मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
गीत
"माणिक-कंचन देखे हैं"
आपाधापी की दुनिया में,
ऐसे मीत-स्वजन देखे हैं।
बुरे वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई सुमन देखे हैं...
--
--
कुर्सी छिनजाने की खिसियाहट
विविध रूपों में फूट रही है ,
इनकी आँख में कंकरी नहीं
मोदी कंकरी की तरह गिरा हुआ है
Virendra Kumar Sharma
--
न्याय बिकता है ,
बोलो खरीदोगे ?
आज हाईकोर्ट से सलमान खान के बरी होने पर कुछ फेसबुकिया नोट्स मेरे मित्र बालेश्वर एक गाना गाते थे , ' बेंचे वाला चाही , इहां सब कुछ बिकाला ! ' देखिए उन का गाया एक और गाना याद आ गया है ,' नाचे न नचावे केहू , पैसा नचावेला ! ' प्रिंट मिडिया के लिए एक पिद्दी सी मजीठिया आयोग की सिफ़ारिश लागू कराने में देश की सर्वोच्च अदालत को पेचिश आ जाती है । खांसी-जुकाम हो जाता है...
--
--
राधिका काकी
राधिका काकी नहीं रही। ये भी कोई जाने की उम्र होती है क्या? बमुश्किल अभी पैंतालीस-छियालीस साल ही तो उम्र रही होगी और इतने कम उम्र में ही दुनिया को अलविदा कहना कुछ हज़म नहीं हुआ...
--
--
देश सम्मान वापसी और बिहार में
वोट वापसी का यूटर्न अभियान
( व्यंग्य) जमाना सोशल मीडिया का है। यहाँ लंपट, लफाड़, लफुए ऐसे मटरगस्ती करते है जैसे वे अपने भैया के ससुराल में हों और बाकि सब उनके भैया जी की साली या फिर अपने सबसे लंपट फ्रेंड की बारात में आये हों और उनके पास लंपटाई का राष्ट्रीय लायसेंस मिला हुआ हो। यूँ तो ऊपर ऊपर यही लगता है की सब कुछ अपने आप हो रहा है पर सच यह नहीं है। लंपट आर्मी को संचालित करने का रिमोट किसी न किसी के हाथ में है। इन लंपट आर्मी के हाथ में पाँच इंच का टैंक थमा दिया गया है जो उँगलियों के इशारे पे संचालित है और तो और...
--
--
दूसरी चादर
कचरे का जलता ढेर देख
मन ही मन वह मुस्काया
क्यूं न हाथ सेके जाएं
सर्दी से मुक्ति पाएं
अपनी फटी चादर ओढ़
वहीं अपना डेरा जमाया
हाथों को बाहर निकाला
गर्मी का अहसास जगा...
--
--
--
--
--
"बेकार तो बेकार होता है"
किसी के पास होती है
कार कोई बिना कार के होता है
किसी का आकार होता है
कोई कोई निराकार होता है
और एक ऎसा होता है
जो होता तो है
पर बेकार होता है....
कार कोई बिना कार के होता है
किसी का आकार होता है
कोई कोई निराकार होता है
और एक ऎसा होता है
जो होता तो है
पर बेकार होता है....
--
कल्पने तू पंख पसार
साथ तेरे हम भी विचरें
ख्वाबों में इक बार,
कल्पने तू पंख पसार.......
नील गगन में पिता मिलेंगे
भाई से हम बातें करेंगे
नैन हमारे छलक परेंगे
खुशियों से बेजार ,
कल्पने तू...
--
--
--
जैसी संगत वैसी ही रंगत
कुंति गांधारी और द्रौण
ये सभी जीवन भर करते हैं प्रयास
अपने बालकों के
उच्च चरित्र निर्माण करने का...
एक अध्यापक से पढ़े हुए
या कभी कभी तो
एक मां के दो पुत्र ही
एक राम एक रावण बन जाता है...
--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।