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मंगलवार, दिसंबर 06, 2016

"देश बदल रहा है..." (चर्चा अंक-2548)

मित्रों 
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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महिमा कार्य की 

न बड़ा न कोई छोटा 
काम तो बस काम है  
काम को ऐसे न टालो 
जीवन में इसे उतार लो ... 
Akanksha पर 
Asha Saxena 
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दोहे  

"सिन्दूरी परिवेश"  


सालगिरह पर ब्याह की, पाकर शुभसन्देश।
जीवन जीने का हुआ, सिन्दूरी परिवेश।।
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कर्म करूँगा तब तलक, जब तक घट में प्राण।
पा जाऊँगा तन नया, जब होगा निर्वाण... 
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गाने की छाप: 

एक विश्लेषण 

बदन पे सितारे लपेटे हुए, ए जाने तमन्ना कहाँ जा रही हो...यह गीत जब कभी रेडियो पर बजता है तब न तो कभी किसी सुकन्या के बदन का ख्याल आता है और न ही फलक पर चमकते सितारों का...बस, जेहन में एक चित्र खिंचता है..शम्मी कपूर का इठलाती और अंग अंग फड़काती व बल खाती शख्शियत... ऐसे कितने ही गीत हैं जो कभी सिनेमा के पर्दे, तो कभी टीवी के स्क्रीन पर दिख दिख कर आपके दिलो दिमाग पर वो छबी अंकित कर देते हैं कि उन्हें रेडियो पर सुनो या किसी को यूँ ही गाते गुनगुनाते हुए, दिमाग में वही फिल्म का सीन चलने लगता है... 
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इक बेहतर कल का निर्माण चल रहा है 

ये देश बदल रहा है , इतिहास रच रहा है 
गाँधी के सपनों का भारत , करवट बदल रहा है 

थोड़ी सी कस है खानी , थोड़ी सी परेशानी 
अपने हितों से बढ़ कर , पहचानो है देश प्यारा 
आओ हम आहुति दें , इक बेहतर कल का निर्माण चल रहा है 
ये देश बदल रहा है... 
गीत-ग़ज़ल पर शारदा अरोरा 
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1 अप्रैल 2017 से विमुद्रीकरण का 

सार्थक आर्थिक परिणाम दिखने लगेगा 

बैंकों में लंबी कतारें और खाली एटीएम डराने लगे हैं। लेकिन, लालू प्रसाद यादव भी सरकार के बड़ी नोटों को बंद करके नई नोटों को लाने के फैसले के विरोध में नहीं हैं। ये सबसे बड़ी खबर है। और ये खबर इसके बाद बनी जब नीतीश कुमार के बीजेपी से नजदीकी बनाने की खबरों के बीच नीतीश ने लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की। इसी से समझ में आ जाता है कि देश के जनमानस को समझने वाला कोई भी नेता या राजनीतिक दल इस फैसले का विरोध करने का साहस क्यों नहीं जुटा पा रहा है... 
HARSHVARDHAN TRIPATHI 
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हम घरेलु औरतें .... 

कुछ दिनों से चौबीसों घंटे घना कोहरा छाया हुआ है , भरी दुपहरी भी सूर्य देवता के दर्शन तो दूर , एक झलक भी नसीब नहीं होती। बावज़ूद इसके , हम घरेलू औरते ( घरेलू से मेरा आशय सिर्फ उन औरतों से है जो किसी कामकाज के सिलसिले में घर से बाहर नहीं जातीं ).. हर आधा घंटे पर आसमान में सूरज ढूंढने की कोशिश ज़रूर करतीं , .जैसे सारे काम सूरज को ही निबटाने हों... 
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कल रात चाँद से कुछ गुफ़्तुगू की... 

तुम्हारे रूठे होने की शिकायत की 
तो हँस के चाँद ने कहा....  
मिला है तुझे दोस्त तेरे ही जैसा 
जिसे रूठने मनाने का खेल बखूबी आता है... 
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किसी ग़ाफ़िल का यूँ जगना बहुत है 

भले दिन रात हरचाता बहुत हैमगर मुझको तो वह प्यारा बहुत है
वो हँसता है बहुत पर बाद उसकेख़ुदा जाने क्यूँ पछताता बहुत है... 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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४० पार 

ईने के सामने खड़े हो 
आज खुद से बात करने की कोशिश करी ....... 
जब गौर से देखा तो 
समझ ही नहीं आया की ये मैं हूँ !! 
न पहले सा रंग रूप न निर्छल हंसी 
न वो अल्हड़पन न जिद्द न वो बचकानी बातें 
न कुछ कर गुजरने की चाह 
बस एक उदासी ओढ़े 
यथावत अपने काम हो अंजाम देती एक स्त्री , 
ये मैं तो हरगिज़ नहीं फिर ये है कौन !! 
ये है ४० पार की वो औरत 
जो उम्र के इस पड़ाव पर 
अपना वज़ूद तलाश रही है। 
प्यार पर 
Rewa tibrewal  

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नारायण नारायण 

बोलते हुए नारद मुनि जी 
अपने प्रभु श्री हरि को खोजते खोजते 
पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर
 भू लोक में आ विराजे , 
लेकिन उन्हें श्री हरि कहीं भी दिखाई नही दिए , 
”पता नहीं प्रभु कहाँ चले गए , 
अंतर्ध्यान हो के कहाँ गायब हो गए मेरे प्रभु 
”यह सोच सोच कर बेचारे नारद मुनि जी परेशान... 
Ocean of Bliss पर 
Rekha Joshi 
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विश्व मंच पर उदित हुए 

अनुभूतियों का कोमल प्रभात संदेशा देती है  
विहान का कोलाहल में थकी दोपहर 
द्योतक है दिवस् के अवसान का. 
संवेदना कभी नहीं मरती 
अत्याचारी उन्हें दबाते हैं 
दुर्भावों के कांटे बो कर 
पल-पल उसे चुभाते हैं... 
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खरीदने और बेचने का अंतर 

जितना ज्यादा होगा मुनाफा होगा 

काँटों की सेज पर गुल बिखर ही जाएँ तो वो दागदार होंगे  
जिसने किस्मत में मांगा ही हो बेईमानी कैसे ईमानदार होंगे... 
udaya veer singh 
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ये लोग पागल हो गए हैं.....  

नासिर काज़मी 

रे से मिलने को बेकल हो गए मगर ये लोग पागल हो गए हैं 
बहारें ले के आए थे जहां तुम वो घर सुनसान जंगल हो गए हैं ... 
yashoda Agrawal  
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8 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा सजा आज का चर्चामंच |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |

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  2. बढ़िया चर्चा प्रस्तुतिकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. रूपचन्द्र शास्त्री जी नमस्कार,

    हमेशा की तरह इस बार भी आप ने मेरे पोस्ट को इस चर्चा मंच पर जगह दी है इसके लिए आप का बहुत बहुत शुक्रिया !

    हम आप के इस चर्चा मंच पर उपनी उपस्तिथि दर्ज नहीं करा पाते हैं इसका हमें बहुत अफ़सोस है और इसके लिए हम मुआफी चाहेंगे !
    बिना किसी स्वार्थ के आप पिछले कई सालों से मेरे पोस्ट को अपनी इस चर्चा मंच पर लगातार जगह देते आ रहें है इसके लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद !
    आगे से हमारी कोशिश रहेगी की हम हमेशा आप के इस चर्चा मंच पर आते रहें !



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