मित्रों
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
"दुनियादारी जाम हो गई"
नीलगगन पर कुहरा छाया, दोपहरी में शाम हो गई।
शीतलता के कारण सारी, दुनियादारी जाम हो गई।।
गैस जलानेवाली ग़ायब, लकड़ी गायब बाज़ारों से,
कैसे जलें अलाव? यही तो पूछ रहे हैं सरकारों से,
जीवन को ढोनेवाली अब, काया भी नाकाम हो गई।
शीतलता के कारण सारी, दुनियादारी जाम हो गई...
गैस जलानेवाली ग़ायब, लकड़ी गायब बाज़ारों से,
कैसे जलें अलाव? यही तो पूछ रहे हैं सरकारों से,
जीवन को ढोनेवाली अब, काया भी नाकाम हो गई।
शीतलता के कारण सारी, दुनियादारी जाम हो गई...
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कब अच्छा लगता है
घर आंगन छोड के जाना, कब अच्छा लगता हैआँखों से आँसू छलकाना, कब अच्छा लगता है
रोटी की मजबूरी, अक्सर छुडवा देती अपना देशपराये देश में व्यापार फैलाना कब अच्छा लगता है...
रोटी की मजबूरी, अक्सर छुडवा देती अपना देशपराये देश में व्यापार फैलाना कब अच्छा लगता है...
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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उस तीर का स्वागत है
जिस पे नाम मेरा है लिक्खा
कभी कातिल, कभी महबूब,
कभी मसीहा लिक्खा।
हमने उनको बेखुदी में
खुद न जाने क्या लिक्खा।। ...
aakarshan giri
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वक़्त कितना क्या पता रिश्तों को सुलझाने तो दो
ये अँधेरा भी छंटेगा धूप को आने तो दो
मुट्ठियों में आज खुशियाँ भर के घर लाने तो दो
खुद को हल्का कर सकोगे ज़िन्दगी के बोझ से
दर्द अपना आँसुओं के संग बह जाने तो दो...
Digamber Naswa
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दानवराज
इलूमिनाती (लैटिन इलूमिनातुस का बहुवचन) ‘प्रबुद्ध’ एक ऐसा नाम है जो कई समूहों, दोनों ऐतिहासिक और आधुनिक और दोनों वास्तविक और काल्पनिक को संदर्भित करता है । ऐतिहासिक तौर पर यह विशेष रूप से बवारियन इलूमिनाती को संदर्भित करता हैं जो 1 मई 1776 को स्थापित की गई एक प्रबुद्धता-युग गुप्त समिति है...
rajeev kumar Kulshrestha
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लाल आँखें दिखाया नहीं करो
प्राण शर्मा
बेहाल खुद को रोज़ बताया नहीं करो
खुश हो तो दुःख की बात सुनाया नहीं करो...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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Bhavishy भविष्य
रात की चादर में
लिपटा हैचाँद -
तारों से बातें करता है
सितारों से सीखता है गिनतियाँ...
Reena Maurya
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जूता भी मस्त चीज बनायी है इंसानों ने...
मुझे लगता है इंसानी शरीर का
सबसे मज़बूत हिस्सा पैर ही होता है
लेकिन सबसे ज्यादा सुरक्षा भी
पैरों के लिए ही ज़रूरी...
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डॉ जेन्नी शबनम
1
जीवन ये कहता है
काहे का झगड़ा
जग में क्या रहता है।
2
तुम कहते हो ऐसे
प्रेम नहीं मुझको
फिर साथ रही कैसे...
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एक ग़ज़ल
कमजोर जो हैं तुम उन्हें बिलकुल सताया ना करो
खेलो हँसो तुम तो किसी को भी रुलाया ना करो...
कालीपद "प्रसाद"
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वीर मरुस्थल को सुंदर उद्यान बनाने की सोचो
वीर मरुस्थल को सुंदर उद्यान बनाने की सोचो
रुई से पुतले आग नहीं परिधान बनाने की सोचो...
udaya veer singh
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क्यों स्वहित साधन को ही है सब बाध्य
जो हैं अपने आस-पास सदा दिन-रात,
क्यों समझ न आये उनके दिल की बात।
वदन पर उजले चोले रख मन मटमैले,
क्यों रचते उलझन के ताने हौले-हौले।।1...
स्व रचना पर
Girijashankar Tiwari
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का चयन
आभारी हूँ
सादर
बढ़िया चर्चा ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ..आभार!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओं का चयन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा ... आभार मुझे शामिल करने का ...
जवाब देंहटाएं"ये अँधेरा भी छंटेगा धूप को आने तो दो
जवाब देंहटाएंमुट्ठियों में आज खुशियाँ भर के घर लाने तो दो"
बहुत खूब , बहुत अच्छी प्रस्तुति !
बहुत सुंदर प्रस्तुति..आभार! charichugli.blogspot.com को शामिल करने के लिए...
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