मित्रों
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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तुझको चलना होगा
कुछ तो बोल।
हम पिछले घंटे भर से एकदम चुप बैठे हैं।
बॉय द वे , तू सोच क्या रही है ?
हम क्यों नहीं बहते इस झरने की तरह ?
क्योंकि हम इतने सरल नहीं होते।
न जाने कहाँ -कहाँ की सोचों में
दिमाग घुमाते रहते हैं...
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गीत
"कवि लिखने से डरता हूँ"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
घर-आँगन-कानन में जाकर,
केवल तुकबन्दी करता हूँ।
अनुभावों का अनुगायक हूँ,
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।
है नहीं मापनी का गुनिया,
अब तो अतुकान्त लिखे दुनिया।
असमंजस में हैं सब बालक,
क्या याद करे इनको मुनिया।
मैं बन करके पागल कोकिल,
कोरे पन्नों को भरता हूँ।
मैं कवि लिखने से डरता हूँ...
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हासिल
कितनी बातें थीं कहने को
जो हम कहते तुम सुन लेते
कितनी बातें थी सुनने को
जो तुम कहते हम सुन लेते !
लेकिन कुछ कहने से पहले
घड़ी वक्त की ठहर गयी
सुनने को आतुर प्राणों की
आस टूट कर बिखर गयी...
Sudhinama पर
sadhana vaid
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मुक्तक -
सुबह जैसे ही आँख खुलती है
सुबह जैसे ही आँख खुलती है
मानो एक शिकायत किया करती है
भोर होते ही क्यू छोड़ देता है मुझको
मेरी तनहाई मुझसे यही सवाल किया करती है...
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नोटबंदी
आज देश लाइन में लगा है, वैसे भी लोगों को लाइन में लगने की आदत सी है, कोई नयी फिल्म का पहला दिन हो तो टिकिट खिड़की पर लंबी लाइन ,जैसे पहले दिन ही किला फतह करना हैं. फ़िल्मी सितारों के दर्शन हों या लालबाग का राजा , स्कूल में एडमिशन हो या परीक्षा के फॉर्म,जिओ फ्री फ़ोन मिले या रिचार्ज , राशन - पानी या पेट्रोल - या चौकी धानी, हर जगह लाइन का अनुशासन बरक़रार है इसीलिए सरकार को हमारी दरकार है। फिर नोट बदलने के लिए इस लंबी लाइन पर विपक्ष काहे भड़क रहा है, अब का करें मिडिया को भी रोज तमाशा देखने की आदत पड़ गयी है। तमाशा करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं...
sapne(सपने) पर
shashi purwar
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तारों की छाया मेँ मिल के ,
आ दूर कहीं अब चल दें हम
जब चाँद छुपा है बादल मेँ,
तब रात यहॉं खिल जाती है
घूँघट ओढ़ा है अम्बर मेँ...
Rekha Joshi
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कभी कभी!!
कभी कभी कहानियाँ यूँ खत्म हो जाती है !
वक़्त का मरहम मिलता नहीं तो जैसे ज़ख्म हो जाती है !!
रिस जाती है आह भी दिल के लहू में...
Parul Kanani
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नन्हा भरतू और भारतबन्द
डा कविता भट्ट
सुबह से शाम तक, कूड़े से प्लास्टिक-खिलौने बीनता नन्हा भरतू
किसी कतार में नहीं लगता, चक्का जाम न भारत बंद करता है
दरवाजा है न छत उसकी वो बंद करे भी तो क्या
वो तो बस हर शाम की दाल-रोटी का प्रबंध करता है....
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तुम्हारा आना ...
'कुछ ठहरले...' (गीत-संग्रह) के बाद
यह दूसरा काव्य-संग्रह 'अजनबी शहर में '
अभी प्राप्त हुआ है .
उम्मीद है कि इसे पढ़ते हुए भी
आप अपनापन महसूस करेंगे .
संग्रह की एक और कविता यहाँ दे रही हूँ --
ख़यालों में तुम्हारा आना...
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
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जीवन धूप और छाव
कभी धूप तो कभी छाव है
जिंदगी मीठे खट्टे अनुभव का नाम है
जिंदगी कुदरत की नियामत है
जिंदगी अगर ये जिंदगी न होती
तो क्या होता...
aashaye पर
garima
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कहते हैं मुद्दतों से हमें जानते हैं वो ...
हम झूठ भी कहेंगे तो सच मानते हैं वो
कहते हैं मुद्दतों से हमें जानते हैं...
Digamber Naswa,
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुंदर सूत्र ....
जवाब देंहटाएंआभार मुझे शामिल करने का ...
बहुत बढ़िया चर्चा आज की ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुधवारीय अंक ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा आज की ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha hardik dhnyavad
जवाब देंहटाएंThanks for sharing, nice post! Post really provice useful information!
जवाब देंहटाएंPhục vụ cho nhu cầu vận chuyển container bằng đường bộ ngày càng lớn, vận chuyển xăng dầu bằng đường sắt và vận tải, gửi hàng hóa vận chuyển xe máy bắc nam bằng đường sắt cũng đã xây dựng nên những qui trình, dịch vụ vận chuyển hàng hóa bằng các toa xe chuyên dùng chuyên nghiệp và có hệ thống. Đảm bảo mang đến chất lượng tốt nhất cho khách hàng sử dụng dịch vụ.