मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
"पर्व नया-नित आता है"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
क्रिसमस, ईद-दिवाली हो,
या छठपूजा, बोधित्सव हो,
महावीर स्वामी, गांधी के,
जन्मदिवस का उत्सव हो,
एक रहो और नेक रहो का
शुभसन्देश सुनाता है...
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खुशबू
जिंदगी की तलाश में वह बैठा रहता है
शहंशाही अंदाज़ लिए कूड़े के ढेर पर,
नाक पर रूमाल रखे आते-जाते लोगो को
निर्विकार भाव से देखते हुए गुनगुनाता है
‘कुण्डी मत खड़काना राजा’...
जज़्बात पर M VERMA
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दू रूपिया के चॉउर के गुन!
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चारीचुगली पर
jayant sahu_जयंत
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बस कवि बना दे
बापू मुझे बस कवि बना दे
तोड़ मोड़ जोडू क़ायदा सीखा दे...
कलम कवि की पर
Rajeev Sharma
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विषयाभाव!!
आज फिर लिखने के लिए एक विषय की तलाश थी और विषय था कि मिलता ही न था, तब विचार आया कि इसी तलाश पर कुछ लिखा जाये.
वैसे भी अगर आपको लिखने का शौक हो जाये तो दिमाग हर वक्त खोजता रहता है-कि अब किस विषय पर लिखा जाये? उठते-बैठेते, सोते जागते, खाते-पीते हर समय बस यही तलाश. इस तलाश में मन को को यह खास ख्याल रहता है कि एक ऐसा मौलिक विषय हाथ लग जाये कि पाठक पढ़कर वाह-वाह करने लगे. .. पाठक इतना लहालोट हो जाये कि बस साहित्य अकादमी अवार्ड की अजान लगा बैठे..और साहित्य अकादमी वाले उसकी कान फोडू अजान की गुहार सुनकर अवार्ड आपके नाम कर चैन से सो पायें.
यूँ तो जब भी कोई पाठक आपके लिखे से अभिभूत होकर या आपसे कोई कार्य सध जाने की गरज के चलते ये पूछता है कि- भाई साहब, आप ऐसे-ऐसे सटीक और गज़ब के ज्वलंत विषय कहाँ से लाते हैं? तो मन प्रफुल्लित हो कर मयूर सा नाचने लग जाता है. किन्तु मन मयूर का नृत्य पब्लिक के सामने दिखाना भी अपने आपको कम अंकवाने जैसा है. कौन भला अपनी पब्लिक स्टेटस गिरवाना चाहेगा...
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मेरी नायिका - 6
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कुछ दिनों पहले एक बच्ची " प्रीति " से मुलाक़ात हुई जो खूब बातें बनाती है, हँसती है, लड़ती है, मगर कमर के नीचे का हिस्सा शिथिल रहता है। उम्र १२ साल। बच्ची के पापा कहते है कि वह पैदा ही ऐसी हुई है। पापा सफाई कर्मचारी और माँ एक हॉस्पिटल में आया है। उस दिन उसको एक टेडी बियर और स्वीट्स दिया तो बहुत ही खुश हुई और अब मैंने उसको ड्राइंग शीट और कलर पेंसिल दिया ....
Nivedita Dinkar
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हे दिनकर हे माता षष्ठी
भोर की ये किरण सुनहरी
करते हैं आरोग्य प्रदान
प्राणतत्व में अपनी ऊष्मा से
भर देते मधुमय सी तान.
जग के नियंता पिता की भांति बरसाते ...
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याद शब् भर कई दफा आई
कोई खुशबू भरी हवा आई ।
याद शब् भर कई दफ़ा आई।।
दर्द दिल का नही मिटा पाया।
जब से हिस्से में बेवफा आई...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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हम लाएं है तूफ़ान से
कश्ती ( स्टेटस ) निकाल के ..
जुकरबर्गवा ऐसे स्टेटसो को
रखा करो संभाल के
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मेरे मन की पर
अर्चना चावजी Archana Chaoji
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टी. वी. के समाचार चैनलों से एक निर्धारित समय में सत्य का ज्ञान क्या, देश-विदेश के सभी प्रमुख समाचारों का ज्ञान भी नहीं होता। भले ही ये चैनल निष्पक्ष होने का कितना ही दावा करें लेकिन चैनल खुलने से पहले ही हमारे दिमाग में उसके पक्ष का भान रहता है। हमें पता रहता है कि यह दक्षिण पंथी है या वाम पंथी। यह सरकार के कार्यों का गुनगान करने वाला है या हर बात का मजाक उड़ाने वाला है। इन चैनलों के एंकर भी वाकपटु और गज़ब के अभिनेता होते हैं! ये अपने पक्ष के कुशल वैचारिक वकील होते हैं। किसी एक एंकर को आपने अलग-अलग विचारधारा वाली दोनो पार्टियों के समर्थन में खड़े नहीं देखा होगा...
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एक मुद्दत पहले गीली माटी में
घुटनों के बल बैठ कर
टूटी सीपियों और शंखों के बीच
अपनी तर्जनी के पोर से
मैनें तुम्हारा नाम लिखा था ।
यकबयक मन में एक दिन
अपनी नादानी देखने की हसरत सी जागी
तो पाया भूरी सूखी सैकत के बीच
ईंट-पत्थरों का जंगल खड़ा था
और जहाँ बैठ कर कभी मैने
तुम्हारा नाम लिखा था
मनमोहक सा बोन्साई का
एक पेड़ खड़ा था ।।
कविता मंच पर
Meena Bhardwaj
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सुन्दर सोमवारीय चर्चा ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
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