मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बस इतना उपहार चाहिए।
ममता का आधार चाहिए।।
माना यौवन-रूप नहीं अब,
पहले जैसी धूप नहीं अब,
हमको थोड़ा प्यार चाहिए।
ममता का आधार चाहिए...
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'' दर्द '' नामक मुक्तक ,
कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह -
'' चाँद झील में '' से लिया गया है -
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कंप्यूटर पर डिलीट हुई फाइलों को
रिकवर (पुनः प्राप्त) करने के लिए सॉफ्टवेयर
हिंदी इंटरनेट पर Kheteshwar Boravat
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सुनहरे पल
चाहतें चाहते हमारी चाहतें
कुछ पूरी कुछ अधूरी
गुज़र जाती पल पल ज़िंदगी
लेकिन ज़िंदा रहती हमारी चाहतें...
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हमारी डर के मारे घिग्गी बंध गई थी। दो दिल पहले कबाड़ी के घर से कुर्सी लाये थे वहीं टार्च दिखी तो ले आये। अपनी कारस्तानी दिखाई ठीक करके सैल डलवा लिये थे। अब बिजली का तो भरोसा है नहीं ,मालुम पड़े एक कदम ठीक उठाया, दूसरे में छपाक से नाले में जा गिरे। जिन्न को देख हम खुशी से पागल हो गये ।...
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प्रतीक्षा... !!
देहरी पर एक दीप जलाया...
मन के कोने में लौ जगमगाई...
ऐसा भी होता है हो भी
और न भी हो तन्हाई...
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ईश्वर एक रूप अनेक।
उनमे माता है एक।
उसकी ममता मे ही मिलता है...
उनमे माता है एक।
उसकी ममता मे ही मिलता है...
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बरस रही हैं आँखें आज
क्या सावन क्या भादो आज।
टूट रहा यादों का सैलाब
कसमें और वादों का मेहराब
छूटे सो ,जुड़ कर भी जुड़े नहीं
इस शाम का हुआ सवेरा नहीं
दिल से पर Kavita Vikas
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भीड़ को पढा़ते पढ़ाते अब वो भीड़ बनाना अच्छा सीख गया है भीड़ कभी भी उसका पेशा नहीं रही पहले भीड़ से निपटने में अचानक उसे लगा भीड़ बहुत काम की चीज हो सकती है ...
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