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Saturday, December 24, 2016

गांवों की बात कौन करेगा" (चर्चा अंक-2566)

मित्रों 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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समीक्षा-दोहा-कृति 

'खिली रूप की धूप' (समीक्षक-मनोज कामदेव) 

समीक्ष्य दोहा-कृति 'खिली रूप की धूपकवि के उत्कृष्टसामाजिक प्रभावपूर्ण व ह्र्दयस्पर्शी दोहों का मात्र एक गुलदस्ता नहीं बल्कि एक समग्र उपवन है। इस दोहा संग्रह में जिन्दगी के विभिन्न रंगअनेक पहलूअनेक यथार्थअनुभूतियाँसामाजिक चिंतनआँसूमुस्कानपीरहर्ष-विषाद के अनेक परिदृश्य इस संग्रह में अति श्रेष्ठताकलात्मकतागहनता व परिपवक्ता के साथ समाहित किए गए हैं... 
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मुक्तकगीत  

"खर-पतवार उगी उपवन में"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

सुख का सूरज नहीं गगन में।
कुहरा पसरा है कानन में।।

पाला पड़ता, शीत बरसता,
सर्दी में है बदन ठिठुरता,
तन ढकने को वस्त्र न पूरे,
निर्धनता में जीवन मरता,
पौधे मुरझाये गुलशन में।
कुहरा पसरा है कानन में।।

आपाधापी और वितण्डा,
बिना गैस के चूल्हा ठण्डा,
गइया-जंगल नजर न आते,
पायें कहाँ से लकड़ी कण्डा,
लोकतन्त्र की आजादी तो,
बन्धक है अब राजभवन में।
कुहरा पसरा है कानन में... 
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गांवों की बात कौन करेगा 

लोगों से एक खचाखच भरे ऑडिटोरियम में कभी शीलू राजपूत दमदार आवाज़ में आल्हा गूंजता है, फिर एक मदरसे की लड़कियां क़ुरान की आयतों को अपना मासूम स्वर देती है, ओर फिर गूंजती है वेदमंत्रो की आवाज़। लोगों के चेहरे विस्मित हैं। इन प्रतिभाओं में एक बात समान थी। यह सभी लोग गांव के थे। ठेठ गांवों के। जिनके लिए मुख्यधारा के मीडिया के पास ज़रा भी वक्त नहीं। तो जब मुख्यधारा का मीडिया बहसों और खबरें तानने की जुगत में लगा रहता है, उस दौर में गांव की घटनाएं, नकारात्मक और सकारात्मक दोनों खबरें हाशिए पर पड़ी रह जाती हैं... 
Manjit Thakur 
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शब्द संधान -  

शरीर की शरारतें -  

डा. सुरेन्द्र वर्मा 

सामान्यत: शरीर का अर्थ देह से है, किसी भी वस्तु या व्यक्ति की कद-काठी से है, उसकी काया से है | व्यक्ति के भौतिक संस्थान से है | अस्थि,मांस, मंजा आदि, से निर्मित प्राणी की काया है | शरीर एक ऐसा सावयव संस्थान है जिसके कई अंग होते हैं जो एक दूसरे से आंगिक (आर्गेनिक) रूप से जुड़े होते है | शरीर सम्पूर्ण अंगों का एक समुच्चय है... 
Ravishankar Shrivastava 
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समीक्षक – डॉ. अनिल सवेरा 
829, राजा गली, जगाधरी 
हरियाणा – 135003
मो. – 94163-67020
प्राप्ति स्थान - 1. Redgrab 
                       2. Amazon
‘ महाभारत जारी है ’ कवि दिलबागसिंह विर्क रचित नवीनतम काव्य-संग्रह है, जिसे उन्होंने सामर्थ्यवान लोगों की बेशर्म चुप्पी को समर्पित किया है | कवि के भीतर भी एक महाभारत मची है | उसी का परिणाम है यह काव्य-संग्रह | कवि समाज की सोच में परिवर्तन चाहता है | ऐसा परिवर्तन, जिससे समाज में सुधार हो | ‘ चश्मा उतार कर देखो ’, ‘ अपाहिज ’, और ‘ मेरे गाँव का पीपल ’ इसी विषय पर आधारित रचनाएं हैं... 
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दिल की दीवार पर
कुछ आज लिखा देखा
नहीं किसी जैसा
पर जाने क्यूं आकृष्ट करता
बहुत सोचा याद किया
फिर मन ने स्वीकार किया
याद आगई वह इबारत... 
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चलो आज परिचय करें, करें ज़रा कुछ गौर
कर्णधार कैसे मिले, जनता के सिरमौर !

कितना ये सच बोलते, कितनी करते फ़िक्र
कितना इनकी बात में, देश काल का ज़िक्र... 
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1.  

जीवन ये कहता है  

काहे का झगड़ा  
जग में क्या रहता है!  
2.  
तुम कहते हो ऐसे  
प्रेम नहीं मुझको  
फिर साथ रही कैसे!  
3... 

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लोग जिस तरह से अपने प्रिय नेता के मरने पर छाती पीट-पीट कर रोते हुए उन्मादी भावनायें व्यक्त करते है,पूरी दुनिया के लिए यह एक जिज्ञासा का विषय है ! ऐसे में मुझे शाही परिवार में जन्मे लियो टाल्सटाय जो एक बेहतरीन लेखक भी थे का लिखा यह संस्मरण आप सबसे साझा करने का मन हुआ ! भावना व्यक्त करने का यह भी एक नमूना देखिये !

उन्होंने लिखा, मैं बचपन में अपने माँ के साथ थिएटर में नाटक देखने जाता था ! नाटक में जहाँ कहीं भी ट्रेजडी सीन होता मेरी माँ ऐसे धुँआधार रोती कि कभी-कभी उनके आँसुओं से चार-चार रुमाल भीग जाया करते और नौकर हमेशा रुमाल लिए खड़े रहते ! टाल्सटाय लिखते है कि मैं उनके बगल में बैठा रोते हुए अपने माँ को देखकर सोचता कि वो कितनी भावनाशील महिला है... 

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शब्दों के आँखों में
भरे आँसुओं को छुपाकर
उसके हृदय का
सारा दुःख दबाकर
ओठों पर बस
सुंदर मुस्कान लाकर
तुम्हें लिखती रहूँ
प्रेमपत्र .. 
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सीजी में अमन चैन है 

केंद्र सरकार ने बड़े अफसरों को संपत्ति का व्यौरा देने से छूट दे दिया। बिरोधी लोगों को छत्तीसगढ़ में भी आंच जनाने लगा, फटा-फट विज्ञप्ति जारी होने लगे।यह जानते हुए भी कि बड़े अफसर इतने ..... नहीं हैं। वे संपत्ति अपने नाम पर नहीं ख़रीदते, अपने दोस्त - रिश्तेदारों के नाम खरीदते हैं। नगदी बिल्डरों के यहाँ खपाते हैं, नोटबंदी के बाद बेकार हुए नोटों से आग तापते हैं और सब कुछ छुपाते हैं। ये अलग बात है के लुकाने-छुपाने के बावजूद साहेब के घर-आफिस में कोई डायपर पहनाने वाला भी होता है जिसके सहारे पावर गेम को न्यूज मिलते रहता है... 
संजीव तिवारी 
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वो सुर्खरू चेहरे पे कुछ आवारगी पढ़ने लगी 

शर्मो हया के साथ कुछ दीवानगी पढ़ने लगी। 
वो सुर्खरूं चेहरे पे कुछ आवारगी पढ़ने लगी ।। 
हर हर्फ़ का मतलब निकाला जा रहा खत में यहां । 
खत के लिफाफा पर वो दिल की बानगी पढ़ने लगी... 
Naveen Mani Tripathi  
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शैल चतुर्वेदी.... 

याद ही शेष है 

शैल चतुर्वेदी 29 जून 1936 -29 अक्टूबर 2007 
आप हिंदी के प्रसिद्ध हास्य कवि, गीतकार 
और बॉलीवुड के चरित्र अभिनेता थे। 
प्रस्तुत है उनकी एक व्यंग्य कविता 
हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा और कहा, 
"एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?" 
तो बोला, "पहले खाना खिलाओ।" 
खाना खिलाया तो बोला, "पान खिलाओ।"... 
मेरी धरोहरपरyashoda Agrawal  

7 comments:

  1. बढ़िया चर्चा हमेशा की तरह ।

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  2. बहुत ही बढ़िया चर्चा। शनिवारीय चर्चा में शामिल करने के लिए शुक्रिया.
    हिन्दी ब्लॉग में आइये सादर— http://chahalkadami.blogspot.in/

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  3. बहुत ही सुन्दर शनिवारीय चर्चा।

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  4. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
    आभार

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  5. शुभ प्रभात
    आभार
    सादर

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  6. बहुत सुन्दर सूत्र ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार शास्त्री जी ! धन्यवाद !

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  7. bahut sundar charcha Merry Christmas

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