मित्रों।
शुक्रवार के चर्चाकर
आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी ने सूचित किया है-
"आदरणीय शास्त्री जी
सादर नमस्ते,
"आज मेरा आँख का चेकअप है हॉस्पिटल जा रहा हूँ।
कब तक छुट्टी मिलेगी मालूम नही।
कल की चर्चा नही लगा पाउँगा,
जिसका मुझे खेद है।"
आपका सहयोगी-
राजेन्द्र कुमार
आबू धाबी
आबू धाबी
इसलिए शुक्रवार की चर्चा में
मेरी पसन्द के कुछ लिंक देखिए।
--
--
सर्वव्यापी ईश्वर
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे ना कोय
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय.
संत कबीर की नीति के दोहों में बहुत गंभीर नीतिगत दार्शनिक उपदेश दिए गए हैं. यहाँ सुमिरन का तात्पर्य ईश्वर को याद करना है. वास्तव में ईश्वर एक आस्था का नाम है जिस पर भरोसा करने से सांसारिक कष्ट कम व्यापते हैं और...
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय
--
बचपन और शरारतों का वैसा ही रिश्ता होता है जैसा पतंग और डोर का ! और इस संयोग को और दोबाला करना हो तो कुछ हमउम्र संगी साथी और भाई बहनों का साथ मिल जाये और गर्मियों की छुट्टियों का माहौल तो बस यह समझिए कि सातों आसमान ज़मीन पर उतार लाने में कोई कसर बाकी नहीं रह जाती ! और तब घर के बड़े बुजुर्गों को भी बच्चों को अनुशासन में रखने के लिये जो नाकों चने चबाने पड़ जाते हैं...
--चोरी का माल
अमन पापा के साथ अपनी ज्वैलरी की दुकान पर बैठा था तभी एक दीन हीन सा आदमी आया और दुखी स्वर में बोला साहब मुझे पैसों की बहुत जरूरत है, बीबी दवाखाने में है. पचास हजार रुपए अभी जमा कराने हैं ,लेट होगया तो वह मर जाएगी '
‘इसमें हम तुम्हारी क्या मदद कर सकते हैं ?’
उसने इधर उधर नजर दौड़ाई और बोला मैं बेचने को पत्नी के गहने लाया हूँ...उन्हें खरीद कर आप मेरी मदद कर सकते हैं।’...
‘इसमें हम तुम्हारी क्या मदद कर सकते हैं ?’
उसने इधर उधर नजर दौड़ाई और बोला मैं बेचने को पत्नी के गहने लाया हूँ...उन्हें खरीद कर आप मेरी मदद कर सकते हैं।’...
--
शब्द ही नही थे...
आज शब्दों को समेटते हुए,
पूछती हूँ.... अपने शब्दों से,
कि ये मुझे सम्हालते है...
या अपने शब्दों में.... बिखेर देते है....
गर मेरे साथ है तो....
क्यों... कई मोड़ पर,
ये मुझे तन्हा छोड़ देते है.....
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
--
--
"2000 आँखें चिकितसकों ने कूड़े दान में फैंक दीं "
"अब करना भी क्या है इन " आँखों " का ??
पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विश्लेषक )
--
मैं कौन हूँ
मोज़े बेचती, जूते बेचती औरत
मेरा नाम नहीं मैं तो वही हूँ
जिसको तुम दीवार में चुन कर
मिस्ले सबा बेख़ौफ़ हुए
ये नहीं जाना पत्थर से
आवाज़ कभी भी दब नहीं सकती ...
--
--
देख लो...
अभिमान से हुआ न कोई काम देख लो
कंस, रावण सभी का परिणाम देख लो
अभिमान छोड्ना पडा जगदीश को
यहां मुरारी ने लिया रणछोड नाम देख लो...
Jitendra tayal
--
खींचता जाए है मुझे
कई बार इंसान न चाहते हुए भी किसी ओर खिंचा चला जाता है. बकौल ग़ालिब के ..
खुदाया ! जज्बए-दिल की मगर तासीर उल्टी हैॉ
कि जितना खींचता हूं और खिंचता जाए है मुझसे
बैठकबाजी के साथ भी यही बात है.आप जितना बैठकबाजी से दूर रहना चाहते हैं,यह उतनी ही तेजी से आपको अपनी ओर खींचती है...
--
--
--
--
माँ की पूजा जो करता वह है मुझे प्रिये
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक
उर में भाव हृदय में वंदन
पूछा भक्त ने भगवन से
पूजा करूँ निस दिन तिहारी
कब दोगे दरस अपने
कब मिलोगे हे प्रभु ...
--
--
--
ग़ज़ल
"हाथों में उसके आज भी झूठा गिलास है"
दिल्ली उन्हीं के वास्ते, दिल जिनके पास है
खाली है अगर जेब तो, दिल्ली उदास है
चारों तरफ मची हुई है भाग-दौड़ सी
रिश्तो में अब मिठास के बदले खटास है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।