मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पड़ने वाले नये साल के हैं कदम!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!!
कोई खुशहाल है. कोई बेहाल है,
अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है,
ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!!
कोई खुशहाल है. कोई बेहाल है,
अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है,
ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!
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लम्बी सड़क सा जीवन
प्रातः काल सुनहरी धुप
लम्बी सड़क दूर तक दे रही कुछ सीख
तनिक सोच कर देखो |
आच्छादित वह दीखती
हरेभरे कतारबद्ध वृक्षों से
बनती मिटती छायाओं से
उनके अद्भुद आकारों से...
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सितारे रात तन्हाई तुम्हीं को गुनगुनाते हैं
सितारे रात तन्हाई तुम्हीं को गुनगुनाते हैं
अभी तक याद के जुगनू ज़हन में झिलमिलाते हैं
नज़र के सामने गुज़रा हुआ जब दौर आता है
कई झरने निग़ाहों में हमारे फूट जाते हैं ...
Lekhika 'Pari M Shlok'
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तूफ़ाँ से भी डरना क्या आएँगे व जाएँगे
ग़म थोड़े बहुत यूँ तो तुमको भी सताएँगे
पर हुस्न का जल्वा है सब हार के जाएँगे
कोई भी नहीं अपना पर फ़िक़्र नहीं कुछ भी
करना है जो हमको वह हम करके दिखाएँगे...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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क़ानून
मैं नहीं मानता कि क़ानून अँधा होता है.
क़ानून बनानेवाले जानते हैं कि
किसके लिए कैसा क़ानून बनाना है,
लागू करनेवाले जानते हैं कि
किसके मामले में कैसे लागू करना है,
व्याख्या करनेवाले जानते हैं कि
किस व्यक्ति के लिए
क़ानून का क्या अर्थ होता है...
कविताएँ पर Onkar
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ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...
हर राज सब को बताए नहीं जाते,
हर जख्म भी दिखाए नहीं जाते,
यकीं करो या न करो,
ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...
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"करणी का फल "
... अरे! आप बैठी -बैठी क्या सोच रही है मुझे महिला
एवं बाल कल्याण दफ्तर में मीटिंग के लिए जाना है,,
जल्दी से किचन में आईये और काम में हाथ बटाईए ,
बहू की रौबदार आवाज से नैना देवी की तन्द्रा भंग हुई।
Shanti Purohit
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सांता क्लॉस नहीं पहुंचे
सांता क्लॉस नहीं पहुंचे
आसमान के नीचे रह रहे
ठिठुरते बच्चो के बीच
जिन्हे मालूम नहीं क्या होते हैं सपने
क्या माँगना होता है सपने में...
सरोकार पर Arun Roy
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तुम्हारे ख़त
क्या-क्या न बयां कर जाते हैं तुम्हारे ख़त
कभी हँसा कभी रुला जाते हैं तुम्हारे ख़त...
यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा
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(बाईसवीं कड़ी) ग्यारहवां अध्याय (११.१-११.४) (with English connotation)अष्टावक्र कहते हैं :Ashtavakra says :
भाव और अभाव विकार हैं, ये सब हैं स्वाभाविक होते|निर्विकार आत्म जो जाने, वे सुख, शांति प्राप्त हैं होते||
भाव और अभाव विकार हैं, ये सब हैं स्वाभाविक होते|निर्विकार आत्म जो जाने, वे सुख, शांति प्राप्त हैं होते||
उर्दू शायरी में माहिया निगारी
प्रिय मित्रो ! पिछले कुछ दिनों से इसी मंच पर क़िस्तवार :"माहिया" लगा रहा था जिसे पाठकों ने काफ़ी पसन्द किया और सराहा भी। कुछ पाठको ने "माहिया" विधा के बारे में जानना चाहा कि माहिया क्या है ,इसके विधान /अरूज़ी निज़ाम क्या है ? अत: इसी को ध्यान में रखते हुए यह आलेख : "उर्दू शायरी में माहिया निगारी" लगा रहा हूँ -....
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हर दफ़ा
हर दफ़ा भूल जाते हो तुम अपनी कही हर बात
मैं सोच कर इसे पहली दफ़ा हर बार भूल जाती हूँ !!
मैं सोच कर इसे पहली दफ़ा हर बार भूल जाती हूँ !!
सु-मन (Suman Kapoor)
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दिसम्बर, स्टॉकहोम
और खिड़की से झांकता मन... !!
इस शहर में ठहरा हुआ दिसम्बर है...
उजाले नदारद हैं इन दिनों...
धूप का चेहरा कई दिनों से
नहीं देखा है उदास तरुवरों ने...
और न ही बर्फ़ की उजली बारिश है इस बार
कि ढँक ले अँधेरे को...
अनुशील पर अनुपमा पाठक
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