मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हो क्यूं हो उदास
सांता क्यूं हो उदास आज
कुछ थके थके से हो है
यह प्रभाव मौसम का
या बढ़ती हुई उम्र का
अरे तुम्हारा थैला भी
पहले से छोटा है
मंहगाई के आलम में
क्या उपहारों का टोटा है...
Akanksha पर Asha Saxena
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तुम्हारी मुहब्बत का जहांपनाह होना चाहता हूं
मजनू नहीं , रांझा नहीं , शाहजहां होना चाहता हूं
तुम्हारी मुहब्बत का जहांपनाह होना चाहता हूं
पहाड़ों में बर्फ़ गिरती है , मचलते रोज हैं बादल
तुम्हारे प्यार के जंगल में गजराज होना चाहता हूं...
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बेखुदी के शहर में
इश्क का लबालब भरा प्याला था
जब उमंगों की पायल
अक्सर छनछनाया करती थी
छल्का करता था गागर से
इश्क का मौसम बेपरवाह सा...
vandana gupta
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इक किताब बन जाऊँ...
क्यूँ ना मैं... इक किताब बन जाऊं,
तुम अपने हाथों में थामो मुझे,
अपनी उंगलियों से...
मेरे शब्दों को छू कर,
मुझे अपने जहन में....
शामिल कर लो...
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Junbishen 728
हिंदुत्व सदियों से गढ़ते गढ़ते, गढ़ाया है
ये हिदुत्व, पलकों को मूंदते नहीं, आया है
ये हिंदुत्व। तबलीग़, जोर व् ज़ुल्म, जिहादों से दूर है,
सद भावी आचरण से, नहाया है...
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जो हम तुमसे मिल पाते
जो हम तुमसे मिल पाते,
तेरी राम कहानी सुनते-
कुछ हम अपनी व्यथा सुनाते...
जो हम... .।
मत पूछो कैसे बीते दिन,
नहीँ चैन था मन में पल छिन।
आशाओं के दीप जलाकर,
रैन बिताती मैं तारे गिन।
मधुर मिलन के बीते पल,
यादों में आकर मुझे जलाते.....
जो हम...
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
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एक और दामिनी
एक लड़की मैंने देखी है
जो दुनिया से अनदेखी है
दुनिया उससे अनजानी है
मेरी जानी-पहचानी है।
रहती है एक स्टेशन पर
कुछ फटे-पुराने कपड़ों में
कहते हैं सब वो ज़िंदा है
बिखरे-बिखरे से टुकड़ों में...
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क्यों दर्द हमें बेजार मिला
तू कहाँ चला तू कहाँ चला
क्यों सबसे यूँ मुख मोड़ चला
क्या खता हुई ये बता जरा
क्यों जग से नाता तोड़ चला
तू कहाँ चला ...
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उसके परे संसार जाने क्या है... !!
इंतज़ार...
जिन पलों में जीया जा रहा है तुम्हें...
उसके परे संसार जाने क्या है...
ज़िन्दगी,
कौन जाने कब तेरे निशाने क्या है...
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अहसास न होते तो, सोचा है कि क्या होता
ये अश्क़ नहीं होते, कुछ भी न मज़ा होता
तक़रार भला क्यूँकर, सब लोग यहाँ अपने
साजिश में जो फँस जाते, अंजाम बुरा होता...
शीराज़ा [Shiraza] पर हिमकर श्याम
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ग़ज़ल
"बैठकर के धूप में सुस्ताइए"
आ गई हैं सर्दियाँ मस्ताइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
पर्वतों पर नगमगी चादर बिछी.
बर्फबारी देखने को जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रोज दादा जी जलाते हैं अलाव,
गर्म पानी से हमेशा न्हाइए...
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