मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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क्यों लड़ते हैं लोग घरों में ?
उसके घर का आने -जाने का रास्ता घर के पिछले हिस्से से होकर है ,मेरे और उसके ,दोनों घर के बीच में सामान्य अन्तर है .. बातचीत, नोक-झोंक ...सब सुनाई देता है ... कामकाजी बहू है ..... सास और बहू दोनों ताने देने में मास्टर हैं ...
मेरे मन की पर
अर्चना चावजी Archana Chaoji
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दिल न रोशन हुआ ,लौ लगी भी नही,
फिर इबादत का ये सिलसिला किस लिए
फिर ये चन्दन ,ये टीका,जबीं पे निशां
और तस्बीह माला लिया किस लिए ...
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DEKHIYE EK NAJAR IDHAR BHI
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मुल्कों की रीत है...
कैसा अजब सियासी खेल है,
होती मात न जीत है
नफ़रत का कारोबार करना,
हर मुल्कों की रीत है...
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लड़ना क्या इतना आसान होता है?
हिन्दी_ब्लागिंग लड़ना क्या इतना आसान होता है? पिताजी जब डांटते थे तब बहुत देर तक भुनभुनाते रहते थे, दूसरों के कंधे का सहारा लेकर रो भी लेते थे लेकिन हिम्मत नहीं होती थी कि पिताजी से झगड़ा कर लें या उनसे कुछ बोल दें। माँ भी कभी ऊंच-नीच बताती थी तो भी मन मानता नहीं था, माँ को जवाब भी दे देते थे लेकिन बात-बात में झगड़ा नहीं किया जा सकता था....
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चर्चा में सिपाही के खत को स्थान देने के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा .......
जवाब देंहटाएंबधाई ......
बहुत बढ़िया लिंक लगाए हैं .......आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंsundar charcha hai
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सुंदर लिंक्स,
जवाब देंहटाएंआभार.
आज की सुन्दर चर्चा में 'उलूक' की खबर को भी जगह देने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर फुलबगिया को भी आपने यहाँ स्थान दिया ----बहुत सी नयी पोस्ट्स से भी परिचित हुआ .....आभार ....
जवाब देंहटाएंडा० हेमंत कुमार