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सोमवार, दिसंबर 14, 2015

कविता क्या है--चर्चा अंक 2190

जय मां हाटेश्वरी...
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कविता क्या है
खेती है,
कवि के बेटा-बेटी है,
बाप का सूद है, मां की रोटी है। 
--
तुम मुझसे
हाले-दिल न पूछो ऐ दोस्त!
तुम मुझसे सीधे-सीधे तबियत की बात कहो।
और तबियत तो इस समय ये कह रही है कि
मौत के मुंह में लाठी ढकेल दूं,
या चींटी के मुह में आंटा गेर दूं।
और आप- आपका मुंह,
क्या चाहता है आली जनाब!
जाहिर है कि आप भूखे नहीं हैं,
आपको लाठी ही चाहिए,
तो क्या
आप मेरी कविता को सोंटा समझते है?
मेरी कविता वस्तुतः
लाठी ही है,
इसे लो और भांजो!
मगर ठहरो!
ये वो लाठी नहीं है जो
हर तरफ भंज जाती है,
ये सिर्फ उस तरफ भंजती है
जिधर मैं इसे प्रेरित करता हूं।
मसलन तुम इसे बड़ों के खिलाफ भांजोगे,
भंज जाएगी।
छोटों के खिलाफ भांजोगे,
न,
नहीं भंजेगी।
तुम इसे भगवान के खिलाफ भांजोगे,
भंज जाएगी।
लेकिन तुम इसे इंसान के खिलाफ भांजोगे,
न,
नहीं भंजेगी। 
कविता और लाठी में यही अंतर है। --- 
रमाशंकर यादव 'विद्रोही' 
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बालगीत "दिन में छाया अँधियारा
उच्चारण पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक  

15012010052 (1)2
आलू और शकरकन्दी भी,
सबके मन को भाते हैं।
गर्म-गर्म गाजर का हलवा,
खुश होकर सब खाते हैं।
कम्बल-लोई और कोट से,
कोमल बदन छिपाया है।
हाय भयानक इस सर्दी ने,
सबका हाड़ कँपाया है।।
--
चार उचक्के चालीस चोर ,अम्मा इनकी सीना ज़ोर
ram ram bhai
परVirendra Kumar Sharma
लोमड़िया को माँ कहते वो कहने दो ,
झूठ नहीं वो कहते उनको कहने दो।
 धन के  हाथों गिरवीं हैं अपने सब क़ानून ,
निर्बल को  कांटे मिलें ,सबल कू मिलें प्रसून।
Nail Art
आपकी सहेली
परJyoti Dehliwal
Nel Art
--
असलियत भूल गए
Akanksha पर 

Asha Saxena
आसमाँ छूने को चले
कुछ पल भी न गुजर पाए
खुद पर गुरूर आये
उड़ान भूल कर अपनी
जमीं पर मुंह के बल गिरे
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KMSRAJ51-Always Positive Thinker पर 
Kmsraj51 
इसलिये हम आजकल सब।
हर रिश्ते से दूर-दूर रहते है।
मिलती है शान्ति सब को।
अकेले ही ना कोई दुख और ना कोई गम।
तनहाई है मगर सुकून तो बहुत है।
कभी-कभी जीवन में अकेले ही अच्छा लगता है।
ना किसी से झगड़ा ना किसी से भी लड़ाई।
जो मन को अच्छा लगे वही करों॥
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जिज्ञासा 
परpramod joshi
निजी विधेयक सामाजिक आकांक्षाओं को व्यक्त करते हैं और सरकार का ध्यान किसी ख़ास पहलू की ओर खींचते हैं.
जागरूकता के प्रतीक रहे भारतीय संसद के पहले 18 साल में 14 क़ानूनों का निजी विधेयकों की मदद से बनना और उसके बाद 45 साल तक किसी क़ानून का नहीं बनना किस बात
की ओर इशारा करता है? क़ानून बनाने की ज़िम्मेदारी धीरे-धीरे सरकार के पास चली गई है.
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कलम से..
अहसास उमड़े इसतरह संसद में जैसे कांग्रेस ,,
लोकतंत्र पर हो चली तानाशाही राजसी
सभी के स्वार्थ जानकर खोमोशियाँ कुछ बढ़ गई
सोचते क्या ठहरकर गुफ्तगू किससे करें
उठ चली फिर नजर आसमां के दुसरे छोर
इक सितारा तन्हा सा तकता मिला धरती की ओर
बंधा सा मन देखता था ...
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मेरे गीत ! 
Satish Saxena
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 चारण,भांड हमेशा रचते
रहे , गीत  रजवाड़ों के  !
वफादार लेखनी रही थी
राजों और सुल्तानों की !
रहे मसखरे, जीवन भर ही, खूब सुनाये  स्तुति गीत !
खूब पुरस्कृत दरबारों में फिर भी नज़र झुकाएं गीत !
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मेरे अनुभव (Mere Anubhav
Pallavi saxena 
s400/20151107_150553
ऐसा लगता है कि बी.जे.पी की सरकार के राज्य में और चाहे कुछ अच्छा हुआ हो या न हुआ हो। मगर (मध्य प्रदेश) की सड़कों और शहरों का पहले से अधिक विकास ज़रूर हुआ
है। इसमें कोई दो राय नहीं है। एक समय था जब महाराष्ट्र की सड़कों के विषय में भी ऐसा ही कुछ कहा जाता था।
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सादर ब्लॉगस्ते 
SUMIT PRATAP SINGH 
s1600/Sahishnuta%2Bki%2Bkhoj
"भाई तूने ऐसा क्यों बोला?"
"भाई सहिष्णुता तो हमारे दिलों में भरी हुई है।"
"ये तू कैसे कह सकता है?"
"अपने गाँव में रशीद चाचा रहते हैं।"
"हाँ तो।"
"तो जब उनकी बेटी रेहाना की शादी हुई थी, तब तूने उनकी तन, मन और धन से कितनी सेवा की थी। मुझे याद है कि तू उस दिन इतना व्यस्त हो गया था कि खाना खाना भी भूल
गया था। सही कहूँ तो तू इतना मगन हो रखा था, जैसे कि तेरी सगी बहन की शादी हो।"
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मेरे मन की 
अर्चना चावजी Archana Chaoji
झंकॄत हो मन .गया थिरक-थिरक
सिहरन हुई और देह भी डोल गई...
साँसों की सरगम पे ताल मिली जब
मधुयामिनी मन में मधुरस घोल गई.. 

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