मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जन्म दिन राज्य का
मना भी या नहीं भी
सोलह का फिर भी
होते होते हो ही गया है
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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सर, आप तो सी ए हैं. कभी सोचा भी न था कि आपके दर्शन प्राप्त करने आपके दर आऊँगा.... अब इसे अच्छे दिन न कहूँ तो और क्या कहूँ कि आज यह मौका भी आ ही गया? सर, नित सब्जी मंडी के सामने (भीख) मांग कर इतना जुटा ले रहा था कि उस दिन का खाना खा सकूँ... इससे ज्यादा न कभी (भीख) मांगने में मिला, न ही कभी ऐसा सोचने का मौका आया.. अब नंगा क्या नहाये और क्या निचोड़े...
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आपको पता है जंगल में भूत है।
सिक्किम यात्रा
वैसे तो यात्रा के दौरान बहुत लोगों से साबका पड़ता है ये लोग ख़ामोशी से हमारे आस पास बने रहते हैं जिन्हें हम देख कर भी नज़र अंदाज कर देते हैं या एक व्यावसायिक सा भाव होता है कि उनकी सेवाओं के बदले पैसा तो दिया है। सभी पैसों के लिए काम करते है ये भी कर रहे हैं तो इसमें क्या खास है? अगर कभी जितना पैसा दिया उसके बदले कितनी मेह्नत कितनी ईमानदारी और मुस्तैदी दिखी इसका आकलन किया जाये काम करने की परिस्थियों पर ध्यान दिया जाये तो दिल उन सेवाओं का मोल समझ उनके सामने कृतज्ञ हो जाता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि हम सेवाओं से संतुष्ट नहीं होते या लगता है पैसे का पूरा मोल नहीं वसूल हुआ लेकिन उसके कारण अच्छे ईमानदार और मेहनती लोगों का जिक्र ना किया जाये यह भी ठीक नहीं।...
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लघु व्यंग्य :
हर पति के दिन फिरते हैं।
८ नवम्बर, 2016 की देर शाम को जब थका हारा दिल्ली के दमघोटू यातायात से जूझता हुआ दफ्तर से घर पंहुचा तो बैठक मे मेज पर तुडे-मुडे ५०० और १००० रुपये के नोटों का अम्बार देख एक पल को चौंक सा गया। लगा कि दुनियां का सबसे ईमानदार कहा जाने वाला तबका यानि आयकर विभाग के हरीशचन्दों की मंडली आज मेरे घर मे भी आ धमकी है, कि तभी किचन से हाथ मे पानी का गिलास लेकर धर्मपत्नी कुछ बडबडाती हुई मेरी ओर बढी। मैने अंदर से अशान्त होते हुए भी शान्त स्वर मे पूछा, क्या माजरा है ये सब, भाग्यवान...
अंधड़ ! पर
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
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अँधेरा और रोशनी
दीये देते हैं रोशनी जलाने के बाद
सुलगती है जिसके छोर पर बाती
और फिर भी रह जाता है अंधकार
उसके ही तले में रोशनी नहीं जाती!...
मेरे मन की पर
अर्चना चावजी
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दोहे
"दो हजार के नोट-रहे सवाल कचोट"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मिटा हजारी नोट का, सारा आज वजूद।
दो हजार का नोट अब, रहा जेब में कूद।।
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बन्द हजारी क्यों किया, किसकी थी ये राय।
दो हजार के नोट का, समझाओ अभिप्राय...
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सभी को देव प्रबोधिनी एकादशी की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
आइए बोर-भाजी-आँवला, उठो देव साँवला के सुर में
सुर उचारते हैं मन्सूर अली हाशमी जी
और तिलकराज कपूर जी की द्वितीय ग़ज़लों के साथ।
पंकज सुबीर
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फुनगियों की छँटाई
पाँच सौ और एक हजार रुपयों के नोटों को एक झटके से चलन से बाहर कर देने के बाद देश में छाए अतिरेकी उत्साह के तुमुलनाद से भरे इस समय में एक सुनी-सुनाई, घिसी पिटी कहानी सुनिए। मन्दिर की पवित्रता और स्वच्छता बनाए रखने के लिए तय किया किया कि भक्तगण जूते पहन कर मन्दिर प्रवेश न करें। सबने निर्णय को सामयिक, अपरिहार्य बताया और सराहा किन्तु प्रवेश पूर्व जूते उतारना बन्द नहीं किया। प्रबन्धन ने एक आदमी तैनात कर दिया - ‘किसी को भी जूते पहन कर अन्दर मत जाने देना। जूते बाहर ही उतरवा देना।’ अब भक्तगण जूते बाहर ही उतारने लगे। एक भक्त ने अतिरिक्त सावधानी बरती...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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सुन्दर चर्चा । आभार 'उलूक' के सूत्र 'जन्म दिन राज्य का मना भी या नहीं भी' को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा...
जवाब देंहटाएंसुन्दर संयोजन के अच्छी चर्चा।
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