मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मोह से निर्मोह की ओर
मोह से ही तो उपजता है निर्मोह
मोह की अधिकता लाती है
जीवन में क्लिष्टता और सोच हो जाती है कुंद
मोह के दरवाज़े होने लगते हैं बंद...
संगीता स्वरुप ( गीत )
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मैं इस बात से आहत हूँ
संजयसिन्हा की एक कहानी पर बात करते हैं। वे लिखते हैं कि मैंने एक बगीचा लगाया, पत्नी बांस के पौधों को पास-पास रखने के लिये कहती है और बताती है कि पास रखने से पौधा सूखता नहीं। वे लिखते हैं कि मुझे आश्चर्य होता है कि क्या ऐसा भी होता है? उनकी कहानियों में माँ प्रधान हैं, हमारे देश में माँ ही प्रधान है और संस्कृति के संरक्षण की जब बात आती है तो आज भी स्त्री की तरफ ही देश देखता है। पौधों की नजदीकियों से लेकर इंसानों की नजदीकियों की सम्भाल हमारे देश में अधिक है। इसलिये जब लेखक अपने दायरे में सत्य को देखता है और सत्य को ही लिखता है तब उसकी कहानी अंधेरे में...
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अनाम रिश्ते
रिश्ते कुछ अनाम अभी बाक़ी हैं
काँटो में भी रह गुलाब की तरह
खिलने की चाह अभी बाकी हैं ...
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL
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यादें ...
बस यादें
यादें यादें यादें ...
क्या आना बंद होंगी ...
काश की रूठ जाएँ यादें ...
पर लगता तो नहीं
और साँसों तक तो बिलकुल भी नहीं ...
क्यों वक़्त जाया करना ...
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पहन लूँ मुंदरी तेरे नाम की
उलझनों में उलझी इक डोर हूँ मैं या तुम नही जानती मगर जिस राह पर चली वहीं गयी छली अब किस ओर करूँ प्रयाण जो मुझे मिले मेरा प्रमाण अखरता है अक्सर अक्स सिमटा सा , बेढब सा बायस नहीं अब कोई जो पहन लूँ मुंदरी तेरे नाम की और हो जाऊँ प्रेम दीवानी...
उम्दा लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों से सजी चर्चा,
जवाब देंहटाएंआभार मेरी दो रचनाओं मूर्ख राधेश्याम और President Voating को स्थान देने के लिए|
https://meremankee.blogspot.com/2017/07/president-voting.html
https://kahaniyadilse.blogspot.com/2017/07/foolish-boy.html
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत लिंक्स से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !
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