मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
अनेकता में एकता टाईप...
एक देश एक टैक्स जी एस टी
जूते पर १८ प्रतिशत जीएसटी..मगर जूते अगर ५०० रुपये से कम के हैं तो ५ प्रतिशत जीएसटी..इसका क्या अर्थ निकाला जाये? ५०० से कम का जूता पैरों में पहनने के लिए हैं इसलिए कम टैक्स और महँगा जूता शिरोधार्य...इसलिए अधिक टैक्स? एक देश एक टैक्स के जुमले की बरसात में एक वस्तु अनेक टैक्स टिका गये और लोग जान ही न पाये.. एक देश एक टैक्स का छाता और उसमें से बरसात की बूँदों की तरह बाजू बाजू से सरकती अनेकों टैक्स स्लैबों की बूँदें..आम जन समझ ही नहीं पा रहा है कि ये कैसा एक टैक्स है...
--
--
कितने जतन से तुमसे जुड़ी सारी मधुर स्मृतियों को
गहरे अतीत की निर्जन वीथियों में घुस कर
मैं सायास बीन बटोर कर सहेज लाई थी !
जिनमें शामिल थीं तुम्हारी बेतरतीब भोली भाली तोतली बातें,
तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारी मासूम शरारतें, तुम्हारी जिदें,
तुम्हारी ढेर सारी चुलबुली शैतानियाँ,
टूटे दाँतों वाली तुम्हारी निश्छल मुस्कान
और अतुलनीय स्नेह से सिक्त कुछ भीगे पल...
--
हया.....
पावनी दीक्षित "जानिब"
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal
--
अनुपम मेघालय
यात्रानामा पर
parmeshwari choudhary
--
सबसे भृष्टाचारी बरसात के विरोध में
चक्का जाम
बरसात के नाम से तो ऐसा ही आभास होता है कि ये कोई देवी मईया ही होंगी पर हमें कुछ पक्का पता नही है। काहे से की कोई वरुण देव को जल मंत्री बताता है और हमारा रमलू कहता है कि इन्नर देवता जल बरसाते हैंगे। पर हमने बहुत खोज बीन और माथा पच्चीसी के बाद यह नतीजा निकाला कि यह मामला बहुत कुछ हमारे सरकारी मंत्रालयों जैसा ही है। जैसे एक ही मंत्रालय में केबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और फिर उप मंत्री और उससे भी आगे संसदीय सचिव, और सुना है की दिल्ली में केजरी दादा ने तो कोई 21 संसदीय सचिव पेले हुए थे। अब इत्ते सारे मंत्री और कामकाज एक ही मंत्रालय का हो तो काणी के व्याव में कुंडल होना भी जरूरी है..,.
--
देवार बोले तो देवों के यार !
--
सहेजें इन पारंपरिक पद्धतियों को
अच्छी वर्षा की मौसम विभाग की भविष्यवाणी के बाद भी मध्यप्रदेश के पश्चिमी हिस्से में बारिश नदारद है। किसानों ने इसी भविष्वाणी के चलते और मानसून पूर्व की अच्छी बारिश को देखते हुए खेत में बीज बो दिए थे , नगर निगम ने तालाब खाली कर दिए थे और अब आसमान से बादल पूरी तरह नदारद हैं। पहले किसानों की हड़ताल फिर प्याज़ की खरीदी ना हो पाने से सड़ता हुआ प्याज़ और अब बीज का ख़राब हो जाना किसानों पर चौतरफा मार है...
--
बरसात
उमड़-घुमड़ जब बादल गरजते हैं तो मनोवृत्ति के अनुरूप सभी के मन में अलग-अलग भाव जगते हैं। नर्तक के पैर थिरकने लगते हैं, गायक गुनगुनाने लगते हैं, शराबी शराब के लिए मचलने लगता है, शाबाबी शबाब के लिए तो कबाबी कबाब ढूँढने लगता है। सभी अपनी शक्ति के अनुरूप अपनी प्यास बुझाकर तृप्त और मगन रहते हैं लेकिन कवि? कवि एक बेचैन प्राणी होता है। किसी एक से उसकी प्यास नहीं बुझती...
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय
--
बदचलन होती हैं
कुछ कलमें चलन के
खिलाफ होती हैं
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
छोरियां अभी तो छोरों से कम ही दिखें...
खुशदीप
--
जीने की राह में...
धुंधली होती हैं यादें...
धुंधली ही तो है आँखें...
धुंधला ही हर धाम यहाँ...
जीने की राह में
जीवन ही गुमनान यहाँ...
तो ऐसे ही धुँध में बढ़ते चलें...
कौन जाने धुंधलके से ही
कोई अप्रतिम आयाम मिले...
--
ऋषि पराशर की तपोभूमि :
फरीदाबाद
--
घास
--
दो अश’आर
--
"जनता हराती है,
लेकिन वो हार नहीं मानते",
क्या करें ? -
पीताम्बर दत्त शर्मा
--
रुख
कह दो हवाओं से रुख बदल ले जरा
हिज़ाब उनका सरका ले जाए जरा
हुस्न जो कैद हैं इसके पीछे आज़ाद हो जाए
नक़ाब से जरा छिपा महफ़ूज रखा जिसे
दीदार से उसके हो जाए जरा
कह दो हवाओं से रुख बदल ले जरा...
--
मन खुद का मस्त रहने दो .....
--
बरसात
घड़ घड़ घड़ घड़ करते उसने शोर मचाया, मैं जानती थी ये बादल का इशारा था ये कि -भाग लो,समेट लो, जितना बचा पाओ बचा लो ,अब बरसा दूंगा , मैंने ऊपर देखा गोरे बादलों की जगह काले बादलों ने ले ली थी...
मेरे मन की पर
अर्चना चावजी Archana Chaoji
--
काश ऐसी हो जाए भारतीय नारी
--
एक उम्मीदे-शिफ़ा ...
चंद अश्'आर जो सीने में दबा रक्खे हैं
कुछ समझ-सोच के यारों से छुपा रक्खे हैं
एक उम्मीदे-शिफ़ा ये है कि वो आ जाएं
इसलिए मर्ज़ तबीबों से बचा रक्खे हैं...
--
मैं, कैसे आत्ममंथन कर पाऊँ
मैं निर्जन पथगामी अवलंब तुम्हारा चाहूँ
साँझ का दीपक स्नेह की बाती
तुमसे ही जलवाऊँ मैं,
तुमसी प्रीत कहाँ से पाऊँ...
--
देशी घी की खुशबू धीरेधीरे पूरे घर में फैल गई. पूर्णिमा पसीने को पोंछते हुए बैठक में आ कर बैठ गई. ‘‘क्या बात है पूर्णि, बहुत बढि़याबढि़या पकवान बना रही हो. काम खत्म हो गया है या कुछ और बनाने वाली हो?’’ ‘‘सब खत्म हुआ समझो, थोड़ी सी कचौड़ी और बनानी हैं, बस. उन्हें भी बना लूं.’’ ‘‘मुझे एक कप चाय मिलेगी? बेटा व बहू के आने की खुशी में मुझे भूल गईं?’’ प्रोफैसर रमाकांतजी ने पत्नी को व्यंग्यात्मक लहजे में छेड़ा. ‘‘मेरा मजाक उड़ाए बिना तुम्हें चैन कहां मिलेगा,’’ हंसते हुए पूर्णिमा अंदर चाय बनाने चली गई. 65 साल के रमाकांतजी जयपुर के एक प्राइवेट कालेज में हिंदी के प्रोफैसर थे. पत्नी पूर्णिमा उन से 6 साल छोटी थी. उन का इकलौता बेटा भरत, कंप्यूटर इंजीनियरिंग के बाद न्यूयार्क में नौकरी कर लाखों कमा रहा था. भरत छुटपन से ही महत्त्वाकांक्षी व होशियार था. परिवार की सामान्य स्थिति को देख उसे एहसास हो गया था कि उस के अच्छा कमाने से ही परिवार की हालत सुधर सकती है....
राज भाटिय़ा
--
तिरंगे के तले ,
घुमक्कड़ यार मिले
--
टाइम मशीन चारः
अमर्ष
सती के अथाह प्रेम में डूबे शिव उनकी बेजान देह लिए हिमालय की घाटियों-दर्रों में भटकते रहे. न खाने की सुध, न ध्यान-योग की. सृष्टि में हलचल मच गई, सूर्य-चंद्र-वायु-वर्षा सबका चक्र गड़बड़ हो गया. तारकासुर ने हमलाकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था. प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी थी. तारकासुर की अंत केवल शिव की संतान ही कर सकती थी, सो ब्रह्मा चाहते थे कि अब किसी भी तरह शिव का विवाह हो जाए. बिष्णु ने अपने चक्र से सती की देह का अंत तो कर दिया, लेकिन महादेव का बैराग बना रहा...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंवाह...
आभार
सादर
बहुत अच्छा लगा आप एसे ही लिखते रहें।
जवाब देंहटाएंअच्छे आलेख . यात्रानामा शामिल करने के लिये आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। लिंक्स रुचिकर हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आभार
जवाब देंहटाएंविविध रंग समेटे उत्कृष्ट सूत्रों से सुसज्जित चर्चा ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में सुन्दर सूत्रों की भरमार के बीच 'उलूक' को भी स्थान देने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल की. आभार.
जवाब देंहटाएंsundar charcha
जवाब देंहटाएं