पसारे हाथ जाता वो नहीं सुख-शान्ति पाया है
रविकर
पतन होता रहा फिर भी बहुत पैसा कमाया है । किया नित धर्म की निन्दा, तभी लाखों जुटाया है। सहा अपमान धन खातिर, अहित करता हजारों का पसारे हाथ जाता वो नहीं सुख-शान्ति पाया है।। |
क्या सही क्या गलत ...
खराब घुटनों के साथ
रोज़ चलते रहना
ज़िंदगी की जद्दोजहद नहीं
दर्द है उम्र भर का ...
एक ऐसा सफ़र
जहाँ मरना होता है रोज़ ज़िंदगी को ...
ऐसे में ...
सही बताना क्या में सही हूँ ...
स्वप्न मेरे ...पर Digamber Naswa
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घनन घनन घन गाजे घन सन सन
सनन समीर छनन छनन छन
पायलें कल कल नदिया नीर
कुहू कुहू कुक कोयली पिहू पिहू मित मोर
हर रही चित चंचल को सुखद सुहानी भोर
अंबर तक उड़ता आँचल लहरे
मन के तीर. घनन घनन घन....
कविता मंच पर KL SWAMI
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गीत"सावन की हरियाली तीज"(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चाँद दिखाई दिया दूज का,
फिर से रात हुई उजियाली।
हरी घास का बिछा गलीचा,
तीज आ गई है हरियाली...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंहरियाली तीज की शुभ कामनाएँ
उत्कृष्ट रचनाएँ
आभार
सादर
जवाब देंहटाएंहरियाली तीज की शुभ कामनाएँ
उत्कृष्ट लिंक
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आभार आदरणीय रविकर जी।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लींक्स, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सुन्दर लिंक्स ........सुन्दर चर्चा|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति रविकर जी।
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