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शनिवार, अक्तूबर 15, 2016

"उम्मीदों का संसार" {चर्चा अंक- 2496}

मित्रों 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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कविता 

"खिलती बगिया है प्रतिपल" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

गीत-ग़ज़ल, दोहा-चौपाई,
गूँथ-गूँथ कर हार सजाया।
नवयुग का व्यामोह छोड़कर ,
हमने छन्दों को अपनाया।

कल्पनाओं में डूबे जब भी,
सुख से नहीं सोए रातों को।
कम्प्यूटर पर अंकित करके,
कहा आपसे सब बातों को।।

जब मौसम ने ली अँगड़ाई,
हमने उसका गीत बनाया।
बासन्ती उपवन के हर
पत्ते-बूटे को मीत बनाया... 
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कहीं अपने ही शब्दों में न संशोधन करो तुम ... 

दबी है आत्मा उसका पुनः चेतन करो तुम 
नियम जो व्यर्थ हैं उनका भी मूल्यांकन करो तुम 
परेशानी में हैं जो जन सभी को साथ ले कर 
व्यवस्था में सभी आमूल परिवर्तन करो तुम... 
Digamber Naswa 
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क्षणिकाएँ 
yashoda Agrawal 
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ग़ज़ल --  

ये बात और है तेरा ख़याल आज भी है 

किसी की याद में जलता मसाल आज भी है । 
इन आँसुओं में सुलगता सवाल आज भी है... 
Naveen Mani Tripathi 
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नही मिलता यहाँ प्यार जिंदगी में.. 

उस दिन शाम को कॉफ़ी पीते-पीते, 
तुम वही घिसा-पीटा डायलॉग बोल कर चले गये, 
कि हर किसी को नही मिलता 
यहाँ प्यार जिंदगी में... 
'आहुति' पर Sushma Verma 
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राम जाने 

(कविता) 

*एक विश्वविद्यालय में * 
रावण के वंशजों ने राम के वंशज का पुतला जलाया 
और जोर-जोर से हो-हल्ला मचाया 
देखो-देखो हमने रावण को जलाया 
ये देख रावण ने अपना सिर खुजाया 
और उनकी मूर्खता पर मंद-मंद मुस्कुराया 
फिर अपने वंशजों से हँसते हुए बोला 
बेटा राम से लिया था मैंने पंगा 
तो उन्होंने मुझको लगा दिया था ठिकाने 
अब तुमने उसके वंशज को छेड़ा है 
अब तुम्हारा क्या होगा ये तो राम ही जाने। 
SUMIT PRATAP SINGH 
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सपना के दोहे  
लो टूट प्रेम के गए, सुन्दर थे जो कांच। 
आज दिलों पर कर रही, नफरत नंगा नाच... 
नई क़लम - उभरते हस्ताक्षर 
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2 टिप्‍पणियां:

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