रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
छिपा क्षितिज में सूरज राजा,
ओढ़ कुहासे की चादर।
सरदी से जग ठिठुर रहा है,
बदन काँपता थर-थर-थर।।
|
ज्योति-कलश
|
Dr (Miss) Sharad Singh
|
अनुपमा पाठक
|
Naveen Mani Tripathi
|
Priti Surana
|
Neeraj Kumar Neer
|
Krishna Kumar Yadav a
|
anjana dayal
|
haresh Kumar
|
Meraj Ahmad
|
प्रवीण पाण्डेय
|
खाता-पीता घर मिले, यही बाप की चाह |
सुखी रहे बिटिया सदा, पाये प्रेम अथाह |
पाये प्रेम अथाह, हमेशा होय बरक्कत |
करवा देते व्याह, किन्तु दूल्हे की आदत |
रविकर ले सिर पीट, नहीं कोई दिन रीता |
मुर्गा मछली मीट, और वह खाता-पीता ||
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।