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शनिवार, नवंबर 19, 2016

"एक नए भारत का सृजन (चर्चा अंक-2531)

मित्रों 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

दोहे 

"होगी अब तसदीक" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

जनता को अब दे दियामोदी ने उपहार।
राम-राज की कल्पनाशायद हो साकार।।
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काला धन हो जायगाजड़ से सारा साफ।
गद्दारों को देश अबनहीं करेगा माफ।।
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हर्ष और उल्लास केदिन हैं अब नजदीक।
सबकी पूँजी की सघन, होगी अब तसदीक...
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हम सोच रहे हैं 

क्यूँकि हम तकलीफ में नहीं.. 

साहेब के हाथ बहुत कड़क और मजबूत हैं.. एक बार मिला लो तो कई दिनों तक दुखते हैं.. ऐसे ही शिव सेना के बारे में सोचकर ख्याल आया...अब मिलाया है तो दुखना भी झेलो.. वैसे ही नई नीति को देख एक ख्याल और भी आया.. क्यूँ न अपनी ही बीबी से एक बार और शादी कर ली जाये घर में ही सादे समोरह में..और बैंक से २,५०,००० रुपये निकाल लायें..वरना तो कोई और रास्ता भी नहीं दिखता है ये ५० दिन काटने का..स्याही लगे हाथों ने इतनी तो औकात बनवा ही दी है कि एक सादा सा शादी का कार्ड छपवा लिया जाये... एल सी डी स्क्रीन वाला कार्ड तो उन राजनेताओं को ही मुबारक हो 
जो बेशर्मी से ऐसे विपरीत वक्त में, ५०० करोड़ की शादी की ... 
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कार्टून कुछ बोलता है ;  

नाम बड़े और दर्शन छोटे ! 

अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत 
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बस तैल देखिये और तैल की धार देखिये 

दीवारों के पार की बाते सुनने की चाह भला किसे नहीं होती? क्या कहा जा रहा है इसकी जिज्ञासा हमें दीवारों पर कान लगाने को मजबूर करती हैं। रामचन्द्र जी ने भी यही कोशिश की थी और अपनी पत्नी को ही खो बैठे थे। दीवारों के भी कान होते हैं. यह कहावत शायद तभी से बनी होगी। इमामबाड़ा तो बना ही इसलिये था, दीवारे भी बोलती थी और दीवारों के पार क्या हो रहा है दिखायी भी देता था... 
smt. Ajit Gupta 
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Junbishen 769 

मत आना इनके जाल में ऐ मेरे भतीजे , 
अक़्साम इए खुद हैं ये क़यासों के नतीजे। 
जो बात तुझे लगती हो फ़ितरत के मुख़ालिफ़ , 
उस बात पे हरगिज़ न मेरे लाल पसीजे... 
Junbishen पर Munkir 
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पनही के बहाने 

पनही पर भक्ति काल के कवियों ने बहुत कुछ लिखा है। उस समय के सभी दास कवियों ने पनही संस्कृति को अपने-अपने मंजुल मति अनुसार समृद्ध किया है। तत्कालीन ब्रांड एम्बेसडर संत रविदास तो इसकी जियो ब्रांडिंग करते हुए, कई बार संतों को तथा जनसाधारण को बिना कीमत लिये ही पनही भेंट कर दिया करते थे। यदि इन कवियों ने पनही पर उस समय अपना ध्यान केंद्रित नहीं किया होता तो उपेक्षित सा पनही घेरी-बेरी आज के सन्दर्भों में उफला नहीं पाता। बेकाम संत मोको कहाँ सीकरी सो काम लिखते हुए भी उस समय की राजधानी सीकरी गए। हमें बताया कि रियाया की शोभा गोड़ से ही होती है मूड़ तो शहनशाहों का ही होता है... 
संजीव तिवारी 
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इंसान हैं... 

अगर करीने से संभाल के रख सकते 
हम खुद की किस्मत को 
खुदा की कसम किसी को भी 
हक़ न देते खुद तक पहुँचने का 
इंसान हैं... इंसानी हवाला देके 
लोग हमें सुनाते हैं 
वरना तो इस नामुराद दुनिया की 
कहानी ही अलग होती !! 
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सादगी का शिल्प गढ़ती कविताएँ -  

उमाशंकर सिंह परमार 

हम पहली बार यहाँ प्रखर युवा आलोचक उमाशंकर सिंह की आलोचकीय टिप्पणी के साथ अपने प्रिय पाठकों को सीमा संगकार की कुछ कविताओं से अपने ब्लॉग पर रु-ब-रु करा रहे हैं -* *---------* *सादगी का शिल्प गढ़ती कविताएँ: * * - उमाशंकर सिंह परमार * सीमा संगसार की कविताएं वगैर भाषाई खिलवाड के सादगीपूर्ण समर्थ शब्दों द्वारा की गयी सपाट अभिव्यक्तियाँ हैं । भाषा नवीनता से अधिक सार्थकता का बोध दे रही है और कुछ कविताओं में तो वह अपनी जमीन बेगूसराय के प्रचलित शब्दों को भी बडी कारगरी से गुँथ देती है । यही कारण है कविता किसी भी विषय पर हो उनकी ... 
सुशील कुमार 
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रानी झाँसी अवार्ड 

"मैडम आपका नाम रानी झाँसी अवार्ड के लिए चुना गया है ।'
      "झाँसी की रानी तो अपनी वीरता व साहस के लिए याद की जाती हैं,पर मैं ने तो ऐसा कोई वीरता भरा  कारनामा किया नहीं है,...मुझे क्यों ?'
     "आप को अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में जागृति पैदा करने के प्रयास के आधार पर चुना गया है।'
      "अवार्ड  में क्या होता  है ?'
      "एक बड़ा सा मोमेन्टो, प्रमाण- पत्र के साथ एक भव्य समारोह  में किसी मंत्री के हाथों प्रदान किया  जाएगा ।'
      " कितनी महिलाओं को दिया जा रहा है ?'
      "अलग अलग क्षेत्र की बीस महिलाओं को दिया जाएगा ।'
      "इस अवार्ड के बदले मुझे क्या करना होगा ?'
      "कुछ खास नहीं बस हम एक पत्रिका प्रकाशित करते हैं उस के लिए एक दो  हजार रुपये का विज्ञापन दे दें।' 
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राष्ट्र वादी खून 

  डॉ चाक चौबन्द सिंह अपने नर्सिंग होम " सेवा सदन ,आनंद नगर " में बैठे देश में हो रही खून की कमीं पर चिंतातुर मुद्रा में खिड़की से बाहर देखते जा रहे थे । बीमारों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है ,पैंसठ फीसद लोग खून की कमीं के शिकार हैं रक्त- दान करने वालों की संख्या बहुत कम है । कोई सकारात्मक ठोस पहल होनी चाहिए ,वरना देश की सेहत को ठीक रखाना मुश्किल हो जाएगा । शाम का समय वे अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से थोड़ा समय आराम के लिए  निकाल  एकांत प चाय की प्रतीक्षा में थे पर मानवीय संवेदना थी की समस्याओं को विचारों के साथ सँजोये हुये थी । तभी श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी अपनी ऊँची आवाज में बड़बड़ाते डॉ चाक चौबन्द सिंह के कमरे में बेधड़क प्रवेश कर गए । और अपने गुस्से का इजहार करने लगे... 
udaya veer singh 
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धन -धर्म- संकट 

धर्म संकट बड़ी है। विविकशील होने के दम्भ भरु या तुच्छ मानवीय गुणों से युक्त होने की वेवशी को दिखाऊ। रोजमर्रा से तीन चार होने में सामने खड़े मशीन पर निर्जीव होने का तोहमत लगा उसे कोसे या उस जड़ से आश करने के लिए खुद पर तंज करे समझ नहीं आ रहा। भविष्य के सब्ज बाग़ में कितने फूलो की खुसबू भिखरेगी उस रमणीय कल्पना पर ये भीड़ अब भारी सा लग रहा है।इतिहास लिखने के स्याही में अपने भी पसीने घुलने की ख़ुशी को अनुभव कर हाथ खुद ब खुद कपाल पर जम आते लवण शील द्रव्य के आहुति हेतु पहुँच जाता है। इस हवन में किसका क्या स्वहा होता है और किस-किस की आहुति यह तो पता नहीं। लेकिन इस मंथन मे...  
Kaushal Lal 
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एक नए भारत का सृजन 

केन्द्र सरकार द्वारा पुराने 500 और 1000 के नोटों का चलन बन्द करने एवं नए 2000 के नोटों के चलन से पूरे देश में थोड़ी बहुत अव्यवस्था का माहौल है। आखिर इतना बड़ा देश जो कि विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में दूसरे स्थान पर हो थोड़ी बहुत अव्यवस्था तो होगी ही। राष्ट्र के नाम अपने उद्बोधन में प्रधानमंत्री ने यह विश्वास जताया था कि इस पूरी प्रक्रिया में देशवासियों को तकलीफ तो होगी लेकिन इस देश के आम आदमी को भ्रष्टाचार और कुछ दिनों की असुविधा में से चुनाव करना हो तो वे निश्चित ही असुविधा को चुनेंगे और वे सही थे। आज इस देश का आम नागरिक परेशानी के बावजूद ... 
dr neelam Mahendra 
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बना अब राख पत्थर का किला है 

खिली कलियाँ यहाँ उपवन खिला है 
जहाँ में प्यार साजन अब मिला है ...  
मिला जो प्यार में अब साथ तेरा  
नहीं अब प्यार से कोई गिला है ..  
Ocean of Bliss पर 
Rekha Joshi 
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2 टिप्‍पणियां:

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