मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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साधना समृद्ध हो गई है -
कागज पर लिख दी गंगाकविता शुद्ध हो गई है
-कागज पर लिखा हिमालयसरिता अवरुद्ध हो गई है...
udaya veer singh
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जीएसटी:
देशप्रेमियों को चिन्ता करने की जरुरत नहीं
लगान भूमि पर सरकार द्वारा लगाया गया कर है. इस बात से अनजान मात्र आमजन नहीं, बल्कि सरकार पक्ष के नेता भी अपनी बात और पक्ष साबित करने के लिए जी एस टी को लगान लगान पुकारे जा रहे हैं.
मित्र कहने लगे कि सरकार बिल्कुल पुराने राजे महाराजे वाले समय की तरह हरकत कर रही है, आमजन की सुन ही नहीं रही और मनमानी करते हुए रात बारह बजे घंटा बजा कर प्रजा को यह बता रही है कि अब हम आ रहे हैं बैण्ड बजाने तुम्हारी.
सरकारी पक्ष के नेता, वो भले जी एस टी का फुल फार्म न जाने मगर इतना बयान देने में तो बिल्कुल नहीं चूक रहे हैं कि सरकार तो चलती ही लगान से है..लगान न लेंगे तो देश चलावेंगे कैसे...
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फेसबुकियों और ब्लागरों पर
GST लगाने की सिफारिश
एक सप्ताह से घरवाली ने ग्रोसरी की लिस्ट पकड़ा रखी थी और हम रोज टालामटुली कर रहे थे काहे से की रमलू भिया हमको बता रहे थे अब सब टेक्स खत्म हो रहे हैं सिर्फ एक ही टेक्स GST लगेगा तो सामान घण्टा बजने के बाद 1 तारीख को लेना तब बहुत सस्ता मिलेगा। अब रमलू भिया कहें और हम नही माने ये तो हो ही नही सकता क्योंकि हमारी पूंछ रमलू भिया ने दबा रखी है। अब आप पूछेंगे कौन सी पूंछ? तो आप नही पूछेंगे तब भी हमारा तो फर्ज बनता है ना कि आपको बताएं। अब बोलिये बताना चईये की नई चईये...
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संवेदना की भाषा
और निरक्षरता की पीड़ा
यह पोस्ट ब्लॉग की पहली पोस्ट है .
लेपटॉप में खराबी आ गई है .
नई पोस्ट अभी संभव नहीं
लेकिन चार माह से निष्क्रिय पड़े
ब्लॉग को जारी रखने इसे दिया है...
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
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फैशन बना रखा है |
हिन्दी_ब्लॉगिंग
जनता महंगाई से त्रस्त हो गयी है वैसे जनता को आदत होती है किसी न किसी प्रकार से त्रस्त रहने की | जीने के लिए त्रस्त रहना बहुत ज़रूरी होता है वरना पता नहीं चल पाता कि ज़िंदगी कट भी रही है या नहीं | बहुत दिनों बाद मुद्दा मिला है वरना बिजली पानी जैसी निम्न स्तरीय समस्याओं से आखिर कब तक त्रस्त रहा जा सकता है | जनता राजा के पास फ़रियाद लेकर गयी है, '' सरकार ! महंगाई बहुत बढ़ गयी है | दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पा रही है | जीना मुश्किल हो गया है | क़र्ज़ पर क़र्ज़ चढ़ता जा रहा है | बैंक वाले जीना हराम किये दे रहे हैं | आत्महत्या के अलावा कुछ नहीं सूझता ''| ''क्या कहते हो ...
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शब्द-निष्ठा सम्मान 2017 के अंतर्गत
मेरी लघुकथा
'रस्म'
चौवालिसवें (44) स्थान पर
Anita Lalit (अनिता ललित )
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बुजुर्ग हमारे इतिहास की किताब हैं
माँ हमारे बारे में हमें छोटी-छोटी कहानियां सुनाती थी, अब वही कहानियाँ हमारे अन्दर घुलमिल गयी हैं। हमारा इतिहास बन गयी हैं। जब वे सुनाती थी कि गाँव में तीन कोस पैदल जाकर पानी लाना होता था तब उस युग का इतिहास हमारे सामने होता था। माँ अंग्रेजों की बात नहीं करती थी, बस अपने परिवार के बारे में बताती थी और हम उसी ज्ञान को पाकर बड़े हुए हैं। हम जब भी उन प्रसंगों को याद करते हैं तो वे बातें इतिहास बनकर हमारे सामने खड़ी हो जाती हैं...
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बेटी,बेटा, बहू
(दोहावली)
किया बुढ़ापे के लिये, सुत लाठी तैयार।
बहू उसे लेकर गई, बूढ़े ताकें द्वार।।
बहू किसी की है सुता, भूले क्यों संसार।
गेह पराये आ गई ,करो उसे स्वीकार...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार..
नियमित होने की शुभकामनाएँ
हैप्पी ब्लॉगिंग
सादर
बहुत सुन्दर चर्चा। चर्चा को रोज देखने की आदत हो गयी है। आभार 'उलूक' के सूत्र को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स के लिये बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंमान. शास्त्री जी ! मेरी रचना " मुक्त-ग़ज़ल : 235 -जब तक कि मैं न आऊँ " को सम्मिलित करने हेतु अनेक धन्यवाद !
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