मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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लो जी बीमारी का जड़ से हुआ सफाया...
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मेरा नया उपन्यास...
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.... सुझावदाता ने तो शायद चुटकी ली होगी मगर हम न जाने किस गुमान में उसे अपना प्रशंसक माने गंभीरता से इस विषय पर पिछले तीन चार दिन से इसी विचार में डूबे में संजिदा से दिखने लगे और तरह तरह से सोचते हुए कि नये नोट, पुराने नोट, काला धन, चुनाव, तिजोरी, तहखाना, व्यापारिक मित्रता, काला धन, कुटिलता, टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार..आदि आदि किन किन विषयों से गुजरते हुए...आज इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि चलो, एक फड़कता हुआ शीर्षक तो मिल ही गया..अब कहानी बुनेंगे..
और शीर्षक जो दिमाग में आया है वो है..
’तहखाने वाली तिजोरी के नये मालिक’
-अब इसके आसपास कहानी बुनना है..आप भी सोचें.....
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"देश बुरे दौर से गुज़र रहा है" ....
Sindhu Khantwal
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कॉर्पोरेट सेक्टर से
काला धन बरामद कराएं
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Randhir Singh Suman
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जलने दो लोगों को-
दोस्तो एवस्की
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Pratibha Katiyar
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अकु श्रीवास्तव की कहानी
'रोज़ी-रोटी' |
Aaku Srivastava
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Shabdankan पर
Bharat Tiwari
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कार्टून :-
बैंकवाले मेरे जनधन खाते से पैसा खा गए
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समय की मांग
हमारे देश की अधिकतम आबादी वह है जो अपना खून-पसीना एक करने बावजूद अपनी आवश्यकता के सौ रुपये के बदले नब्बे रुपये ही कमा पाती है। उसके पास अपना उजला धन ही नहीं टिकता तो काले धन की बात ही कहां !* आठ नवम्बर को एक जलजला आया, यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित था, पर इससे सारा देश हिल गया। सरकार की तरफ से इसे भ्रष्टाचार, काले धन और बाजार में छाई नकली मुद्रा से निजात पाने के लिए उठाया गया कदम बताया गया। आम भारतीय जो देश के हित के लिए किसी भी प्रकार की परेशानी-कठिनाई सहने को और त्याग करने को तैयार हो जाता है उसने अपने स्वभाव के अनुसार दसियों दिन तकलीफें झेलीं पर इस कठोर निर्णय का स्वागत ही किया...
कुछ अलग सा पर
गगन शर्मा
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अंगदान से सम्बंधित जानकारी
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sunita agarwal
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मुंशिया के पापा -
डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
...अब उपसंहार किया जाए उसके पहले जान लो कि मुंशिया चालीस पार उसकी मम्मी 60 पार उसकी दादी 80 पार, चाचा 50 के करीब, चाची को चालीसा लगा है। मुंशिया की घर वाली भी 30 प्लस है। बच्चे भी सयाने होने लगे हैं। टेन प्लस और मंुशिया के पापा 60 प्लस हैं। कुल मिलाकर मुंशिया के पापा की तरह जितने भी परिवार होंगे सब के यहाँ का सीनेरियो एक सा ही होगा। चलो अब चला जाए अब अपने-अपने घरों की चिन्ता की जाए। वह सभी औरतें चुप्पी मारे अपने-अपने घरों की तरफ चल देती है- मैं अपनी मंथरगति वाली चाल से चलता हुआ नित्य की तरह आवाज देकर पोती को बुलाता हूँ कि दरवाजा खोले।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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Laxmirangam:
चिड़िया, राक्षस और फरिश्ता.
एक थी चिड़िया,
जैसे गुड़िया,
चूँ-चूँ, चीं-चीं करने वाली,
गाने और फुदकने वाली,
यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ,
डाल-डाल, अंगना, बगिया...
एक थी चिड़िया...
जैसे गुड़िया,
चूँ-चूँ, चीं-चीं करने वाली,
गाने और फुदकने वाली,
यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ,
डाल-डाल, अंगना, बगिया...
एक थी चिड़िया...
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क्या टीपू सुल्तान
स्वाधीनता संग्राम सैनानी थे?
...टीपू को मुस्लिम कट्टरपंथी के रूप में प्रस्तुत करना अंग्रेज़ों के हित में था। उन्होंने यह प्रचार किया कि वे टीपू की तानाशाही से त्रस्त गैर-मुसलमानों की रक्षा के लिए टीपू के खिलाफ युद्ध कर रहे हैं। यह मात्र एक बहाना था। कहने की आवष्यकता नहीं कि आज के ज़माने में हम राजाओं और नवाबों का महिमामंडन नहीं कर सकते। वे हमारे राष्ट्रीय नायक नहीं हो सकते। परंतु इसके बाद भी, टीपू, भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में तत्समय राज कर रहे भारतीय राजाओं से इस अर्थ में भिन्न थे कि वे अंग्रेज़ों के भारत में अपना राज कायम करने के खतरों को पहले से भांप सके। वे अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध में सबसे पहले अपनी जान न्यौछावर करने वालों में से थे। भारत में स्वाधीनता आंदोलन, टीपू के बहुत बाद पनपना शुरू हुआ और इसमें आमजनों की भागीदारी थी। टीपू के बलिदान को मान्यता दी जाना ज़रूरी है। आज साम्प्रदायिक विचारधारा के बोलबाले के चलते टीपू जैसे नायकों का दानवीकरण किया जा रहा है। अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध में टीपू की भूमिका को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
-राम पुनियानी
-राम पुनियानी
Randhir Singh Suman
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दो कुण्डलियाँ
"खोल दो मन की खिड़की"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आभार सम्मलित करने का..अच्छे लिंक मिले..
जवाब देंहटाएंबढ़िया सोमवारीय अंक ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंआभार सर, सुन्दर प्रस्तुति .
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