मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
दोहागीत
पाँच दिसम्बर
वैवाहिक जीवन के तैंतालीस वर्ष पूर्ण
मृग के जैसी चाल अब, बनी बैल की चाल।
धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल।।
--
वैवाहिक जीवन हुआ, अब तैंतालिस वर्ष।
जीवन के संग्राम में, किया बहुत संघर्ष।।
पात्र देख कर शिष्य को, ज्ञानी देता ज्ञान।
श्रम-सेवा परमार्थ से, मिलता जग में मान।।
जो है सरल सुभाव का, वो ही है खुशहाल।
धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल...
उच्चारण पर
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
--
आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा
प्रकृति प्रद्दत मौसमों से बचने के उपाय खोज लिये गये हैं. सर्दी में स्वेटर, कंबल, अलाव, हीटर तो गर्मी में पंखा, कूलर ,एसी, पहाड़ों की सैर. वहीं बरसात में रेन कोट और छतरी. सब सक्षमताओं का कमाल है कि आप कितना बच पाते हैं और मात्र बचना ही नहीं, सक्षमतायें तो इन मौसमों का आनन्द दिलवा देती है. अमीर एवं सक्षम इसी आनन्द को उठाते उठाते कभी कभी सर्दी खा भी जाये या चन्द बारिश की बूँदों में भीग भी जायें, तो भी यह सब सक्षमताओं के चलते क्षणिक ही होता है. ..
--
हर तरफ फकीर हैं
फकीर ही फकीर
--
दौड़ते रहें,
स्वस्थ्य रहें,
सुखी रहें
कल Neeraj Jat के फेसबुक स्टेटस पर आदरणीय Satish Saxena जी ने बताया था कि कैसे दौड़ना शुरू करना है, वॉक रन वॉक रन और कौन कौन से दिन करना है, शनिवार या रविवार को 8 किमी या उससे अधिक करना सुझाया था, कल बरसात भी थी, ठंड भी थी, और रजाई भी थी...
--
लेखकीय संतुलन
जब कभी लगता है कि लेखन में आनन्द नहीं आ रहा है तो लेखन कम हो जाता है। लेखन अपने आप में एक स्वयंसिद्ध प्रक्रिया नहीं है। इसके कई कारक और प्रभाव होते हैं। क्यों लिखा जाये, कैसे लिखा जाये और क्या लिखा जाये, ये मूल प्रश्न आठ वर्ष के ब्लॉग लेखन के बाद आज भी निर्लज्ज प्रस्तुत हो जाते हैं। लेखन के प्रभाव बिन्दु पठन के कारक होते हैं। क्यों पढ़ा जाये, क्या पढ़ा जाये, इस पर निर्भर करता है कि
क्या लिखा जाये...
Praveen Pandey
--
--
आज जो ये रविवार है
सोचता हूँ..... बहुत हौले हौले बीते
आज जो ये रविवार है .......
आज जो ये रविवार है .......
मुआँ ज़ल्द बीता जाने की
मुआँ ज़ल्द बीता जाने की
कसम खाके आया ...... ओह लो
उतरने भी लगा
कसम खाके आया ...... ओह लो
उतरने भी लगा
हमसे ज़्यादा जल्दी क्यों है इसे...
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
--
--
नाक कटवाना -
स्वर्ग मिलेगा
पीएम ने रैली में पूछा कि गरीबों के हक के लिए लड़ना क्या गुनाह है? मैं आपके लिए लड़ रहा हूं। मेरा क्या कर लेंगे ये लोग? मैं फकीर हूं, झोला लेकर निकल लूंगा। अगर गरीब के हाथ में ताकत आ जाए तो गरीबी कल खत्म हो जाएगी। इरादे नेक हैं, तो देश कुछ भी सहने को तैयार को जाता है, ये मैंने महसूस किया है। आज सवा सौ करोड़ के देश ने जिम्मेदारी को अपने कंधे पर ले लिया है। देश भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहता है।
दस लाख रुपये का सूट पहनने वाला सत्तर करोड़ रुपये के काजू खाने वाला किस तरह से अपने मुंह से अपने को फ़कीर घोषित कर रहा है...
दस लाख रुपये का सूट पहनने वाला सत्तर करोड़ रुपये के काजू खाने वाला किस तरह से अपने मुंह से अपने को फ़कीर घोषित कर रहा है...
Randhir Singh Suman
--
बेटी ही बेटा है..
शबनम शर्मा
छुट्टियों के बाद स्कूल में मेरा पहला दिन था। नीना को सामने से आता देख मुझे अचम्भा सा हुआ। वह स्कूल की पी.टी. अध्यापिका है। पूरा दिन चुस्त-दुरुस्त, मुस्काती, दहाड़ती, हल्के-हल्के कदमों से दौड़ती वह कभी भी स्कूल में देखी जा सकती है। आज वह, वो नीना नहीं कुछ बदली सी थी। उसने अपने सिर के सारे बाल मुंडवा दिये थे। काली शर्ट व पैंट पहने कुछ उदास-सी लग रही थी...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
--
694
श्वेता राय
--
थोड़ी चिंता खाद की भी कीजिए
अपने देश की खेती-बाड़ी में जो बढ़ोत्तरी हुई है, जो हरित क्रांति हुई है उसमें बड़ा योगदान रासायनिक उर्वरकों का है। हम लाख कहें कि हमें अपने खेतों में रासायनकि खाद कम डालने चाहिए-क्योंकि इसके दुष्परिणाम हमें मिलने लगे हैं—फिर भी, पिछले पचास साल में हमारी उत्पादकता को बढ़ाने में इनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन, अभी भी प्रमुख फसलों के प्रति हेक्टेयर उपज में हम अपने पड़ोसियों से काफी पीछे हैं...
गुस्ताख़ पर
Manjit Thakur
--
सर्दी की चिठ्ठिया....
काँपती उँगलियों से,
थरथराते शब्दो को लिख रही हूँ....
धुंध में तुम्हे ढूंढती
अपनी आँखों की बेचैनियां,
इस बार राजाई में छुप कर,
तुम्हारी पढूंगी,और तुम्हे लिखूंगी,
मैं भी तुम्हे सर्दी की चिठ्ठियां...
'आहुति' पर
Sushma Verma
--
नोटबंदी की मुश्किल
और मोदी सरकार के खिलाफ खड़ी
बड़ी आफत की पड़ताल
8 नवंबर को 8 बजे जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को अब तक के सबसे बड़े फैसले की जानकारी दी, तो देश के हर हिस्से में हाहाकार मच गया। देश में काला धन रखने वालों, रिश्वतखोरों के लिए ये भूकंप आने जैसा था। *दृष्य 2-* दिल्ली के चांदनी चौक, करोलबाग इलाके में गहनों की दुकान पर रात आठ बजे आए भूकंप का असर अगली सुबह तक दिखता रहा। नोटों को बोरों में और बिस्तर के नीचे दबाकर रखकर सोने वालों की बड़ी-बड़ी कारें जल्दी से जल्दी सोना खरीदकर अपना पुराना काला धन पीले सोने की शक्ल में सफेद कर लेना चाहती थीं। और ये सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, देश के लगभग हर शहर में हुआ...
HARSHVARDHAN TRIPATHI
--
छोटी मछली
बड़ी छोटी मछली अब मछलियां बगुले के झांसे में नहीं आने वाली थी। वह उसकी जात पहचान गई थी। ‘हूँ! खड़ा है आंख बंद किये एक टांग पर खड़ा रह बच्चू तू क्या, समझता है कि हम झांसे में आ जायेंगे...
Shashi Goyal पर
shashi goyal
बेहतरीन कवरेज
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंविवाह वर्षगाँठ की बधाइयाँ
आभार
सादर
विवाह की 44वीं वर्षगाँठ पर ढेरों शुभकामनाएं आदरणीय शास्त्री जी। आज की सुन्दर चर्चा के शीर्षक पर 'उलूक' के सूत्र को स्थान देने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसभी प्रस्तुतियाँ उम्दा हैं... बधाई।
जवाब देंहटाएं