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रविवार, दिसंबर 06, 2015

"रही अधूरी कविता मेरी" (चर्चा अंक-2182)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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पत्थर नहीं समझ पाते जज़्बातों को.. 

...समझने वाले समझते हैं 
बिन कहे ही बातों को 
पिघल करके भी 
पत्थर नहीं समझ पाते 
जज़्बातों को।
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash 
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मैं करुँगी इंतज़ार~!!! 

इस जहां के उस द्वार के पार 
मैं करुँगी तुम्हारा इंतज़ार 
तुम आओ तो संग अपने 
मेरी मुस्कुराहट लेते आना 
स्नेह भरे हाथों से अपने 
मेरी लबों पर सज़ा देना... 
♥कुछ शब्‍द♥ पर Nibha choudhary 
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बचपन कान्हां का 

बचपन कान्हा का के लिए चित्र परिणाम
बाल सुलभ चापल्य तेरा
ऐसा मन में समाता
बालक के निश्छल मन का
हर पल अहसास दिलाता
कान्हां तू कितना चंचल
एक जगह रुक न पाता
सारे धर में धूम मचाता
मन चाहा  करवाता... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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अद्भुत हिलोर - - 

अग्निशिखा : पर Shantanu Sanyal 
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थका थका सा दिन 

थका थका सा दिन है बीता दौड़ -भाग में 
बनी रसोई थकन रात सिरहाने लेटी 
नींद नहीं आँखों में सोई 
रोज पकाऊ दिनचर्या की 
घिसी पिटी सी परिपाटी ... 
sapne(सपने) पर shashi purwar 
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तनहा सफ़र जिंदगी का 

*तनहा कट गया जिंदगी का सफ़र कई साल का* 
*चंद अल्फाज कह भी डालिए मेरे हाल पर* 
यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा 
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महफ़िलों में सवर गईं जुल्फ़ें 

सलाम ए इश्क दे गयीं जुल्फे । 
महफ़िलों में सवर गयीं जुल्फे ।। 
बड़ी सहमी हुई अदाओं में । 
तिश्नगी फिर बढ़ा गयीं जुल्फें... 
Naveen Mani Tripathi 
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रही अधूरी कविता मेरी 

खो गये शब्द कहीं र
ही अधूरी कविता मेरी 
सहिष्णु बन पीड़ा झेल रही नारी 
अभी ज़िंदगी के आईने में 
दिख रही छटपटाहट उसकी... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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मुखिया बना दिया दुखिया - 

कविता - 

मेरा जिगर नहीं सुलगता है अब 
चाहे सुलगाऊं बीड़ी या सिगरेट 
जिगर मेंं नहीं होता है दर्प 
ऐसा मर्द हो गया हूं मैं। 
दर्पीला मर्द एक दिन मर जाएगा 
मगर मालूम नहीं चलेगा पता किसी को 
इस मर्द के जिगर में दर्प लबालब भरा था... 

अविनाश वाचस्‍पति 

नुक्‍कड़ 
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एक दिन छूट जाना है खुद से ही... !! 

छूटते हुए दृश्यों की तरह...  
एक दिन छूट जाना है खुद से ही...  
इतनी छोटी सी है ये ज़िन्दगी  
और अनंत हैं राहें...  
जहाँ से गुज़र रहे हैं  
फिर शायद ही कभी गुजरें...  
अनुशील पर अनुपमा पाठक 

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