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रविवार, दिसंबर 13, 2015

"कितना तपाया है जिन्दगी ने" (चर्चा अंक-2189)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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पौराणिक कथाओं के पात्र 

पौराणिक कथाओं को पढ़ते 
या सुनते समय अक्सर यह प्रश्न उठता रहा है कि 
क्या पुराण कथाओं के पात्र पशु-पक्षी थे?... 
देहात पर राजीव कुमार झा 
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वो लह्मा 

वो लह्मा मेरा ना था 
नाता मेरा तुझसे कोई ना था 
पर रुखसत जो तू हुईं 
मोहल्ला वो अब गँवारा ना था ... 
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL  
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स्वरचित अन्तरा 

फिल्म - बैराग 

दौलत का ऐसा नशा, सिर पे चढ़ के बोलता 
जिसपे भी चढ़ जाये, पागल बन के डोलता 
कोई झूठ नहीं कहता हूँ मैं,सचमुच ही कहता हूँ मैं 
दौलत की शान ऐसी,परसा से बदले परसी 
परसी से परशुराम बदल जाते हैं  ... 
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मेरा शहर 

आजकल मेरा शहर चर्चा में है. 
हो रहे हैं रोज़ बलात्कार, 
बढ़ती जा रही है 
नाबालिगों की तादाद अपराधियों में, 
भरी बसों में भी है ख़तरा, 
अपने घर भी नहीं कोई महफ़ूज़... 
कविताएँ पर Onkar  
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समीक्षा –  

अनुभूतियाँ गीत संग्रह....  

डा श्याम गुप्त  

कृति—अनुभूतियाँ- गीत संग्रह ..  
रचनाकार –डा ब्रजेश कुमार मिश्र .. 
प्रकाशन-- नीहारिकांजलि प्रकाशन, कानपुर ... 
प्रकाशन वर्ष –२०१५ ई..... 
मूल्य ..२५०/-रु... 
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कहाँ तलाशूँ..... 

सोच रहा हूँ कहाँ तलाशूँ 
गुमशुदा न्याय को 
जो गुलाम हो चला है 
अमीरों की जेबों का ..... 
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash 
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दिसंबर की धूप 

दिसंबर की ठंढ समा जाती है 
नसों के भीतर... 
और बहती है लहू के साथ साथ...... 
पूरे शरीर को भर लेती है  
अपने आगोश में .....  
जम जाते हैं वक्त के साये भी... 
Neeraj Kumar Neer  
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माता सुनी कुमाता  

पूत कपूत सुने है 
पर न माता सुनी कुमाता अगर 
ये कहावत पशु-पक्षियों के लिये 
कही गयी होती तो सत्य मान लेता... 
क्योंकि मैंने एक जानवर को 
उसके अपने बच्चे से 
बिछड़ने पर रोते देखा है... 
न देखा है कभी किसी पक्षी को 
त्यागते हुए अपने बच्चों को 
संवेदनशील है वो मानवों से अधिक...  
मन का मंथन  पर kuldeep thakur 
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ये लम्हा वक़्त की शाख़ से टूट रहा है... !! 

वो कोई ठोस आकार नहीं था... 
जिसे छूकर महसूस किया जा सके... 
वो थी बस एक याद ही... 
जो मुस्कुरा रही थी अरसे बाद भी... 
ये लम्हा वक़्त की शाख़ से टूट रहा है... 
हर क्षण अपना ही एक अंश हमसे छूट रहा है...  
अनुशील पर अनुपमा पाठक 
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गीत "मैंने प्यार किया था" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 


जीवन के इस दाँव-पेंच में,
मैंने सब कुछ हार दिया था।
छला प्यार में जिसने मुझको,
उससे मैंने प्यार किया था।।

जब राहों पर कदम बढ़ाया,
काँटों ने उलझाया मुझको।
जब गुलशन के पास गया तो,
फूलों ने ठुकराया मुझको।
जिसको दिल की दौलत सौंपी,
उसने ही प्रतिकार लिया था... 

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