी। उससे जो आय होती थी, उसी से उसके परिवार का गुजारा चलता था।चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता...
PataliपरPatali-The-Village
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एक मुख़्तलिफ़ ग़ज़ल ....
छूटे हुए जो, साथ में लाने की बात कर
दिल पे खिंची लकीर मिटाने की बात कर
जो बात आम थी जिसे दुनिया भी जानती
बाक़ी बचा ही क्या ? न छुपाने की बात कर...
दिल पे खिंची लकीर मिटाने की बात कर
जो बात आम थी जिसे दुनिया भी जानती
बाक़ी बचा ही क्या ? न छुपाने की बात कर...
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कौन भला निर्दोष यहाँ
दो दिनों में ही
सब राजा हरिश्चन्द्र के वशंज
चीख़ –चीख़कर न्याय का घंटा बजा रहे हैं .....
मीडिया ने भी..हद कर दी ....
ऐसा शोर मचाया कि
जैसे इसके अतिरिक्त
न तो देश में कोई समस्या है
..न कोई अन्य दोषी ..
न अपराधी.......
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कुछ लोग -16
बहुत सस्ते होते हैं कुछ लोग
जो बिताया करते हैं
अंधेरी रातें फुटपाथों पर
और दिन में झुलसा करते हैं
घिसटा करते हैं
डामर वाली चमकदार सड़कों पर
चमका करते हैं चाँद के चेहरे पर
कील मुहांसों की तरह...
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash
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डुकरिया
लघु कथा डुकरिया
पवित्रा अग्रवाल
ससुराल से पीहर आई बेटी से वहाँ के हाल चाल पूछते हुए माँ ने पूछा -- "तेरी डुकरिया के क्या हाल हैं ?' "कौन डुकरिया माँ ?' "अरे वही तेरी सास ।' "प्लीज माँ उन्हें डुकरिया मत कहो ...अच्छा नहीं लगता ।' "मैं तो हमेशा ही ऐसे कहती हूँ, इस से पहले तो तुझे कभी बुरा नहीं लगा...अब क्या हो गया ?...
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