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शुक्रवार, दिसंबर 02, 2016

*सुखद भविष्य की प्रतीक्षा में दुःखद वर्तमान* (चर्चा अंक-2544)

मित्रों 
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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*बुद्ध कब मुस्कुराओगे*

बाना अलाबेद
बुद्ध कब मुस्कुराओगे

तथागत सुना है 
गुना भी है 
जब मुस्कुराते हो

तब कुछ न कुछ बदलता है 

*सीरिया की बाना अलाबेद ने* 
बम न गिराने को कहा है 
अब फिर मुस्कुराओ 
बताओ ... 
गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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दोहे 

"जनता है कंगाल" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक) 

बैंक हुई कंगाल सब, किसका है ये दोष।
उसको कहें दिवालिया, जिसका खाली कोष।।
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प्रजातन्त्र में क्यों हुआ, तन्त्र प्रजा से दूर।
समझो इसके मूल में शासक को मगरूर।।
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बैंकों के बाहर लगीं, लम्बी बहुत कतार।
अपने ही धन के लिए, जनता है लाचार... 
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693 

अश्कों का आजकल कोई दाम नहीं होता।
दिल टूट भी जाए तो कोहराम नहीं होता।।

परदेस में जाकर वो हो गया है निकम्मा ;
देश में आकर फिर उससे काम नहीं होता।।

बाट जोहते-जोहते माँ दिखती है पत्थर;
अखियों के नूर का अब पैगाम नहीं होता... 
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Laxmirangam: 

स्वर्णिम सुबह 

ऐ मेरे नाजुक मन 
मैं कैसे तुमको समझाऊँ।।
अंजुरी की खुशियाँ छोड़ सदा, 

अंतस में भरकर, 
बीते जीवन का क्रंदन, 
क्यों भूल गए हो तुम स्पंदन. 
ऐ मेरे नाजुक मन 
मैं कैसे तुमको समझाऊँ... 
M. Rangraj Iyengar 
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बहुमंजिला इमारतो में 

बिजली की ठेकेदारी प्रथा 

नोयडा के बहुमंजिला भवनों में एक नयी प्रथा का चलन है, बिजली की ठेकेदारी!!! बिल्डर को बिजली का कनेक्शन दिया जाता है और बिल्डर वहाँ के रहने वाले को बिजली का कनेक्शन देता है। बिजली के बिल जमा करने का पूरा सिस्टम प्री-पेड है। आप प्रीपेड जमा करिये वो जाता है अमूमन बिल्डर के अकाउंट में। बिल्डर कब और कैसे uppcl को पैसे जमा करता है। ये केवल बिल्डर जानता है... 
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ग़ज़ल -  

इस लम्हे का हुस्न यही है 

आँखों में फ़रयाद नहीं है 
यानी दिल बर्बाद नहीं है 
मुझ को छोड़ गई है गुमसुम 
ये तो तेरी याद नहीं है... 
Ankit Joshi  
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आर्थिक फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रिया से 

देश का भरोसा खोता विपक्ष 

नोटबन्दी के फैसले ने देश की जनता को परेशान किया है। रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में मुश्किल हो रही है। कई जगह पर तो लोगों को बेहद सामान्य जरूरत पूरा करने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। ये सब सही है। लेकिन, आम जनता की परेशानी की असली वजह क्या है, इस पर पहले बात करनी चाहिए। दरअसल आम जनता को होने वाली इस सारी परेशानी की वजह नरेंद्र मोदी सरकार का वो फैसला है, जिसके बाद 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने की जरूरत आ पड़ी। इस वजह से देश की आम जनता परेशान है। वो कतारों में है... 
HARSHVARDHAN TRIPATHI 
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सुखद भविष्य की प्रतीक्षा में 

दुःखद वर्तमान 

कल एक डॉक्टर मित्र के पास बैठा था। एक रोगी हर सवाल का जवाब बड़े ही अटपटे ढंग से दे रहा था। वह शायद शरीरिक नहीं, मनोरोगी था। तनिक विचार कर डॉक्टर मित्र ने अपनी दराज से एक शीशी निकाली और मरीज को कहा कि वह बाहर जाए और शीशी की बाम माथे पर लगा कर दस मिनिट बाद आए। मरीज ने निर्देश पालन तो किया किन्तु दस मिनिट के बजाय दो मिनिट में ही लौट आया। बोला कि उसे ललाट पर असहनीय जलन हो रही है। डॉक्टर ने बड़े ही प्यार से फटकारते हुए कहा कि वह बाहर ही बैठे और दस मिनिट बाद ही आए। मरीज ने कहा कि जलन बर्दाश्त से बाहर है, 
दस मिनिट तो क्या वह एक पल भी प्रतीक्षा नहीं कर सकता... 
विष्णु बैरागी 
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आज पहली तालीख है ... 

रेडियो सीलोंन से हर माह की पहली तारीख को किशोरदा की आवाज में ये फ़िल्मी गाना सुबह सवेरे ताजगी और उम्मीदें देकर जाता था, वो दिन वो सुबह की फिजांयें, गाने की गुदगुदी सब गायब हो गयी हैं क्योंकि आज भी रोज की ही तरह देश भर में मुद्रा के लिए फिर मारा मारी होगी. यद्यपि मोदी जी की नोटबंदी से सारा ज़माना हलकान हुआ है पर बहुत से लोग खुश भी हैं कि पड़ोसी के गुदड़ी भी खुल रही है. भ्रष्टाचार में सरोबार देश एक इन्कलाब से गुजर रहा है, सभी राजनैतिक लोग इस सैलाब में अपना अपना नफ़ा-नुकसान तलाश रहे हैं. कल रात के समाचारों में ये चिंता भी व्यक्त की जा रही थी कि नौकरीपेशा को अपनी सैलरी की रकम कैसे मिल पायेगी...  
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय 
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इतनी अफरा तरफी, हाहाकार, परेशानियाँ, व्यापार का अरबों का नुकसान, थमा सहमा कतारों में खड़ा भारत, पेटीएम का फायदा, पहले से बंद भारत को ही फिर और बंद करने की विपक्षियों की जुगत, भक्तों की भक्ति की परीक्षा (सब अव्वल नम्बर से पास कहलाये), अभक्तों की साफ साफ पहचान (कुछ जो सरेन्डर हो गये वो ग्रेस मार्क से पास माने गये, बाकी के सब फेल और स्पेशल केस में नीतिश गुड सैकेण्ड क्लास से पास घोषित). संभाले नहीं संभलते हालात, नित बदलते नियम, अदूरदर्शिता और अहम ब्रह्मा की खुले आम नुमाईश, हड़बड़ी में लिए गये सभी स्वमेव फैसले, मगरमच्छीय आँसूं और हड़बड़ाहट में छपते नकली जैसे असली और असली जैसे नकली नोट ... 

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जब से मिले तुम मुझको 

जब से मिले तुम मुझको 
मेरे ख्याल बदल गए 
जीने से बेजार था दिल 
तुम बहार बन के आ गए... 
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लिली पाण्डेय 

लिली रेलवे बोर्ड में वरिष्ठ अधिकारी हैं और कार्मिक विभाग का उत्तरदायित्व वहन कर रही हैं।बंगलुरु में उनके साथ कार्य करने का सौभाग्य मिला है। कला और साहित्य में रुचि है। रेलवे में कला के विषय पर ‘सफर” नाम की पुस्तिका की सहलेखिका भी रही हैं। उसी के आगामी अंक के लिये लिली ने एक कविता लिखी थी। पढ़ने को दी, बहुत अच्छी लगी, गुनगुनायी और हिन्दी में अनुवाद कर दी। शाब्दिक के स्थान पर भावानुवाद किया है। आप भी पढ़ें... 
Praveen Pandey 
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अपानवायु,  

कुछ रोचक जानकारी 

दीमक जैसा छोटा सा कीड़ा सबसे ज्यादा गैस उत्पादित करता है। फिर कतार में लगते हैं ऊंट, ज़ेबरा, भेड़, गाय, हाथी, कुत्ते तथा इंसान। जान कर आश्चर्य होगा कि चीन में "Professional Smeller" द्वारा गंध सूंघ कर रोगों का निदान किया जाता रहा है। इनके काम की तरह ही इनको इस काम के एवज में मिलने वाली, करीब 50000 डॉलर की रकम भी हैरतंगेज है* अपानवायु, चिकित्सा जगत में भले ही इस पर काफी कुछ लिखा, बताया या शोध किया जा रहा हो, पर रोजमर्रा की जिंदगी में और आम बोल-चाल में यह काफी उपेक्षित सा विषय रहा है। आम धारणा में यह कुछ भदेस, असुसंस्कृत, बेशऊर, फूहड़ या कह सकते हैं कि कुछ हद तक अश्लीलता की श्रेणी...  
गगन शर्मा 
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मन , 

एक बदमाश बच्चा 

मन में जाने कितनी बातें चलती रहती हैं . 
कहीं कुछ पढो तो मन करता है कुछ चुहल की जाए 
लेकिन फिर लगता है छोडो , 
गीत बनाने के दौर गुजर चुके हैं .... 
आओ हकीकतों से करो सामना ये मन , 
एक बदमाश बच्चा , 
छेड़खानी खुद करता है 
खामियाज़ा या तो दिल 
या आँखें उठाती हैं... 
vandana gupta 
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प्यार 

बिना सुने कोई बहरा 
कैसे सुन लेता है अपनी प्रेमिका की बातें...  
कैसे प्यार करता है अपनी पत्नी से 
अपने बच्चों से भी बिना संवाद के तो 
प्यार के वशी भूत मोर 
अपनी संगिनी का 
दिल मोह लिया करते है ... 
प्रभात  
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साँसों में दबी ... 

कहीं खामोश रातें हैं तो कहीं तन्हा ज़िन्दगी 
कहीं साँसों में दबी शिशकियों की आवाज़ है 
किसी के अपनत्व की तलाश में 
भटकता बावँरा ये मन 
कुछ कहने की आस में सहमते हुए दो लब...  
आज कोई तो खलल है इस मंज़र में 
शायद दिल का गुबार फटने को है 
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तड़ित 

फटे हुए एम्प्लीफायर स्पीकर की तरह गडगड़ाता बादल,  
नमी से लबालब ट्रांसफॉर्मर के कनेक्शन वाले 
मोटे तार से ओवरलोडेड पॉवर सप्लाई के कारण 
कड़ कड़ाती बिजली, जो दूर तलक़ दिख रही 
किसी रोमांटिक मूवी की बेहद ख़ूबसूरत अभिनेत्री सी... 
Mukesh Kumar Sinha 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. सरजी,

    बहुत बहुत धन्यवाद और शुक्रिया

    एक - कि मेरी पोस्ट को स्थान मिलसा.
    दो - कि बहुत सुंदर लिक मिले पढ़ने को...
    तीन - कि शायद तीसरी या चौथी बार जाने अन्जाने में मेरी पोस्ट लगातार दो दिन दो अलग अलग चर्चाकारों द्वारा चर्चा मंच में शामिल हो रही है... मैं दोनों का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ.

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  3. मेरी कविता को यहाँ तक पहुँचाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !!

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  4. आ.डॉ.मयंक जी,मेरी रचनाओं को यहाँ स्थान देने हेतु एवं बेहतरीन रचनाएं पढ़वाने हेतु हार्दिक आभार...

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  5. बहुत सुन्दर चर्चा मंच ..........बढ़िया लिंक्स..हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं

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