मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मेरी सतरंगी कल्पनायें
मेरी सतरंगी कल्पनायें उड़ती गगन में
मेरी सतरंगी कल्पनायें झूलती इंद्रधनुष पे
बहती शीतल पवन सी
ठिठकती कभी पेड़ों के झुरमुट पे...
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निशान रह गए थे...
उस रात मेरी हथेली पर,
तुम अपनी उँगलियों से जाने क्या ढूंढ रहे थे,
शायद कुछ लिख रहे थे...
शायद अपना नाम लिख कर मिटा दिया था,
या मेरा नाम लिख कर मिटा रहे थे..
तुम्हे लगा मैं सो गई हूँ...
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अहा! हिन्दी_ब्लॉगिंग
टिप्पणी न आना कोई विशेष कारण नहीं लगता ब्लॉगिंग कम होने का,वो तो आज भी उतनी ही आ रही होंगी ... हमारा आपसी संपर्क टूटना एक महत्वपूर्ण कारण था ,हमारीवाणी, चिट्ठाजगत से हमें बाकी ब्लॉगों तक पहुंचने में सुविधा होती थी,हालांकि मैं कई नए ब्लॉगों तक पहुँची, टिप्पणियों से होकर भी...मेरी ब्लॉगिंग में कम पोस्ट का आना अति व्यस्तता के बाद भी जारी था...
मेरे मन की पर
अर्चना चावजी Archana Chaoji
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देर रात तलक
न दिमाग सोता है
न कलम
रख देता हूँ रहन
अपने चंचल सपन
तुम्हारे चंचल मन के पास
और फिर सोने की कवायद में
करवटें बदलता हूँ
देर रात तलक
न दिमाग सोता है
न कलम...
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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वाहनों में हेडलाईट हमेशा ऑन रहेंगी
सरकार के निर्णय के अनुसार सभी वाहनों में अब हेडलाईट हमेशा ही ऑन रहेंगी. इन वाहनों में हेडलाइट को ऑफ करने का स्विच हटा दिया गया है. सरकार ने ये निर्णय भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं को लेकर किया है. लेकिन क्या हर समय जलती रहने वाली ये हेडलाइट सामने से आने वाले वाहन चालक की नजर पर विजिबिल्टी पर बुरा प्रभाव नहीं डालेंगी. नये वाहनों में आने वाली हेडलाइट दिन में भी चकाचौध रोशनी देती हैं जिससे कई बार मैंने खुद नजरों में एकाएक चौंध महसूस की है. ये व्यवस्था उन जगहों के लिए तो सही हो सकती है जहाँ लगातार कुहरा पड़ता हो, लेकिन हमारे जैसे भौगोलिक क्षेत्र के लिए ये व्यवस्था उचित नहीं लगती...
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दूध बहाया
वेचारिक मतभेद मानवीय मस्तिष्क की एक प्रक्रिया है ये मतभेद आवश्यक नहीं दूसरों के हित की सोचने के लिए हों हर जगह अपना स्वार्थ सिद्ध ही करना प्रवर्ती है बात राजनीति की हो तब तो और भी स्वार्थ सर उठानेलागते हैं जनता के हित की बात करके नेता अपना उल्लू सिद्ध करते हैं जनता के हित अहित से उन्हे कोई मतलब नहीं होता बस विरोध करके सामने वाले को परेशां करना ही मंतव्य होता है यह क्या है क्या सोच है विरोध प्रगट करने के लिए दूध केन के केन नदी मैं बहा दिए यह विरोध नहीं अन्न का अपमान है उन बच्चों से पूछो जिन्हें दूध देखने को नसीब नहीं यह घोर अपराध मानना चाहिए...
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लल्लन के लाल ,बाल गोपाला,
यशोदा का नटखट नंदलाला |
पूरे मथुरा में बजाता मुरली,
बंसी से आवाज़ निकलती सुरीली |
मन को मोह लेने वाला...
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प्रिये अब तुम दूर न जाना
आँखें पथ है निहार *रही*
वो दिन न रहा वो रात न रही
उलझी कब से है लटें
सारी सुलझाओ...
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मैं उसकी बाते सुन सुन कर थक चुका था
रोज की वही किट किट...
हे भगवान अब तुम ही मेरी कुछ मदद करो
सारी गलती तो मेरी ही है
मै ही उसके मासूम चेहरे ...
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सेमिनार
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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चल अकेला
साथ कब किसी का होता है
सब अकेले ही चलते हैं...
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बहुत कुछ है आज की चर्चा में । सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा पठनीय
आभार
सादर
सुप्रभात । हमेशा की तरह बेहतरीन । सादर बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंको से सजी चर्चा......बधाई|
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान के लिए आभार|
http://hindikavitamanch.blogspot.in/2017/07/time.html
बेहतरीन लिंक्स, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपठनीय लिंक्स....आभार
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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