चर्चामंच के पाठकों को सादर नमस्कार. सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है. पिछली बार की मेरी चर्चा की तरह ही, इस बार भी चर्चा के अनोखे पते का अर्थ है, अ से अनूषा की तीसरी चर्चा, और आज तक की कुल प्रकाशित चर्चाओं की संख्या - १९७२.
बिना और किसी भूमिका के, चलें अपने पहले स्तंभ की ओर. गुनगुनाती शुरुआत में आज मेरी आवाज़ में एक गीत है, पॅरोडी भी कह सकते हैं.
गुनगुनाती शुरुआत - “धूम मची है झूम रही हूं...”
दरअसल, पिछले साल भाई की शादी में अपनी मम्मा की खुशी की भावना की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त गीत ढूंढने का कार्य सौंपा गया. मैंने बहुत खोजा, पर एक तो ऐसे बहु के आगमन पर सासु-मां की प्रसन्नता के, बेटे के सेहरे बंधने की पर मां की भावना को शब्दों में पिरोए गीत हैं ही कम, उसमें भी फिर उसमें से अपनी पसंद के गीत का चुनाव - बड़ा मुश्किल था. आखिर में एक लोकप्रिय गीत के बोलों में फेर बदल कर बात बन गई. धुन भी प्यारी, बोल भी उपयुक्त.
बिन मांगी राय, अंतरजाल के गुण सिखाय - क्यों गूगल प्लस पर दिखे एक ही रचना कई बार
इस नए स्तंभ में, आप बिना मांगे ही राय पाएंगे. कुछ ऐसी काम की युक्तियां, या टिप्स, जो अंतरजाल को उपयोग करते वक्त बहुत ही कारगर सिद्ध होंगी.
अधिकतर सह-चिट्ठाकार गूगल प्लस का उपयोग करते हैं, और अपनी रचनाओं को अपने गूगल प्लस प्रोफाइल/पृष्ठ व कई हिंदी की गूगल प्लस बिरादरियों (Communities) में साझा करते हैं. पर एक रचना को कई बार साझा करने के कारण (जो नए पाठकों से जुड़ने के लिए आवश्यक है), उनके पृष्ठ या गूगल प्लस प्रोफाइल को “ विज़िट” करने पर वो एक रचना कई बार दिखती है. आगंतुक चाहेंगे, कि आपकी सारी रचनाओं का सार पा सकें. एक छोटी सी गूगल प्लस "सेंटिंग" परिवर्तन से आपकी विविध रचनाएं एक ही झलक में पाठकों को विदित हो सकती हैं. इस सेटिंग के बारे में विस्तार से, और गूगल प्लस बिरादरियों से संबंधित और भी कुछ बहुत कारगर टिप्स पाने के लिए ये लेख पढ़ें ~
रोचक आलेख / हास्य व्यंग्य
इस बार इस स्तंभ में हमारी दुनिया को आइना दिखाते दो ज्वलंत आलेख/विचाराभिव्यक्तियां.
अभिषेक शुक्ला (वंदे मातरम्) |
विजयराज जी (कलम और कुदाल) |
तुकांत या ताल, या गज़ल बेमिसाल, बस कविताओं का धमाल
सुशील कुमार जोशी (उलूक टाइम्स)
शास्त्री जी का कोना
अब चर्चामंच के संस्थापक शास्त्री जी की ओर से कुछ कढ़ियां प्रस्तुत हैं.
वन्दना "संधान सफल कर दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उच्चारणपर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
माँ........... नहीं समझ आई ये दुनिया मुझे...
Vishaal Charchchitपर विशाल चर्चित
माँ, जहां ख़त्म हो जाता है अल्फाजों का हर दायरा...
Vishaal Charchchitपर विशाल चर्चित
जनाब मत पूछो
तीखी कलम सेपर Naveen Mani Tripathi
माँ
मेरी सच्ची बातपर सरिता भाटिया
हे माँ ! ..
उन्नयन (UNNAYANA)पर udaya veer singh
बेटी, खुद खुश रहकर, सभी को खुश रखना...
आपकी सहेलीपर Jyoti Dehliwal
माँ- जीवन का पर्याय
palash "पलाश"पर डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
सुमधुर समापन - “मैया मोरी...”
और अब समय है, सुमधुर समापन का. कल मातृ दिवस था, तो आज इस कर्णप्रिय गीत के साथ आपसे विदा लेती हूं.
ईश्वर से कृपा से मैं स्वयं भी मातृत्व की धनी हूं, और मेरा पुत्र इतना नटखट, जिज्ञासु और चंचल है, कि गाहे बगाहे उसका मन बहलाने को तरह तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं, कभी गाय की आवाज़, कभी गाना. ऐसी ही कुछ स्थिति थी, और “मैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना” की तर्ज पर मैंने ये लिखा था -
ओ तेरे प्यार में क्या क्या न बनी मैया,
कभी बनी गैया, कभी गवैया...
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