Ravishankar Shrivastava
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दोहे "श्रद्धासुमन लिए हुए लोग खड़े हैं आज"(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अच्छे दिन के स्वप्न तो, हुए बहुत अब दूर।
दाम तेल के बढ़ रहे, महँगाई भरपूर।।
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शक्कर-घी महँगा हुआ, महँगा आटा-तेल।
शासक सत्ता मोह में, खेल रहा है खेल...
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vandana gupta
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये
-- गुलज़ार साहब के लिए ........© परी ऍम. "श्लोक"
ज़ेहन जब भारी तबाही से गुज़रता है
मैं आकर ठहर जाती हूँ
तुम्हारी नज़्म की गुनगुनी पनाहों में
और खुद को महफूज़ कर लेती हूँ
तमाम उलझनों से...
Lekhika 'Pari M Shlok
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