मित्रों!
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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छठी इंद्री
जब भी जुलाई का महीना आता है तारीखें सामने आती है और उनसे जुडी घटनाएं भी ..सबसे पहले सुनिल का जन्मदिन 13 को फिर 20 को पल्लवी का ....कितना सुखद संयोग बेटी और पिता का जन्मदिन जुलाई में और माँ और बेटे का अक्तूबर में.......
खुशी के साथ ही ये महीना दुःख भी ले आता है .....सब कुछ आँखों के सामने आ जाता है बिलकुल किसी फ़िल्म की कहानी की तरह ......
बाकि सब तो समय के साथ स्वीकार कर लिया ....लेकिन एक बात मुझे आज भी अचंभित करती है.....ये तब की बात है 1993 के जुलाई माह से कुछ पहले की शायद 1 महीने पहले से कई बार एक सपना आता जिसमें मुझे लगता की मैं नीचे की और सीढियाँ उतर रही हूँ..सीढ़ियों पर पानी बहते जा रहा है,फिसलन है,बहुत भीड़ है बहुत लोग धक्का देते हुए उतर रहे हैं....मेरे साथ बच्चे हैं मैं उनको सम्भालते हुए उतरती जा रही हूँ ..और बहुत नीचे एक मंदिर है जहाँ दर्शन होते है ...सुनिल पर गुस्सा भी करती जाती हूँ कि आप तो नीचे नहीं उतरे ऊपर से हाथ जोड़ दिए मुझे दोनों बच्चों को लेकर उतरना कितना कठिन हो रहा है ......भगवान कौनसे हैं ये दिखने से पहले सपना टूट जाता और मैं याद करती तो लगता बड़वानी के गणेश मंदिर जैसा जो कुँए के पास था....और आधे कुँए में उतरकर दर्शन करते थे ....सोचती ये तो वही मंदिर है ...
खुशी के साथ ही ये महीना दुःख भी ले आता है .....सब कुछ आँखों के सामने आ जाता है बिलकुल किसी फ़िल्म की कहानी की तरह ......
बाकि सब तो समय के साथ स्वीकार कर लिया ....लेकिन एक बात मुझे आज भी अचंभित करती है.....ये तब की बात है 1993 के जुलाई माह से कुछ पहले की शायद 1 महीने पहले से कई बार एक सपना आता जिसमें मुझे लगता की मैं नीचे की और सीढियाँ उतर रही हूँ..सीढ़ियों पर पानी बहते जा रहा है,फिसलन है,बहुत भीड़ है बहुत लोग धक्का देते हुए उतर रहे हैं....मेरे साथ बच्चे हैं मैं उनको सम्भालते हुए उतरती जा रही हूँ ..और बहुत नीचे एक मंदिर है जहाँ दर्शन होते है ...सुनिल पर गुस्सा भी करती जाती हूँ कि आप तो नीचे नहीं उतरे ऊपर से हाथ जोड़ दिए मुझे दोनों बच्चों को लेकर उतरना कितना कठिन हो रहा है ......भगवान कौनसे हैं ये दिखने से पहले सपना टूट जाता और मैं याद करती तो लगता बड़वानी के गणेश मंदिर जैसा जो कुँए के पास था....और आधे कुँए में उतरकर दर्शन करते थे ....सोचती ये तो वही मंदिर है ...
मेरे मन की पर
अर्चना चावजी Archana Chaoji
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हाउसवाइफ़
प्रज्ञा को रिसेप्शन हॉल में बिठाकर नितिन न जाने किधर गुम हो गए. प्रज्ञा उस डेकोरेटेड हॉल और उसमें विचरती रूपसियों को देखकर चमत्कृत-सी हो रही थी. कहां तो आज अरसे बाद वह थोड़े ढंग से तैयार हुई थी. नीली शिफ़ॉन साड़ी के साथ मैचिंग एक्सेसरीज़ में ख़ुद को दर्पण में देख शरमा-सी गई थी प्रज्ञा...
राज भाटिय़ा -
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अब तो दर्शन दे दे
धोबियाsss धुल दे मोरी चदरिया
मैं ना उतारूँ ना एक जनम दूँ
खड़े-खड़े मोरी धुल दे चदरिया!
आया तेरे घाट बड़ी आस लगा के
जाना दरश को शिव की नगरिया
धुल दे चदरिया...
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रुक जाना...
चलना ही जीवन है...
बहुत सुना है इसे माना भी सच भी है कि
रुके हुए तो जल भी सड़ जाता है... !
पर कुछ ऐसे दौर होते हैं...
थका-थका सा कुछ
ऐसा टूटा हुआ सा मन होता है... कि
रुक जाने के सिवा
कोई विकल्प नहीं होता...
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जाम खाली न हुआ और वो भर जाता है
है लगे आज रुकेगा वो मगर जाता है
क्या पता है के कहाँ सुब्ह क़मर जाता है...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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एक लघु चिन्तन:--
देश हित में
"देश हित में" जिन्हें घोटाला करना है
वो घोटाला करेंगे---
जिन्हें लार टपकाना है वो लार टपकायेगें---
जिन्हें विरोध करना है वो विरोध करेंगे---
सब अपना अपना काम करेगे ...
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----- || दोहा-एकादश || -----
सब जगज जन भगवन कृत इहँ कन कन उपजोगि |
जो कहँ ए केहि जोग नहि सो तो मानसि रोगि || ११ ||...
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चुप रह, बोल मत
चुप रह, बोल मत
जुबाँ अपनी खोल मत
होनी को झेल ले बात
ज्यादा तोल मत...
हालात आजकल पर
प्रवेश कुमार सिंह
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ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे वो बरसात के दिन |
बरसात का मज़ा बच्चों से ज़्यादा कौन उठा सकता है भला ? साल भर स्कूल न आने वाले बच्चे बरसात में स्कूल अवश्य आते हैं | उनके स्कूल आने से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वे पढ़ने के लिए आए हैं | वे आए हैं बारिश में भीगने के लिए | वे आए हैं एक दुसरे को भिगाने के लिए, बारिश में धक्का देने, एक दूसरे पर गिर पड़ने के लिए | वे आए हैं नंगे पैर पानी में छप - छप करने | दौड़ने, भागने और फिसलने के लिए...
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उन्माद की आँधी
क्यों चली
सोच तो है पर संकोच क्यों है
वीर कातिल भी निर्दोष क्यों है -
उन्माद की आँधी क्यों चली
मासूम दिलों में असंतोष क्यों है -
इल्म का दर भी कातिलाना है
मुर्दा भी सरफरोश क्यों है-
जो वतन का है न इंसानियत का
मरने पर अफ़सोस क्यों है
udaya veer singh
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अपनी अपनी लकीरें
तुझे अपनी खींचनी हैं लकीरेंमुझे अपनी खींचने दे
मैं भी आता हूँ देखने तेरी लकीरें
तू भी बिना नागा आता रहा है...
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भारतीय सौभाग्य के लिए
राहू (राहुल नहीं शनिचर की तरह वक्र चलने वाला राहु )
अपनी वक्र चाल से
चीनी दूतावास जा पहुंचा
Virendra Kumar Sharma
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प्रेमहीन स्त्री
स्वार्थ की पराकाष्ठा हो तुम
जिंदगी की जंगल में
विष की बेल हो तुम
जिस से लिपटी
उसे अपना पूरा जहर दिया
न जीने दिया न मरने दिया...
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अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर
कुछ लोगों को मार डालते हैं
तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता
जिस कश्मीर में मानवाधिकार के नाम पर ज्यूडिशियली खुद संज्ञान ले कर एक पत्थरबाज आतंकी को दस लाख का मुआवजा देने की सरकार को सिफ़ारिश करती हो उस कश्मीर में अगर अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता । जिस देश में गल्फ फंडिंग और क्रिश्चियन मिशनरी फंडिंग पर पल रहे एन जी ओ बात बेबात देश को गृह युद्ध में धकेलने को लगातार युद्धरत हों तो अमरनाथ...
सरोकारनामा पर Dayanand Pandey
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फेसबुक..नशा..!
कल भी- चुपके से आयी थी वो मेरी पोस्ट पर
और लाइक दबाकर चली गयी
कुछ भी नहीं बोली....
मैंने देखा था अपनी पोस्ट पर
वो ब्लू एक्टिव लाइक,
महसूस भी किया था अपने चेहरे पर
तुम्हारी उंगलियो के पोरों सा,
लेकिन जाने क्यों...
डॉ0 अशोक कुमार शुक्ल
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तुमसे श्रेष्ठतर कौन सी कविता?
लिखे शब्द कुछ,
जब भी मैंने
शब्दों मे तेरी ही छ्वि पायी
ढले अर्थ मे, शब्द वे
जब भी मूरत तेरी ही,
सामने आयी...
pragyan-vigyan पर Dr.J.P.Tiwari
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शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति..
आभार
सादर
शुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर....
आभार सर आप का....
बहुत आभार इस अनवरत चर्चा के लिये.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति, आभार सर आप का
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंabhar....sabhi links par tipiya aye
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