आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है।
स्वामी विवेकानन्द शिकागो सम्मलेन में अपना भाषण पूरा करने के बाद जब मंच से नीचे उतरे तो तभी एक सुन्दर युवती सभा से उठकर उनके पास आयी, वह स्वामी जी से मिलने को बेचैन थी| वह युवती कहती है-
“ स्वामी जी, आपके विचारों ने मुझे बहुत ज्यादा प्रभावित किया है और मेरे अन्तर्मन को झिंझोड़कर रख दिया है| मेरे दिल में आपके प्रति आदर और सम्मान का भाव जाग्रत हो गया है और मुझे आपसे मन ही मन प्रेम हो गया है| मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ कि आप मुझसे विवाह कर लें|”
स्वामी जी के मुखमंडल पर तेज चमक रहा था, स्वामी जी ने पूछा-
“ आप मुझसे विवाह क्यों करना चाहती हैं?
इस पर युवती ने तपाक से उत्तर दिया-
“ताकि मैं आप जैसी तेजस्वी संतान की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त कर सकूँ|”
स्वामी जी उस युवती के पास गए और उसके चरण स्पर्श करके बोले-
“ लीजिये, आज से आप मेरी माता हो गई और मैं आपका पुत्र| अपने इस पुत्र को आशीर्वाद दीजिये कि वह जीवन भर समाज की सेवा करता रहे|”
यह सुनकर युवती निरुत्तर हो गई और स्वामी विवेकानन्द जी के प्रति उसकी श्रद्धा और भी बढ़ गई|
प्रिय दोस्तों, इस प्रेरक प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि स्वामी विवेकानन्द जी की तरह हमारा चरित्र भी ऊँचा हो, और हमें अपने चरित्र को उठाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए| जिस समाज में अच्छे चरित्रवान लोग रहते हैं वो देश और समाज हमेशा उन्नति करता है|
अब चलते हैं आज की चर्चा की ओर
==============================
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चमकेगा अब गगन-भाल।
आने वाला है नया साल।।
आशाएँ सरसती हैं मन में,
खुशियाँ बरसेंगी आँगन में,
सुधरेंगें बिगड़े हुए हाल।
आने वाला है नया साल।।
वन्दना सिंह
ना ठोकर ही नयी है, ना जख्म पुराने हैं
हर हाल में जिंदगी तेरे नाज़ उठाने हैं
सिमटने तो लगें हैं पँख हमारी अना के
आसमां से अपने भी मगर बैर पुराने हैं
रशिम रविजा
साधना जी एक संवेदनशील कवियत्री हैं और सामयिक विषयों पर भी उनकी कलम खूब चलती है. बहुत ही गहराई से हर विषय का विश्लेष्ण करती हैं.
==============================
प्रवीण चोपडा
आज सुबह एक सपने ने मुझे ५.३० बजे जगा दिया..सुनना चाहेंगे?
मैं किसी बैंक की कतार में खड़ा हूं...है तो बैंक, लेकिन कतार बाहर ओपन में लगी हुई है...
पता नहीं कैसा बैंक था यह...
पता नहीं कैसा बैंक था यह...
==============================
महेश बारमाटे माही
पाँच पांडवों के बीच फँसी
द्रौपदी सी हो गयी है ज़िन्दगी।
किसका कब साथ निभाऊं
कुछ समझ में नहीं आता।
जहाँ देखूँ
वहीँ पे मेरा अपना खड़ा होता है,
==============================
राजीव कुमार झा
==============================
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
संसद ठप्प करने का काम,
कैसा आसन ,कैसा प्रधान ,
जिन्होनें हमको चुनकर भेजा ,
दिया यही पैगाम ,
==============================
वृजेश नीरज
थोड़ा बरस के थम गए वो बादल कहाँ के थे
आँखों में नमी शेष है आँसू यहाँ पे थे
इस माहौल को देखते सोचता हूँ एक बात
आदम यहां हैं तो अहरमन कहां पे थे
==============================
रश्मि प्रभा
मेरी ख़ामोशी
इधर-उधर घूमती पुतलियाँ
ढूँढती हैं शब्दकोश
ताकि कह सकें
कि कैसा लगता है
जब तपते माथे पर
हर्ष महाजन
वक़्त के थपेड़ों ने उसे इस कदर बुझाना चाहा,
हुस्न तबाह कर उसे तवायफों में बिठाना चाहा |
न मिली सुराग-ए-मंजिल न ही उसे राहत कोई,
कैसा ज़लज़ला था जो इस कदर मिटाना चाहा |
==============================
किरण आर्या
जब तक अपने धोती में आग नहीं लगती तब तक इंसान रूपी जीव की आत्मा सुप्त रहती है, मूकदर्शक तमाशबीन सी हाँ दूजे की आग हाथ तापने के लिए एकदम उत्तम बोले तो सेहत के लिए मन के लिए स्वास्थ्यवर्धक सी......उदासीन आपाधापी सी जिन्दगी में कुछ तो रंगबाजी चाहिए न ......बोले तो थोडा सा मसाला वर्ना जिन्दगी बेस्वाद सी है
==============================
रामजय शर्मा
कलम चली
बह चलें शब्द
रोकूं कैसे
दिल की बातें
कब सुनता कोई
कड़ुवा सच
==============================
मनोज कुमार
बढ़ते हुए वायु प्रदुषण ने आज मनुष्य को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि मनुष्य को जीने के लिए सांस लेने के लिए भी अब स्वच्छ हवा की बोतलों को ...
साधना वैध
दामिनी ( निर्भया ) के साथ घटी दुर्दांत घटना को बीते हुए तीन साल हो गये हैं लेकिन क्या हम ज़रा सा भी चेते हैं ? क्या समाज में इस तरह की घिनौनी घटनाओं की आवृत्ति में कुछ कमी आई है ? क्या ऐसी घटिया मानसिकता वाले लोगों के मन में कुछ शर्मिंदगी भय और पश्चाताप का लेश भर भी अंश बढ़ा है ?
==============================
परमेन्द्र प्रताप सिंह
हाथ ज्यादा फटते हों तो थोड़ा-सा जामुन का सिरका रात को सोते समय हाथों पर लगाएं। सुबह हाथों को ताजे पानी से धो लें। यह उपाय प्रतिदिन करने से सप्ताह भर में ही आपके हाथ नाजुक-कोमल हो जायेंगे।
==============================
धन्यवाद,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।