मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हुआ है मेरा दिल निहाल रे
आकर पास तू भी बता जरा
क्या है तेरे दिल का हाल रे ....
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यादें सज ही जातीं हैं
मेरी डायरी के कागज़
लिखे गए या रहे अघूरे
कुछ कोरे रहे भी तो क्या
यादों की बयार साथ लाये
रुपहली यादों की महक
सुनहरी धूप की गमक
मन को बहकाए...
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'' दिल वाले '' नामक मुक्तक ,
कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह -
'' चाँद झील में '' से लिया गया है -
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वादा...
मुझे अपना एक-एक कदम एक-एक मील सरीखा महसूस हो रहा था. बमुश्किल बीस मिनट दूर जेम्स का घर मुझे कई सदियों दूर महसूस हो रहा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था आखिर जेम्स को सब कुछ बताते हुए मैं उसका सामना कैसे करुँगी. पता नहीं ये सब कुछ जेम्स झेल भी कैसे पायेगा...
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याद है वो तुम्हे चाँद की रात...
याद है तुम्हे वो चाँद की रात,
दूर तक थी चाँदनी...
अपने चाँद के साथ...
चांदनी की स्याह रौशनी में,
मैं बैठी थी थाम कर,
अपने हाथो में लेकर तुम्हारा हाथ...
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ज़िन्दगी का खटराग ---
दिन गुज़रते हैं
फिर भी वक़्त थमा हुआ सा है.
ये एक अजीब मौसम है...
Bhavana Lalwani
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चली जा रही हूँ उस ऊँचे टीले को देखती
जहाँ धीरे से उतरती गर्भवती महिला पति को थामे
फिर तभी तेज रफ्तार भागती गाड़ियाँ
और वहीं सामने स्कूल
जिसका छूट्टी का घण्टा बज रहा है ...
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क्यों
सकल, नित, नूतन विधा में,
दोष प्रस्तुत हो रहे क्यों ।
क्यों विचारों में उमड़ता,
रोष जो एकत्र बरसों ।।१।।...
प्रवीण पाण्डेय
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सिमटी यादें
सपने हों गर आँखों में तो आंसू भी होते हैं
अपने ही हैं जो दिल में ज़ख्मों को बोते है
मन के आँगन में बच्चों का बचपन हँसता है
सूने नयनों से लेकिन बस पानी रिसता है...
संगीता स्वरुप
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असहमति प्रकटीकरण
व स्वीकरण एवं मधुमयता –
मधुला विद्या ---
प्रकृति हमें जीवन देती है परन्तु स्वयं प्रकृति शक्तियां अपनी लय में सतत: स्व-नियमानुसार गतिशील रहती हैं, जीवन के अस्तित्व की चिंता किये बिना। प्रकृति आपदाएं प्राणियों को प्रभावित करती हैं| प्राणी जीना चाहते हैं जिजीवीषा भी प्रकृति की ही देन हैं। अतः वे अपने अस्तित्व के लिए प्रयत्न करते हैं, प्रकृति को संतुलित या नियमित करने हेतु । मनुष्येतर प्राणी प्रायः विचारवान नहीं होते अतः स्वयं को प्रकृति के अनुरूप ढालकर उसके अनुसार जीवन जीते हैं| मनुष्य विचारशील है अतः वह कभी स्वयं को प्रकृति के अनुरूप ढालकर कभी प्रकृति को स्वयं के अनुसार नियमित करने का उपक्रम करता है | यही संसार है, जगत है जीवन है | तब प्रश्न उठता है मनुष्य के विचार स्वातंत्रय एवं तदनुसार कर्म स्वातंत्रय का ...
डा श्याम गुप्त ...
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लव ब्लॉसम्स हेयर जानां ...
प्यार महकता है
मोहब्बत की सौंधी सौंधी महक
इश्क की खुशबू
कुछ भी कहूँ बात तो एक ही है
बस जरूरत है तो इतनी सी
वो तुम तक पहुँचे
वो ' तुम ' कोई भी हो सकते हो...
vandana gupta
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चलो तुम ही मन्नत की दुआ मांगो..
तुम ने मन्नत मांगी है
दूर जाने की मुझ से,
भूल जाने की मुझे।
एक मन्नत मेरी भी है
याद में , दिल में सदा
पास रखने की तुमको...
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